रविवार, 28 जुलाई 2013

अनंत श्री स्वामी अखंडानंदजी द्वारा उद्घोषित "क्लेश हारी मंत्र"


ओम


श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ,
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः

(श्रीमद्भागवत दशम स्कंध अध्याय ७३,श्लोक १६)

प्रणाम करने वालों के कलेश का नाश करने वाले श्रीकृष्ण, वासुदेव , हरि ,परमात्मा एवं गोविन्द के प्रति बार बार नमस्कार है

वसु का अर्थ है प्राण, वासुदेव का अर्थ है प्राणों के रक्षक ; 'गो' का अर्थ है 'इन्द्रियाँ' और गोविन्द का अर्थ है - 'इन्द्रियों के रक्षक', हरि अर्थात "दुःख हर्ता , श्रीकृष्ण" हैं मन को स्वत :आकर्षित कर परमानंद देने वाले और परमात्मा से तात्पर्य है प्रकाश स्वरूप परम सत्यस्वरूप अविनाशी आत्मा ; जिनके स्मरण मात्र से कलि और काल प्रेरित दुखों से मुक्ति मिलती है ,विघ्न बाधा का नाश हो जाता है !

मंत्र कोई भी हो ; वह आत्मरस प्रदायक ; संकटहारी ,मंगलकारी ; हितकारी और विघ्न विनाशक होता है ! यदि मंत्र में सहज रूचि हो . प्रीति हो श्रद्धा हो , विश्वास हो तो रस की अनुभूति होती है ! मंत्र जापक की दृढ़ भावना के आधार पर ही मंत्र फलीभूत होता है ! जैसे वैज्ञानिकों ने परमाणु की शक्ति को समझा वैसे ही संतों और महर्षियों ने निजी अनुभव के बल पर मंत्र की शक्ति को समझा है और उसे जगत के कल्याण के लिए प्रकट किया है ! दवा लौकिक चिकित्सा है तो मंत्र जाप आध्यात्मिक चिकित्सा है!
 
मंत्र क्या है

अनंतश्री स्वामी अखंडानंद जी ने मंत्र की व्याख्या करते हुए बतलाया है:
"मननात त्रायते"
जो मात्र "मनन" द्वारा हमारी रक्षा करे उसे मंत्र कहते हैं !
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जब आप किसी मंत्र के "नाम" का उच्चारण करते हैं
तब वह उस मंत्र के देवता का उपस्थापक होता है ,

अनुभूतियों के आधार पर महापुरुषों का कथन है कि "मंत्र जाप" करते समय परमात्मदेव की उपस्थिति की प्रतीति होती रहे ; यह अहसास बना रहे कि मंत्र में असीम शक्ति निहित है ; अविचल विश्वास रहे कि मंत्र के अधिष्ठाता स्वयम भगवान हैं , तो मंत्र अवश्यमेव फलित होता है !

'तुलसीदास के "ईश" (इष्ट) ,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भीलनी शबरी को भक्ति के "नौ लक्षण" बताते हुए स्वयम स्वीकारा ---

" मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा ! पंचम भजन सो वेद प्रकासा "

सद्गुरु स्वामी सत्यानान्द्जी महाराज ने भी भक्ति साधना में मंत्रजाप को भक्ति-योग की व्यवहारिक साधना का महत्वपूर्ण सार-तत्व उद्घोषित किया है ! उन्होंने श्री राम के शरणागत हुए ,सभी साधकों को विश्वास दिलाते हुए कहा है -----

नाम मंत्र सुजाप से बाधा विघ्न विनाश !
होता निश्चय जानिये पाप वासना नाश !
(भक्ति -प्रकाश)

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इस मंत्र विशेष की कुछ और चर्चा

ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा अपने श्रद्धालुओं को कष्ट से निवृत्ति के लिए इसी मंत्र का जाप करने का आदेश देते थे ! मेरे पिताश्री को सन १९०८ में तथा पितामह [दादाजी] को १८९९ में देवरहा बाबा ने यही मंत्र दिया था !

प्यारे प्रभु की असीम कृपा से मुझे भी "बाबा" के दर्शन के कई अवसर मिले लेकिन उन्होंने हमे यह मंत्र नहीं दिया ! एक बार वाराणसी की उफनती गंगा में नाव से उनके मचान तक पहुचते ही उन्होंने अवधी भोजपुरी मिश्रित भाषा में मुझे आशीर्वाद दिया: "काहो दारोगा जी, बाल बच्चन के संगे खूस रहा" ! वो हमे जानते नहीं थे, दूर तक कोई और नाव या व्यक्ति भी नहीं था! मुझे दरोगा कहा, मैं आश्चर्य चकित था ! काफी दिनों बाद समझ में आया कि मुगल और ब्रिटिश शाशन काल में इंस्पेक्टर को दरोगा कहते थे ! और उन दिनों मैं एक सरकारी इन्स्पेक्त्रेट का संचालक था ! एक बार उन्होंने मेरे पुत्र राम के मस्तक पर अपने श्री चरण को रख कर आशीर्वाद भी दिया था ! एक अन्य दर्शन के समय "बाबा" के सान्निध्य में जो देखा, जाना, और अनुभव किया , वह अविस्मरणीय है ; जिसमें प्रसंगानुसार कुछ अनुभव आपको बतलाना चाहता हूँ !

