हनुमत कृपा - निज अनुभव
गतांक से आगे
गतांक से आगे
प्रियजन ,मैं आपको सुना रहा था ,सन २००८ के मेरे हॉस्पिटल प्रवास के दौरान, मुझ पर हुई श्री हरिकृपा की कथा. पर जैसा आप जानते ही है क़ी अनायास ही मेरे परम प्रिय "उन्होंने"उस प्रवाह का रुख ही बदल दिया और मेरा ध्यान "कृपा" के उस अथाह स्रोत अपने सद्गुरु महाराज की ओर फेर दिया, आप स्वयम ही सोच कर देखें, यदि गुरुजन न होते ,तो हमारी "कृपा गंग" किस गंगोत्री से प्रगट होती और इस असार संसार में हमारी क्या दशा हुई होती.
प्रिय पाठकों "कृपा-गंगा" का उद्गम स्थल है अपने 'सद्गुरु का श्री चरण' .चरण शरण लेने वाले साधक जीव ,जन्म जन्मान्तर से संचित निज पुण्यों के फल स्वरूप ,अपने नये जन्म के ९-१० महीने पहले से ही हरि कृपा के इस जीवन दायक अम्रूत का रसास्वादन करने लगते हैं और आजीवन उस अमृत-जल से सिंचित हो फलते फूलते रहते हैं.
२००४ में श्री राम शरणम् के चौखट पर श्री गुरुजी महाराज से प्राप्त स्वास्थ्य विषयक चेतावनी ने मुझे चौका दिया था ,पर मैं मन ही मन बिलकुल निश्चिन्त था .मुझे अडिग विश्वास था इसका क़ी मेरे साथ कोई अनहोनी हो ही नही सकती .गुरुजन की स्नेहिल शुभकामनाओं से निर्मित अटूट फौलादी सुरक्षा कवच धारण किये साधक को भला कौन सता सकता है? मैं जानता हूँ क़ी ह्मारे महाराज जी ह्म सब से अत्याधिक स्नेह करते हैं.
आज इतना ही.शेष फिर कभी
निवेदक व्ही. एन. श्रीवास्तव. "भोला".
२००४ में श्री राम शरणम् के चौखट पर श्री गुरुजी महाराज से प्राप्त स्वास्थ्य विषयक चेतावनी ने मुझे चौका दिया था ,पर मैं मन ही मन बिलकुल निश्चिन्त था .मुझे अडिग विश्वास था इसका क़ी मेरे साथ कोई अनहोनी हो ही नही सकती .गुरुजन की स्नेहिल शुभकामनाओं से निर्मित अटूट फौलादी सुरक्षा कवच धारण किये साधक को भला कौन सता सकता है? मैं जानता हूँ क़ी ह्मारे महाराज जी ह्म सब से अत्याधिक स्नेह करते हैं.
महाराज जी ने मेरी अनेकों भक्ति रचनाओं में से एक को अधिक सराहा था वह आपको
सुना रहा हूँ. इस भजन की रचना के समय मेरे कान में उनका यह कथन गूँज रहा था "
"प्रभु के साथ कोई प्यार का सम्बन्ध जोड़ो तभी उनका अखंड सिमरन होग़ा"
"प्रेम भक्ति योग" की भावना से ओतप्रोत मेरी वह रचना है.:
तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है
हर दिल में तूही है समाया जो कुछ है सो तू ही है
आज इतना ही.शेष फिर कभी
निवेदक व्ही. एन. श्रीवास्तव. "भोला".
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