हनुमत कृपा- निज अनुभव
गतांक से आगे
उसके बाद ,पूरे नवम्बर '०८ में ,क्या क्या हुआ ,छूट पुट एकाध घटना को छोड़ कर मुझे कुछ भी याद नहीं. प्रियजन. बात यह है क़ी याद रहती ,यदि कोई याद रखने वाला होता. याद रखने वाला पात्र ही जहाँ नहीं होग़ा वहाँ यादें रहेगी कहां?.जब मैं वहाँ था ही नहीं तो मुझे क्या याद रहता..
मैं वहाँ नहीं था. मेरी स्थूल काया अवश्य रही होगी . सोचने की बात यह है क़ी उन दिनों मेरा सूक्ष्म संस्करण कहां था ? कौन बताये मुझे ? आज भी यह जानने को मेरा मन बेचैन है. बहुत चिरौरी करने पर जानकार केवल इतना ही कहते हैं क़ी नवम्बर के मध्य से दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक मैं नोयडा के एक हस्पताल के क्रिटिकल और इंटेंसिव केअर वाडों में तथा ओपरेशन थिअटर और लेबोरेटरी के बीच स्ट्रेचर पर डोलता रहा था
यह भी सुना क़ी इस बीच मुझे असंख्य नश्तर लगे,तथा नाना प्रकार के ओपरेशन और प्रोसीजर हुए मेंरी माटी की काया पर. मेरे रोग का निदान करने के लिए मेरे शरीर के लगभग सभी अंगों-अवयवों की सघन जांच हुई. पर मुझे कुछ भी नही पता चला..
पिछले महीने भर से ज्वर आ रहा था इस लिए सर्व प्रथम मेरे फेफड़े पर नजर दौड़ायी डाक्टरों ने और अति गंभीर परीक्षण के बाद एक प्रकार से एलान ही कर दिया क़ी ,शरद बाबू के "देवदास" को जो हुआ था वह भयंकर राजरोग,क्या कहते हैं उसे?, वह रोग जो भारतीय निराश प्रेमियों को अक्सर होता रहता है,मुझे भी हो गया है..
गनीमत यह हुई क़ी मैं उस समय यह कुछ भी नही सुन पाया ,वरना उनसे तभी पूछता क़ी "भाई देवदास की तो दो दो थीं पर मेरी तो पिछले ५२ वर्षों से केवल एक ही हैंऔर प्रभु की कृपा से अब तक मुझे चुन्नी लाल जैसे बोंधू-मित्र भी नही मिले हैं जो मुझे गलत राह पर चलाने का साहस करते फिर कैसे मुझे यह बिरहियों वाला रोग लग सकता है.?
पिछले महीने भर से ज्वर आ रहा था इस लिए सर्व प्रथम मेरे फेफड़े पर नजर दौड़ायी डाक्टरों ने और अति गंभीर परीक्षण के बाद एक प्रकार से एलान ही कर दिया क़ी ,शरद बाबू के "देवदास" को जो हुआ था वह भयंकर राजरोग,क्या कहते हैं उसे?, वह रोग जो भारतीय निराश प्रेमियों को अक्सर होता रहता है,मुझे भी हो गया है..
गनीमत यह हुई क़ी मैं उस समय यह कुछ भी नही सुन पाया ,वरना उनसे तभी पूछता क़ी "भाई देवदास की तो दो दो थीं पर मेरी तो पिछले ५२ वर्षों से केवल एक ही हैंऔर प्रभु की कृपा से अब तक मुझे चुन्नी लाल जैसे बोंधू-मित्र भी नही मिले हैं जो मुझे गलत राह पर चलाने का साहस करते फिर कैसे मुझे यह बिरहियों वाला रोग लग सकता है.?
भारतीय डाक्टरों ने मेरे हृदय का भी सघन परीक्षण किया. पिछले अनेक वर्षों से इसकी धडकन बरकरार रखने के लिए यू.एस.के हावर्ड मेडिकल स्कूल के हस्पतालों में मेरा इलाज चल रहा है.तीन बार एन्जिओप्लास्ती हो चुकी है.५ वर्ष से दवाईयां बेनागा चल रही हैं. इष्ट देव की कृपा से वहाँ भी मेरे दिल का मामला ठीक ही निकला .
मुझे ,जैसा मैंने पहले कहा है ,लगभग एक महीने तक बिलकुल होश न था. इस कारण उपरोक्त सब कुछ मुझे बिलकुल स्वस्थ हो जाने पर फरवरी २००९) में अमेरिका में उस समय बताया गया.जब मैं जाच के लिए अपने बोस्टन स्थित हस्पताल जा रहा था
क्रमश:
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
क्रमश:
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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