उस दिन मचान पर वैठे सिद्ध योगी बाबा के श्रीमुख से संस्कृत के श्लोक सुने ! उन्हे मचान से ही भक्तों की झोलियो को "प्रसाद" से भरते देखा ! मौसम के कारण आवागमन की असुविधा से सबको सतर्क करते हुए तथा सबकी वापसी का बंदोबस्त करते देखा ! सर्वोपरि यह अनुभव किया कि वह प्रत्येक श्रद्धालु को उसकी साधना , रूचि , आवश्यकता , परिस्थिति , और सामर्थ्य के अनुरूप विभिन्न मंत्रों के जाप करने का आदेश देते थे, जैसे उन्होंने हमारे परिवार से "श्री राम जय राम जय जय राम" का कीर्तन करवाया और किसी परिवार से "ओम नमः शिवाय" और किसी से "श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे" का !

वहीं हमने देखा कि उन्होंने कुछ श्रद्धालुओं को कष्ट क्लेश और विघ्न बाधाओं से पार पाने के लिए उपरोक्त भागवती मंत्र , "श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने , प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः " के जाप का संकल्प करवाया !

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गृहस्थ संत ,माननीय शिवदयाल जी के पुत्र एवं उनके द्वारा दीक्षित शिष्य, प्रियवर अजेय जी ने राम परिवार के सदस्यों को भेजे एक पत्र में 'मंत्र जाप एवं उनके लाभप्रद प्रभाव' पर प्रकाश डालते हुए अनेक निजी अनुभूत उदाहरण प्रस्तुत किये हैं ! 

प्रिय अजेय जी ने उस पत्र में अनंतश्री स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती द्वारा उद्घोषित उपरोक्त मंत्र की उपयोगिता पर उल्लेखनीय प्रकाश डाला है ! मेरे परम प्रिय पाठक गण - इस आलेख में मैं आप जैसे जिज्ञासु स्वजन को इस कृष्ण मंत्र के महात्म्य को उजागर करने के प्रयोजन से प्रिय अजेय जी के पत्र का सारांश यहाँ संलग्न कर रहा हूँ :----
 
एक बार स्वामी अखंडानन्द जी सनातन धर्म मंदिर, ग्वालियर , में श्री मद्भागवत पर प्रवचन कर रहे थे। परम पूज्यनीया श्री श्री माँ आनन्दमयी मंच पर थीं और पूज्य बाबूजी ( माननीय जस्टिस शिवदयाल जी ) भी श्रद्धालु-श्रोता के रूप में उपस्थित थे। अपने प्रवचन में उपरोक्त श्लोक के आने पर स्वामी अखंडानंदजी सहसा ही रुक गए । अति गंभीरता से , माँ आनंदमयी जी की ओर घूमकर उन्होंने कहा :-" भगवान और माँ साक्षी हैं , मैं आप सबके समक्ष घोषणा कर रहा हूँ ....श्रीमद्भागवत के इस मन्त्र में इतनी शक्ति है कि इसको सुनकर एक बार तो मृत्यु को भो वापस जाना पड़ेगा !"

यूं तो पूज्य बाबूजी बचपन से ही गुरु मंत्रों की महत्ता एवं उनके लाभप्रद प्रभावों को अनुभव करते रहे थे परन्तु इस मंत्रविशेष के औपचारिक गुण का प्रत्यक्ष दर्शन उन्हें यहीं ग्वालियर में मिला था ।

वे एक बार न्यायिक कार्य से ग्वालियर आये हुए थे वहीं उनकी मुलाकात श्री जे. पी. गुप्ता, advocate से उनके chamber में हुई । गुप्ता जी को अति दुखी देखकर बाबूजी ने तत्काल उनकी उस उदासी का कारण पूछा ! बाबूजी के प्रश्न पर गुप्ता जी अपने आँसू नहीं रोक पाए और अति दुखी होकर बोले, " मेरे बहनोई JA Hosital में बहुत ही critical condition में हैं ।"

उस दिन After the court, before returning to circuit house, Pujya Babuji went to the JA Hospital.There everyone was tense as the doctors had said that the end of Gupta ji's brother in law was imminent and that the worst might happen around 3 am. Hearing this Pujya Babuji mustered up courage and narrated to him what Swami Akhandanandji had said about the power of मंत्र जाप during his discourse .

Mr. JP Gupta's did not seem interested but his sister who had heard Babuji promptly said " भाई साहेब मैं जप करुँगी आप मुझे मन्त्र लिख कर दे दीजिये " उन्होने अपने रोगी पति के पास बैठ कर अनवरत इसी मन्त्र का जप किया और जैसा पूज्य बाबूजी ने बताया, doctors, who were monitoring the patient's condition, informed around 1 am ," आश्चर्य जनक परिवर्तन हुए है, लगता है संकट टल गया है।" Mr. JP Gupta's brother-in-law recovered and lived for several years thereafter.

You would recall that Mr. VR Pujari was Time Office Supdt. at Renukoot and later at Renusagar. I had told him about this incidence. As his father had worked in JC Mills, Gwalior, he knew Pujya Anandmayi Maa and Shri JP Gupta, Advocate too. He asked me to write the mantra on a piece of paper. He kept it under the glass of his office table. He would tell me that during free time, he would repeat the mantra ceaselessly. On a summer afternoon, while he was walking up from his office to his residence, he suffered a massive heart attack. We were then on a vacation. When I returned to Renusagar and went to his place to enquire about his health, he said," अजेय, हार्ट अटैक होने पर मैं आपके मंत्र का जाप करता रहा !" मैंने सुधार करते हुए कहा " पुजारी जी वह मन्त्र मेरा नहीं भगवान् का है !" Mr. VR Pujari lived a healthy life and lived for several years after his graceful retirement.

I could go on and on. However, let me emphasize, जिसकी जैसी श्रद्धा होगी और अपने इष्ट में विश्वास होगा, उसी के अनुसार वह comfortable feel करेगा/ करेगी।

स्वामी शरणानन्दजी के शब्दों में, जिसे हम लोग दैनिक प्रार्थना में दोहराते है ."सब राम के मंगलमय विधान से होता है जो न्याय और दया पर आधारित है"।

प्रज्ञाचक्षु स्वामी शरणानन्दजी महाराज का यह अनमोल वचन, जिस पर बाबूजी से बहस हुई थी "शरणागत को आवश्यक वस्तु बिना माँगे मिलती है अनावश्यक वस्तु मांगने पर भी नहीं मिलती। " बाबूजी का कहना था कि इस कारण शरणागत द्वारा प्रभु से कुछ मांगने का अधिकार नहीं छीना जा सकता ! इस संदर्भ में You will please recall वह क़व्वाली जो अपने दादा [ओम दादा ] बहुत गाते थे " बन्दे खुदा से मांग, फिर माँग .... फिर माँग ...फिर माँग ......"

प्रियवर अजेय ने अन्यत्र कहा है :

प्रातःस्मरणीय परमपूज्य स्वामी सत्यानन्दजी महाराज जैसा नाम साधना का प्रवर्तक न तो कोई हुआ है न होगा। स्वामी जी ने तो लिखा है "मन्त्र जाप औषधि, मानस और कायिक दोनों प्रकार के दोषों को दूर कर देती है। जप-प्रार्थना से वेदना की अल्पता और मानसिक शान्ति का अनुभव प्रत्येक साधक को अवश्य ही होगा"।

परम सन्त पूज्य विश्वामित्र महाजन महाराजजी ने एक प्रवचन में कहा है कि जैसे माँ बालक के गिरने अथवा चोट लगने पर ये नहीं देखती कि वह कीचड से सना हुआ है, फ़ौरन उठा लेती है उसी तरह साधक किसी भी अवस्था में हो भगवान पुकार सुनते ही उसे गोद में ले लेते हैं।

मंत्र जाप के नियम

मन में ये प्रश्न आना स्वाभाविक है कि इतने प्रभावशाली और महत्वपूर्ण मन्त्र क्या स्नान उपरांत पवित्र होकर ही जपे जा सकते है ? मैंने ऐसा ही प्रश्न पूज्य बाबूजी से किया था। उनका उत्तर तर्क-संगत था :

ध्यान-जप साधना शरीर नहीं चित्त करता है। शरीर को स्वच्छ-पवित्र करने के लिए स्नान किया जाता है।
चित्त तो भगवत नाम स्मरण से ही शुद्ध-पवित्र होता है।

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निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
उल्लेखनीय जानकारी देने के लिए प्रियवर श्री अजेय श्रीवास्तव जी को हार्दिक धन्यवाद 
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रविवार, 21 जुलाई 2013

'गुरु पूर्णिमा"

"गुरु पर्व" 

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर  
समग्र मानवता को 
अनंत बधाइयाँ
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आप माने न माने इस विश्व में निगुरा कोई नहीं है
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मेरे परमप्रिय पाठकगण,  

(गतांक की अधूरी कथा गुरु प्रदत्त प्रेरणा की अगली खेप मिलने पर पूरी करूँगा ! 
आज मिली खेप के आधार पर निम्नांकित आलेख प्रस्तुत है )
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आज गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या में मुझे  अपने सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज का यह वचन याद आ रहा हैं ! "भौतिक संसार के माया जाल में उलझे मानव को परम सौभाग्य से उसका सद्गुरु मिलता है जो साधक के मन में 'प्रभु दर्शन' की उत्कट लालसा जगाता है और उसकी इच्छापूर्ति हेतु , उसका मार्ग दर्शन करता है" !  इतिहास साक्षी  है कि विश्वविख्यात स्वामी विवेकानंद जी को परमहंस ठाकुर रामकृष्णदेव  ,छत्रपति शिवाजी को समर्थ गुरु रामदास अकस्मात ही मिले थे; जिन्होंने उन्हें 'परम सत्य" का प्रथम दर्शन कराया ! 

