शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR (Aug.13 ,2010)


हनुमत कृपा -निज अनुभव

गतांक से आगे   

श्री महावीर जी की असीम कृपा से, थोड़ा अस्वस्थ होते हुए भी ह्म ने वे सारे काम पूरे कर लिए, जिन्हें करने की सोंच कर ह्म अमेरिका से भारत आये थे. वापसी की तारीख भी सरकती सरकती बिलकुल करीब आ गयी.

२६ नवम्बर २००८ ( भारत की वह भयंकर काली रात ) भी बहुत दूर नहीं थी.

हमे उस दिन मुम्बई में रहना था जिससे अगले दिन - २७ नवम्बर को ह्म दोनों अपने       विवाह की ५२ वीं वर्षगाँठ पर परिवार की सबसे बुज़ुर्ग सदस्या हमारी बड़ी प्रिय पूज्यनीय शुभचिंतिका  शकुन्तला भाभी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें और उनसे उनकी नयी वालीं 
गुरु कृपा और कृष्ण भक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत रचनाएँ स्वयम उनके मुख से सुन सकें.पर ऐसा न हो सका. उलटे परिस्थिति कुछ ऎसी विपरीत बनी जैसे दिन की जगह रात हो जाये और उत्तर की जगह दक्षिण जाना पड़े 

बहुत कुछ हुआ ,ह्मारे साथ नवम्बर मध्य से २६ नवम्बर तक ,जो मैं धीरे धीरे बताउंगा लेकिन एक महत्वपूर्ण बात जो नहीं हुई वह यह थी क़ी ह्म दोनों उस २६ नवम्बर की रात न ताज होटल में थे ,न नरीमन हॉउस में थे, न कोलाबा न चर्चगेट,न सी एस टी स्टेशन के किसी प्लेटफार्म पर थे.

मैं उस रात एक बहुत ऊंची उड़ान पर निकल गया था, मेरा सुपर सोनिक विमान मुझे बिजली की गति से,उस शून्य की ओर ले जा रहा था जहां पहुँच कर वापस आना नहीं होता जहां का केवल एक तरफा टिकट ही मिलता है..मैं अपने गंतव्य तक पहुँच भी गया .
शेष कथा धीरे धीरे आगे बढ़ेगी

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला".
      .

कोई टिप्पणी नहीं: