यू एस ए में इस वर्ष के खुले सत्संग में आनंदवर्षा करते
हमारे प्यारे महाराज जी
बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम
[तुम्हारे बिना जी न पाएंगे हम]?
शायद यही शब्द हैं उस फिल्मी गीत के जो अपने समय में बहुत ही मशहूर हुआ था ! उन दिनों मैं भी इसे कभी कभार गुनगुना लिया करता था ! समय के साथ धीरे धीरे भूल गया इसे !
लेकिन आज मेरा दिल बार बार अपना यह गीत गाने को कर रहा है!
तुझसे हमने दिल है लगाया ,जो कुछ है बस तू ही है
हर दिल में तू ही है समाया,जो कुछ है बस तू ही है
आप पूछोगे - क्यूँ ?
प्रियजन , अभी गुज़रे मई महीने की बात है ! हमारे परम श्र्द्द्धेय गुरुदेव (डॉक्टर)विश्वामित्र जी महाराज ,यहीं अमेरिका में हम सब के पास थे ! यहाँ के खुले सत्संग में महाराज जी ने पूरी संगत को ही जितना प्यार और आशीर्वाद दिया था और अपनी कृपा दृष्टि से जितनी शक्ति प्रदान की थी कोई भी सत्संगी अपने जीवन में तो उस दिव्य अनुभूति को भुला नहीं सकेगा !
पूर्णाहुति की अंतिम बैठक के बाद विदाई के समय मुझे गले लगाकर मेरी पीठ पर हाथ फेरते फेरते उन्होंने मेरे तन-मन और मेरे अन्तःकरण पर प्यार और आशीर्वाद का शीतल सुगंधमय चन्दन लेप लगाया था ,उसकी गमक अभी भी मेरे आन्तरिक और बाह्य जीवन को पवित्र कर रही है ! गुरु कृपा ही तो श्री रामकृपा है ! गुरु कृपा में आनंद ही आनंद है !
गुरु दर्शन में ही तो है उस आनंदघन परम का दर्शन !
इधर ५-६ वर्षों में मैंने जब भी श्री महाराज जी को अपने भजन सुनाये ,लगभग हर बार ही गाते गाते मेरा मुँह सूख गया , मैं ठीक से गा न सका फिर भी हमारे उदार चित्त महराज जी ने मेरे उस अति मामूली गायन की भी प्रसंशा की , सराहना की !
कौन हो सकता है हमारे इन सद्गुरु के समान उदार ,कृपालु ,क्षमावान ?
उनसे बिछुड कर आज मेरी मनोदशा कैसी है ? थोड़ा बहुत तो आपको मेरी इस लम्बी ख़ामोशी से ही समझ में आगया होगा ! कुछ स्नेही स्वजनों को शायद ऐसा लगा हो जैसे 'गैस' खतम होने से अंकल की खटारा कहीं वीराने में खड़ी हो गयी ! प्रियजन , सत्य है उनकी सोच ,अपनी गाड़ी खड़ी तो हो गयी है लेकिन स्वजनों उस वीराने में निकट ही एक 'पेट्रोल पम्प' भी दिखाई दे रहा है ! -- सद्गुरु की मधुर स्मृतियों को संजोये -- उनके हस्त लिखित पत्र :
मैं आजकल महाराज जी से दिव्य विभूति स्वरूप प्राप्त उनके उन पत्रों का आश्रय लिए जी रहा हूँ जो श्री महराज जी ने हमारे अमेरिका प्रवास के दौरान हम दोनों को चिंता मुक्त करने तथा हमे आश्वासन और आशीर्वाद देने के लिए समय समय पर भारत से हमारे पास भेजे थे !इन पत्रों के विषय में क्या क्या बताऊँ
उनके कर कमलों से लिखे हुए स्नेह एवं आशीर्वाद से भरे वे पत्र पाकर जो अपार आनंद हमे मिल रहा है उसका वर्णन करना कठिन है !पत्र पढते समय ऐसा लगता है कि जैसे वे हमारे निकट ही बैठे हैं और आज जब वे ब्रह्मलीन हो गये हैं तब भी प्रतीत हो रहा है कि जैसे वे हमारे अंग-संग ही हैं ,उनका वरद हस्त मेरे मस्तक पर है तथा असीम आनंद की एक लहर हमारे मस्तक से अंतर तक प्रवाहित हो रही है ,अभी इस समय आपसे चर्चा करते हुए भी एक सिहरन सी हो रही है ! ऐसा लगता है जैसे श्री गुरुदेव स्वयं ही मेरी उँगलियों को मेरे इस 'की बोर्ड' पर संचालित कर रहे हैं !
महाराज जी का एक पत्र
ये पत्र मेरे जीवन की एक अनमोल निधि हैं ! इस पत्र में महाराज जी ने मेरी एक रचना की प्रसंशा की थी ! समझदार हैं आप ,अवश्य ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस पत्र को पाकर यह दासानुदास कितना धन्य व कृतकृत्य हुआ होगा !
महाराज जी ने यह भी लिखा है कि वह यह भजन मुझसे सामने बैठ कर सुनना चाहते हैं !
प्रियजन , महाराजजी को मैं यह भजन नहीं सुना सका ! इसका मलाल मुझे आजीवन रहेगा !
आज आपको वही भजन, सुनाने की प्रेरणा इस समय श्री महाराजजी मुझे दे रहे हैं , अस्तु प्रस्तुत है ,मेरा वह भजन :
तुझसे हमने दिल है लगाया ,जो कुछ है बस तू ही है
हर दिल में तू ही है समाया , जो कुछ है बस तू ही है
[इस भजन की सम्पूर्ण शब्दावली श्री राम शरणं दिल्ली की वेब साईट पर उपलब्ध है]
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निवेदक : व्ही .एन . श्रीवास्तव "भोला "
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
एवं
श्रीमती श्रीदेवी कुमार .
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