'परम सत्य' से मिलन की ऎसी ही उत्कट चाह ने अपने स्वामी जी महाराज जी को १९ वर्ष की किशोरावस्था से ही , उन दिनो भारत में प्रतिष्ठित जैन धर्म तथा आर्य समाज को भली भाँति परखने की प्रेरणा दी तथा उन्हें इन धार्मिक शिविरों में लगभग ४५ वर्षों तक भ्रमण करने और उनकी सेवा करने को  प्रेरित किया था ! इस अवधि में स्वामीजी  ने इन धर्मों में गहराई तक पैंठ कर उनका सघन अध्ययन एवं अनुभव किया ! इन धर्मों की साधना से आंतरिक जिज्ञासा की तृप्ति न होने पर स्वामी जी ने हिमांचल प्रदेश में एकान्तीय साधना प्रारंभ की ! 

भाग्योदय होते ही ६४ वर्ष की आयु में , सात जुलाई १९२५ को डलहौजी के "परम धाम"  में लगभग ३० दिन की गहन "एकान्तीय तपश्चर्या" के बाद,  स्वामीजी के  "निराकार 'परमगुरु' श्री राम"  की प्रेरणामयी असीम करुणा एवं अनुकम्पा से उन्हें " परम सत्य , ज्योतिस्वरूप , नाद-ब्रह्म श्री राम का साक्षात्कार हुआ ! उनके सन्मुख अचानक ही सर्वशक्तिमान परमात्मा "श्रीराम" का प्रागट्य हुआ ! इस चमत्कारिक अनुभूति को उजागर करते हुए महाराज जी ने "भक्ति प्रकाश"  में कहा :  


भ्रम भूल  में   भटकते , उदय  हुए  जब  भाग ! 
मिला अचानक 'गुरु' मुझे लगी लगन की जाग!! 

परम गुरु"राम "की इस अहेतुकी कृपा के लिए  कृतज्ञता व्यक्त करते हुए स्वामीजी महाराज  ने "भक्ति प्रकाश" के "शब्द प्रकाश" खंड में कहा:  
उनका रहूँ  कृतज्ञ   मैं , मानूँ   अति   आभार  !
जिसने अति हित प्रेम से,मुझपर कर उपकार !!


दिया दीवा सुदीप्ता  ,  परम  दिव्य हरि नाम !

पडी सूझ निज रूप की , जिससे सुधरे काम  !!

विचारणीय है कि महाराज जी का कोई साकार "दीक्षा गुरु" नहीं था !स्वामी जी की महानता देखें ,अपनी इस दिव्य उपलब्धि के लिए उन्होंने  निराकार परमगुरु के प्रति भी कितनी कृतज्ञता व्यक्त की है !

प्रियजन , हम सब जीवों को साकार गुरुजनों ने दीक्षित किया है ! तनिक विचार करें अपने "सद्गुरु देव" की कृपा एवं आशीर्वाद के बिना हमारी स्थिति कैसी होती ? क्या होता हमारा यदि  जीवात्मा एवं  परमात्मा के बीच के भ्रम-भूलों के अथाह सागर में हिचकोले खाती हमारी जीवन नैया को पार लगाने वाला "माझी"- हमारा सद्गुरु हमे न मिला होता ? 

फिर भी हम, गुरुजन के उपकारों को भुला कर दिन रात अहंकार में डूब कर  'निज गुणगान' एवं 'पर-दोष-दर्शन एवं परचर्चा' में ही व्यस्त रहते हैं ! 

साधक बन्धुजन हमे अपने छोटे से मानव जीवन में ,प्रति पल ,अपने गुरुजन को ,उनके अनंत उपकारों के लिए अतीव श्रद्धा सहित याद करना चाहिए ! किसी न किसी रूप में हमे उनके प्रति अनुग्रह एवं हार्दिक आभार प्रगट करते रहना चाहिए ! 

श्रीराम शरणम [लाजपत नगर ] के तीनों गुरुजन ने मुझे "भजन" रचकर और उन्हें गाकर अपने इष्ट श्री राम को रिझाते रहने की प्रेरणा दी ! 

 सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने  मुझे मूल मंत्र "राम नाम" प्रदान किया !

