शनिवार, 9 नवंबर 2013

नारद भक्ति सूत्र (गतांक से आगे)



भक्ति और भक्त के लक्षण
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सांसारिक प्रेम की चर्चा बहुत हुई ! चलिए अब "ईश्वर" से "परमप्रेम" करने वाले भक्तों की अमूल्य उपलब्धि "भक्ति" की चर्चा हो जाए !

अनुभवी महापुरुषों का कथन है कि भक्ति साधना  का आरम्भ ही प्रेम से होता है ! संसार के प्रति प्रेम भाव का व्यवहार ही धीरे धीरे सघन हो कर परम प्रेम में परिवर्तित हो जाता है ! सांसारिक निष्काम प्रेम की परिपक्वता ही भक्ति है ! साधक का ईश्वर के प्रति यह अनन्य प्रेम ही भक्ति है !

मानव हृदय में जन्म से ही उपस्थित प्रभुप्रदत्त "प्रेमप्रीति" की मात्रा जब बढ़ते बढ़ते निज पराकाष्ठा तक पहुँच जाए , जब जीव को सर्वत्र एक मात्र उसका इष्ट ही नजर आने लगे  (चाहे वह इष्ट राम हो रहीम हो अथवा कृष्ण या करीम हो )   जब उसे स्वयम उसके अपने रोम रोम में तथा परमेश्वर की प्रत्येक रचना में , हर जीव धारी में ,प्रकति में ,वृक्षों की डाल डाल में ,पात पात में केवल उसके इष्ट का ही दर्शन होने लगे ,जब उसे पर्वतों की घटियों में ,कलकल नाद करती नदियों के समवेत स्वर में मात्र ईश्वर का नाम जाप ही सुनाई देने लगे ,जब उसे आकाश में ऊंचाई पर उड़ते पंछियों के कलरव में और नीडों में उनके नवजात शिशुओं की आकुल चहचआहट में एकमात्र उसके इष्ट का नाम गूँजता सुनाई दे   तब समझो कि जीवात्मा को उसके इष्ट से "परमप्रेमरूपा -भक्ति" हो गयी है ! 


स्वामी अखंडानंद जी की भी मान्यता है कि " अनन्य भक्ति का प्रतीक है, सर्वदा सर्वत्र ईश दर्शन ! साधक के हृदय में भक्ति का उदय होते ही उसे सर्व रूप में अपने प्रभु का ही दर्शन होता है !"

प्रियजन , उस सौभाग्यशाली जीव  का  जीवन सुफल जानो जो इस दुर्लभ मानव काया में "भक्ति" की यह बहुमूल्य निधि पा गया !

उदाहरणतः

शैशव में यशोदा मा का बालकृष्ण के प्रति जो प्रेम था वह " स्नेह प्रधान "
था ! नन्दगांव में बालसखा ग्वालों का नंदगोपाल कृष्ण के प्रति जो प्रेम था वह " मैत्री प्रधान " था ! 

त्रेता युग में भगवान श्री राम के परमप्रेमी  भक्त महाराज दसरथ , हनुमान ,भरत , लक्ष्मण ,जटायु आदि का श्री राम के प्रति जो परमप्रेम था वह ,    " सेवा एवं समर्पण प्रधान" था !  वे सब ही , एकमात्र अपने इष्ट राम को ही जानते मानते थे ! उनका सर्वस्व उनके इष्ट की इच्छा तक सीमित था !   
इनके अतिरिक्त , आप तो जानते ही हैं कि बृजमंडल की कृष्ण प्रेम दीवानी गोपियों को सदा , सर्वत्र, सर्वरूप में अपने प्रियतम नटवर नागर कृष्ण का ही दर्शन होता था  ! ये गोपियाँ श्री कृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित थीं !  दिन रात भक्ति के दिव्य आनंद  सरोवर में डुबकी लगाती ये गोपियाँ नख शिख कृष्णमयी हो गयी थीं ! कृष्ण के प्रति गोपियों की यह भक्ति पूर्णतः "परम प्रेम एवं समर्पण प्रधान" थी !

प्रियस्वजन ,  तन्मयता की ऎसी पराकाष्ठा केवल परम प्रेमा भक्ति में ही दृष्टिगत होती है ! उसमे भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रह जाता !ऐसी स्थिति में ही ,"कृष्ण राधा रूप"  और "राधा कृष्ण रूप" हो जातीं हैं !

भक्त का ईश्वर के प्रति  अटूट विश्वास ,निःस्वार्थ सेवा - भाव तथा प्रेम का सम्बन्ध होना  ही भक्ति योग है ! परम योगी संत श्री विनोबा भावे जी का सूत्रात्मक वक्तव्य है , "भाव पूर्वक ईश्वर  के साथ जुड़ जाने का अर्थ है भक्तियोग ! जैसे हमारे घर का बिजली का बल्ब पावर हाउस की लाइन से जुड कर ही जलता है वैसे ही  भक्ति , भक्त को भगवान से जोड़ने वाला कंडक्टर - बिजली का तार है !

भक्ति जब भक्त के  ह्रदय में आती है तो अकेली नहीं आती वह अपने साथ साधक के आराध्य  को लेकर आती है ! ऐसे भक्त की पहचान बन जाती है उसे  ईश्वर के अचिंत्य,अनंत स्वरूप का ज्ञान होना ,उस ,दिव्य एवं अदृश्य शक्ति के प्रति अतिशय श्रद्धा-विश्वास होना तथा , हर घड़ी उसका सुमिरन ध्यान  होना और उसके प्रति परमप्रेम होना ! 

अनुभवी महापुरुषों के अनुसार , "ऐसी भक्ति के आते ही भक्तजन अच्छी अच्छी बातें सुनने लगते हैं ,उनके नेत्र केवल अच्छी चीजें ही देखते हैं , उनकी नासिका मात्र अच्छे गंध सूँघती है , उनकी रसना केवल अच्छी वाणी ही बोलती है , उनके पाँव उन्हें अच्छी जगह ही लेजाते हैं ,उनके हाथ केवल अच्छे ही  काम करते हैं ! "भक्त" का समग्र जीवन सदगुण सम्पन्न हो जाता है !

स्नेही स्वजनों , मुझे विश्वास है कि आप सब को भी ऎसी अनुभूतियाँ होतीं हैं !  मैं दावे के साथ कह सकता हूँ ! किसी न किसी मात्रा में आप सब को किसी न किसी वस्तु , व्यक्ति एवं परिस्थिति से विशेष प्रेम तो है ही जो होना भी चाहिए ! सच सच बताइए, है न ? 

स्वजनों यदि प्रत्येक वस्तु ,व्यक्ति अथवा परिस्थिति में नहीं तो , कम से कम अपनी उसी प्रेयसी से ऎसी प्रीति करें कि आपको उसमे ही आपके "इष्ट" के दर्शन होने लगें ! प्यारे पाठक , धीरे धीरे आपकी स्थिति वैसी ही हो जाएगी जैसी किसी फिल्म के उस किरदार की हुई होगी जो झूम झूम कर गाता है  :" तुझ में रब दिखता है यारां मैं क्या करूं ?" 

अंतर केवल ये होगा कि मुझ पागल के समान आप "तुझमे रब दिखता है " की जगह  "सबमें रब " गाने लगोगे ,! आपको सभी चेतन अचेतन पदार्थों में "रब" के दर्शन होने लगेंगे ! आप  गाओगे --   


"सब में रब दिखता है , यारां मैं क्या करूं" 

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क्रमशः 
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निवेदक :  व्ही . एन .श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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