 श्री प्रेमजी महाराज ने पंजाब के नगर गुरुदासपुर में कदाचित [१९८१-८२ में कभी],मुझसे मीरा बाई का निम्नांकित पद सुनकर मुझे स्वामी जी से प्राप्त "महामंत्र" -"राम नाम" को गा गा कर यथासंभव सर्वत्र प्रचारित करने को प्रेरित किया ! मीरा का वह पद था :

मेरो मन राम हि राम रटे रे 
राम नाम जप लीजे प्राणी कोटिक पाप कटे रे ,
जन्म जन्म के खत जु पुराने नाम हि लेत फटे रे 
मेरो मन राम हि राम रटे रे
कनक कटोरे इम्रित भरिया पीवत कौन नटे रे ,
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी तनमन ताहि पटे रे 
मेरो मन राम हि राम रटे रे
[यहाँ नहीं ,आप यह भजन यू ट्यूब के भोलाकृष्णा चेनेल पर सुन सकते हैं]  

 सर्वदा स्मरणीय  डॉ.श्री विश्वामित्र जी महाराज ने तो मुझको कुछ ऎसी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा प्रदान कर दी जिससे मुझे भजन गायन ;उनकी  शब्द-रचना  एवं स्वर रचना की अभूतपूर्व क्षमता प्राप्त हो गई !
मेरे मानस से स्वतः,प्राक्रतिक निर्झरों के समान , श्री राम शरणम के इन तीनों गुरुजनों के आध्यात्मिक चिंतन संजोये भजनों की रचना एवं गायन का प्राकट्य होने लगा ! 

महाराज जी की मंत्रणा प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से "श्याम हमे बाँसुरी बनाओ" "मेरे मन मंदिर में राम बिराजें"  ,"राम हि राम ,और नाही काहू सो काम" ,"कब सिमरोगे राम अब् तुम ", "दाता राम दिए ही जाता","राम राम काहे ना बोले","बोले बोले रे राम चिरैया"तथा "तुझसे हमने दिल है लगाया", आदि  भजनों की रचना हुई !

इन  रचनाओं में से एक जो महाराज जी को बहुत पसंद आई थी ,मैं आज गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर आप सभी पाठकों को सुना रहा हूँ ! 

भज मन मेरे राम नाम तू , गुरु आज्ञा सिर धार रे 
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भवसागर पार रे 

राम नाम मुद मंगल कारी ,विघ्न हरे सब पातक हारी  
सांस सांस श्री राम सिमर मन पथ के संकट टार रे 
भज मन मेरे राम नाम तू , गुरु आज्ञा सिर धार रे 




भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
परम कृपालु सहायक है वो। बिनु कारन सुख दायक है वो।
केवल एक उसी के आगे। साधक बाँह पसार रे।
भज मन मेरे ...

गहन अंधेरा चहुं दिश छाया । पग पग भरमाती है माया।
जीवन पथ आलोकित कर ले । नाम - सुदीपक बार रे।
भज मन मेरे ...


परम सत्य है परमेश्वर है । नाम प्रकाश पुन्य निर्झर है ।
उसी ज्योति से ज्योति जला निज। चहुं दिश कर उजियार रे।
 भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भव सागर पार रे 

प्रियजन यदि आप यह वीडियो नहीं देख पायें तो कृपया निम्नांकित यू ट्यूब के लिंक पर जाएँ :
http://youtu.be/ncnjnkwz9Yw

निवेदक : व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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बुधवार, 10 जुलाई 2013

गुरु कृपा से - "मन मंदिर में राम बिराजें"- ( भाग २ )

हे स्वामी !
कुछ ऎसी युक्ति करो कि, 
मेरे मन मंदिर में ,  कृपा निधान , सर्व शक्तिमान, 
एकैवाद्वितीय , परमपिता परमात्मा की 
ह्रदयग्राही ,मनोहारी मूर्ति सदा सदा के लिए 
स्थापित हो जाय  !"
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कृपा करो श्री राम , हम पर कृपा करो !
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी 
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दो जुलाई से ही "श्री राम शरणम" सम्बन्धी "स्मृतियों" का रेला मेरे मन को झकझोर रहा है !

इस बीच अज्ञात सूत्रों से प्रेरणात्मक सन्देश मिला कि " प्यारे , लगता है तुम भटक गये ! उदाहरणों द्वारा जिज्ञासु साधकों को भगवद-प्राप्ति की सरलतम राह ,जिस पर चल कर तुम्हारे जैसा एक अति साधारण व्यक्ति भी "परमानंद स्वरूप एकैवाद्वितीय परमेश्वर" के साक्षात दर्शन कर सके सुझाने की जगह तुम आध्यात्म की जटिल पेचीदगियों में उलझ गये !

प्रियजन आपको याद होगा , गुरुजन के दिव्य आदेश से "महाबीर बिनवौ हनुमाना" की श्रंखला लिखने का मेरा एकमात्र उद्देश्य यही था ! लगता है सचमुच मैं भटक ही गया था ! अस्तु आत्मानुसंधान हेतु अपनी निजी आध्यात्मिक यात्रा  पर एक विहंगम दृष्टि डाल रहा हूँ !

१९५७ -५८ में  पहली बार पूज्यनीय "बाबू" (श्री शिवदयाल जी - एडवोकेट सुप्रीमकोर्ट)  की शुभ प्रेरणा  एवं आशीर्वाद से, मेरे मन में , सदाचार एवं भजन गायन' के "सहज योग" से 'प्रेम भक्ति मार्ग'' पर अग्रसर हो कर परमानंद स्वरूप "राम" मिलन की चाहत का "बीज"आरोपित हुआ !  

पूज्य बाबू के शुभ आशीर्वादीय प्रयास से मुझे १९५९ में , मुरार के डॉक्टर बेरी के निवास स्थान पर, 'मेरे प्रथम एवं अंतिम आध्यात्मिक मार्ग दर्शक' प्रातःस्मरणीय गुरुदेव परम पूज्यनीय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के प्रथम दर्शन हुए और तभी मुझे उनके साथ बिलकुल एकांत में बैठने तथा उनके चरण कमलों को अपलक निहारने का सुअवसर मिला  ! 

स्वामीजी महाराज के श्री चरणों से निर्झरित गंगा यमुनी अमृत धारा के पवित्र जल ने उस बीज को सींचा और कुछ समय उपरान्त गुरुदेव श्री प्रेमजी महाराज के "प्रेमालिंगन" द्वारा वह नन्हा "प्रेम भक्ति "' का बीज भली भांति अंकुरित हुआ !

कालान्तर में "प्रेम भक्ति" का वह नन्हा बीज विकसित होकर कितना हरिआया ;कितना फूला फला ;उसका अनुमान इस निवेदक दासानुदास का अंतर मन ही लगा सकता है ! रसना अथवा लेखनी के द्वारा उसकी चर्चा कर पाना कठिन ही नहीं,असंभव है  ! 

'असंभव है' , यह सत्य जानते हुए भी मैंने अपनी आत्म कथा में अनेको बार उपरोक्त घटनाक्रम के रोमांचक क्षणों की मधुर स्मृतियों को बयान   करने का प्रयास किया है ; किसी अहंकार से नहीं वरन इस स्वार्थ से कि मुझे आज भी उन मधुर पलों की स्मृति मात्र से रोमांच हो जाता है ; वर्षों पूर्व के वे अविस्मृत .चिरंतन दृश्य मेरे सन्मुख जीवंत हो उठते हैं !गुरुजन के आशीर्वाद से मुझे पुनः उस "नित्य-नूतन- रसोत्पाद्क"दिव्य आनन्द की अनुभूति होती है ! 

आज ९ जूलाई को इस पल भी मुझे कुछ वैसा ही अनुभव हो रहा है ! मैं रोमांचित हूँ , गद गद हूँ ! "जय गुरु देव जय जय गुरुदेव"! 

चलिए आगे बढ़ें - जालंधर के साधक - मेरे परम स्नेही श्री नरेंद्र साही जी, श्री केवल वर्मा जी एवं श्री प्रदीप तिवारी जी के आग्रह पर शायद 1980 के दशक के मध्य में मुझे AIIMS New Delhi में कार्यरत डॉक्टर विश्वामित्र महाजन के प्रथम दर्शन का सौभाग्य मिला था ! जालंधर के ये तीनों साधक डॉक्टर  महाजन की आध्यात्मिक ऊर्जा से पूर्व परिचित थे ! 

"एम्स" में उनसे हमारी यह भेंट क्षणिक ही थी ! ये समझें कि उस भेंट में मैं केवल उनके आकर्षक सौम्य स्वरूप का मात्र दर्शन ही कर सका था !  उन्होंने भी काम करते करते ही हम सब से थोड़ी सी औपचारिक वार्ता की थी ! डॉक्टर साहेब ने ,यह लोकोक्ति कि "अनुशासित राम भक्त काम के समय केवल काम ही करते हैं" चरितार्थ की थी ! इस प्रकार उस प्रथम भेंट में सच पूछें तो डॉक्टर साहेब से हमारी केवल राम राम ही हो पाई थी ! जो भी हो , मेरे तथा गुरुदेव विश्वामित्र जी के अटूट सम्बन्ध की वह प्रथम कड़ी थी ! अब् आगे की सुनिए :

 ९० के दशक में मेरे  'सेवानिवृत' हो जाने के बाद  हम दोनों बहुधा कानपुर के अपने स्थायी निवास स्थान से बाहर अपने बच्चों के पास  देश -विदेश में रहते थे ! हम कभी माधव के पास दिल्ली ,देवास अथवा अहमदाबाद में रहते , कभी राघव के पास नासिक में, कभी प्रार्थना के पास जहां कहीं वह रहती थी और कभी श्री देवी के पास पिट्सबर्ग में अथवा रामजी के पास यूरोप  , इजिप्ट अथवा, यू .के.  में लम्बे प्रवास करते थे ! 

इस बीच एकदिन जब हम कहीं विदेश भ्रमण के बाद प्रार्थना के पास जम्मू पंहुचे तब उसने बताया कि उसके पास जालंधर से अनेक फोन आ रहे थे ! बड़ी हंसोड़ है हमारी यह छोटी बेटी औरो को छोडिये वह कभी कभी मुझे भी नहीं छोडती ! मुझे चिढाते हुए उसने कहा, 

"क्या बात है पापा आजकल तो आप  'हॉट केक' बन गये हैं ! बड़े 'डिमांड' में हैं ! आपको आपके जालंधर के Fans  बडी बेताबी से याद कर रहे हैं ! हर जगह कोशिश करके जब वो हार गये तो कहीं से मेरा फोन नम्बर पता कर के उन्होंने कई बार मुझसे बात की ! बहुत पूछने  पर उन्होंने बताया कि वे आप को कोई बड़ी Surprise  देना चाहते हैं ! वे आपको जल्द से जल्द जालंधर बुला रहे हैं !"     

कथानक लंबा हो रहा है अस्तु आज यहीं तक , --- शेष कथा बाद में ,जब कभी प्रेरणा होगी !


अभी, गुरुवर विश्वामित्र जी महाराज को अतिशय प्रिय भजन - 
"मेरे मन मंदिर में राम बिराजें " 
की अंतिम पंक्तियाँ सुन लीजिए 
तथा मेरे गुरुजनों के दर्शन कर जीवन धन्य कीजिए !
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मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी 
अधिष्ठान मेरा मन होवे जिसमे राम नाम छवि सोहे ,
आँख मूंदते दर्शन होवे , ऎसी जुगति करो हे स्वामी 
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी


राम राम भज कर श्री राम , करें सभी जन उत्तम काम .
सबके तन हों साधन धाम , ऎसी जुगति करो हे स्वामी 
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी

आँखें मूंद के सुनूँ सितार, राम राम सुमधुर झंकार 
मन में  हो अमृत संचार , ऎसी जुगति करो हे स्वामी ,
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी

मेरे मन मंदिर में राम बिराजें ऎसी जुगति करो हे स्वामी
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महाराज श्री , 
उस दिन , यू एस ए ,के खुले सत्संग में 
आपकी इच्छा पूर्ति न कर सका था !
आज प्रयास किया है , अवश्य सुनोगे , विश्वास है !
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निवेदक : दासानुदास आपका "श्रीवास्तव जी" (भोला)
हार्दिक सहयोग : आपकी आज्ञाकारिणी - "कृष्णा जी" 
 - एवं  अज्ञेय -
 वे सभी साधक जिनकी कलाकृतियों ने इस भजन को सजाया है 
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सोमवार, 1 जुलाई 2013

मेरे मन मंदिर में राम बिराजें


मेरे  मन  में  तू  रमे  मेरे मोहन  "राम" 
तेरे मधुर मिलाप में मिले मुझे विश्राम 
[ भक्ति प्रकाश ]
रचयिता :- सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज

  वह महात्मा जिसने ,"सद्गुरु" की कृपा से अपने मन में 
मंनमोहन "राम" को सदा सदा के लिए बसा लिया 
जो प्रतिपल "राममिलन" के आनंद में सराबोर रहा 
और अन्ततोगत्वा,"परमानन्द" की अथाह "नील धारा" में 
सर्वदा के लिए विलीन हो गया 





वह महात्मा जिसकी हर साँस में ,जिसके मुख से निकले हर बोल में 
प्रभु के कल्याणकारी "नाम" की सुमधुर झंकार सुनाई देती थी ,
जिसको हमारे जैसे अधमाधम 'नर' में भी 
'नारायण' की छवि दिखलाई देती थी ,जिसे 
मंदिर , मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च - हर इबादतगाह के 
गर्भगृह में "परमानंद स्वरूप - उनके प्रियतम=इष्ट"
"राम"
के ही दर्शन होते थे - 
 वह कोई और नहीं हमारे सद्गुरु 
डॉक्टर विश्वामित्र महाजन जी 
ही हैं और अनंत काल तक बने रहेंगे !
[ प्रियजन, यह कथन अतिशयोक्ति अथवा नाटकीयता नहीं है ! 
यह उस सुकोमल बिरवे, ८५ वर्षीय बूढे व्यक्ति का कथन है जो श्री स्वामीजी महाराज द्वारा दीक्षित ,श्री प्रेमजी महाराज द्वारा पोषित हुआ तथा डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज की 
अमृतमयी कृपा वृष्टि से पुष्पित-फलित हुआ ! 
यह कथन इस दासानुदास के निज अनुभव पर आधारित है ]
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जुलाई २

आज बहुत याद आ रही है ! हैं तो आखिर हम इंसान ही ! कुछ भी कहें ! यहाँ यू.एस.ए. के सेलर्सबर्ग में सत्संग लगा और हम अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण शामिल न हो सके ! भारत से पधारे दिव्य आत्माओं तथा यहा यू.एस.ए. के अतिशय प्रिय पूर्णतः समर्पित साधक जनों  के  दर्शन तक नहीं कर पाये ! निराश तो है ही ! राम कृपा है !

याद आ रहा है वह दिन जब दिल्ली में महाराज जी ने कृष्णा जी का हाथ पकड़ कर बड़े आग्रह से कहा था "आप इनको अमेरिका ले जाइए ,यहाँ इनका स्वास्थ्य नहीं सुधरेगा", और मैंने उदास होकर पूछा था ,  "महाराज जी क्यूँ हमे देश निकाला दे रहे हैं ? वहाँ विदेश में मैं आपके तथा श्री रामशरणम की अन्य दिव्य मूर्तियों के दर्शन कैसे कर पाउँगा?" 

महाराज जी ने मुस्कुरा कर कहा था " श्रीवास्तव जी आप यहाँ नहीं आ पाएंगे तो क्या मैं ही वहाँ आ जाउंगा , आपजी के दर्शन करने "! 

महाराज जी का उपरोक्त कथन , उनकी शब्दावली ! प्रियजन , इतनी  
'प्रेम-पगी" भाषा केवल दिव्य आत्माएं हीं बोल सकतीं हैं ! मुझे इस समय भी रोमांच हो रहा है , मेरी आँखें भर आयीं हैं उस क्षण के स्मरण मात्र से !

महाराज जी के कथन का एक एक शब्द सत्य हुआ ,यहाँ आकर मैं स्वस्थ हुआ ! यहाँ २००९ के बाद आज तक मैं पुनः हॉस्पिटल में नहीं एडमिट हुआ ! महाराज जी ने अतिशय कृपा करके हमे प्रति वर्ष यहाँ यू.एस.ए में दर्शन दिया ! [भाग्यशाली हूँ ,स्थानीय साधकों ने बताया कि यहाँ पहुचने पर महाराज श्री एयर पोर्ट से ही अन्य साधकों के साथ साथ ,मेरी भी खोज चालू कर देते थे !] 

हा आप सब जानते हैं अस्वस्थता के कारण यहाँ सत्संग के दौरानभी मैं महाराज जी से केवल एक दो बार ही मिल पाता था परन्तु नित्य उनके सन्मुख बैठ कर , कुछ पलों तक , खुली-बंद-आँखों से उन्हें लगातार निहारते रहने का आनंद दोनों हाथों से बटोरता था !

आपको याद होगा , २०१२ के अंतिम यू.एस सत्संग में, बहुत चाह कर भी मैं ,महाराज जी के निदेशानुसार उन्हें भजन नहीं सुना सका था ! न जाने क्यूँ उस समय कंठ से बोल निकल ही नहीं पाए ! कदाचित कोई पूर्वाभास था ,जिसका दर्शन करवाकर महाराजश्री ने मुझे भविष्य से अवगत करवाया था ! --- [धन्य धन्य हैं हम,महाराजश्री हम सब पर ऎसी ही कृपा बनाये रखें ] 

महाराज जी की प्रेरणा से रचित , उनको अतिशय प्रिय अपनी रचना आपको सुना रहा हूँ ! हमे विश्वास है कि "नीलधारा" में प्रतिबिम्बित अनंत "नीलाकाश" में ,बिराजे हमारे उराधिपति महाराज जी उसे सुनेंगे , और आकाश से ही हम सब पर अपने स्नेहिल आशीर्वाद वर्षा करेंगे और वह युक्ति करेंगे कि आप सब के साथ साथ मेरे मनमंदिर में भी देवाधिदेव परमानंद स्वरूप "राम" स्थापित हो जायेंगे !


भजन 

मेरे मनमंदिर में राम बिराजें 

ऎसी  जुगति करो  हे स्वामी


अधिष्ठान  मेरा मन होवे , जिसमे "राम" नाम छवि सोहे 

आँख  मूदते  दर्शन  होवे , ऎसी जुगति  करो  हे   स्वामी !
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !!

सांस सांस गुरु मंत्र उचारूं , रोम रोम से तुम्हे पुकारूं ,
आँखिन से बस तुम्हे निहारूं , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !!





मेरे मन मंदिर में राम बिराजें , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !!


औषधि राम नाम की खाऊँ , जन्ममरण के दुःख बिसराऊँ ,
हंस हंस कर अपने घर जाऊं ,ऎसी जुगति करो , हे स्वामी ,

मेरे मन मंदिर में राम बिराजें , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !!
  
बीते कल का शोक करूं णा, आज किसी से मोह करूं ना ,
आने वाले कल की चिंता , नहीं सताए हम को स्वामी !
मेरे मन मंदिर में राम बिराजें , ऎसी जुगति करो हे स्वामी !!
[शब्द-स्वरकार , गायक व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला']
[प्रेरणा स्रोत गुरुदेव विश्वामित्र जी महाराज]
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जो प्रियजन यहाँ उपरोक्त वीडियो नहीं देख पाए वे 
निम्नांकित लिंक पर यह भजन सुन  सकते हैं :
http://youtu.be/C7XuLZMw7og
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव ,
एवं मेरे अतिशय प्रिय वे सभी साधकगण जिनके द्वारा खीचीं तस्वीरें 
कृष्णा जी ने  इस वीडियो में लगाईं हैं !
गौरवजी ,उनकी धर्म पत्नी , अमृत नैयर जी तथा श्रद्धेया रूप जी 
और सभी जानी अनजानी आत्माओं को शत शत नमन 
एवं कोटिश धन्यवाद 
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