राम नाम मुद मंगलकारी
विघ्न हरे सब पातक हारी
(अमृतवाणी)
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अब तो ऐसा लगता है जैसे यह भी भूल गया कि अंतिम सन्देश कब भेजा था ? क्या लिखा था उसमे मैंने ? एक बात और बताऊँ अभी अभी जब कम्प्यूटर चालू किया उस क्षण मुझे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि "नया सन्देश" कैसे शुरू किया जाता है ! कुछ समय लगा लेकिन शीघ्र ही "उन्होंने" कृपा कर दी , धीरे धीरे सम्हल गया ! कितनी कृपा है उनकी?
इतने दिनों तक , अपने "प्यारे प्रभु" के मूक आदेश का पालन करके मूक रहा और आज अब उनकी ही आज्ञा तथा कृपा से प्राप्त शक्ति के सहारे मुखर भीहो रहा हूँ ! जितना वह बोल रहे हैं उतना ही लिख रहा हूँ !
लगभग एक सप्ताह पूर्व जब लेखन रुका था , उन दिनों , हम दोनों के (कृष्णा जी और मेरे) मन में एक साथ ही यह प्रेरणा हुई थी कि अगला सन्देश अपने परम कृपालु ,"मंगल भवन अमंगलहारी - दसरथ अजर बिहारी" को "द्रवित "कर उनकी कृपा का आवाहन कर के शुरू करें , लेकिन हम वैसा नहीं कर सके ! मित्रों, विश्वास कीजिए कि उसके बाद हमने कितने ही ड्राफ्ट लिखने शुरू किये लेकिन हर बार अपना "मानुषी अहंकार", आड़े आया ! क्योंकि "उनसे" प्राप्त "प्रेरणा" को बलाए ताख डाल हम कुछ और ही लिखने लगे थे ! उसका फल यह हुआ कि हम शून्य के शून्य बने रहे !
प्रियजन !यूं तो प्रति प्रातः हम स्वामी जी महाराज की यह आदेशात्मक पंक्ति दुहराते हैं
"उत्तम मेरे कर्म हों राम इच्छा अनुसार" ,
पर आपने देखा ही , अक्सर हमसे अनेक कार्य "राम इच्छा" के प्रतिकूल हो जाते हैं !
सो आज - अब और अभी , हम "उनसे" प्राप्त "प्रेरणा-ज्योति" के प्रकाश से अपने " मानवी-अहंकार" के गहन अंधकार को मिटा कर "उनकी" इच्छानुसार ही आगे बढ़ें :
तुलसी ने मानस में मानवता को एक अमोघ मन्त्रात्मक सूत्र दिया है :
मंगल भवन अमंगल हारी , द्रवहु सु दसरथ अजिर बिहारी
इष्ट देव की अहेतुकी कृपा से इसी सूत्र की स्मृति जागी हमारे धूमिल मष्तिष्क पटल पर !
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आज से लगभग २५-३० वर्ष पूर्व कानपूर के प्रयाग नारायन शिवाले के प्रांगण के मंदिर में मुझे राम भजन गायन का सुअवसर मिला , जहां अमृतवाणी सत्संग के सभी सदस्यों के साथ मिल कर हमने तुलसी का यह पद गाया था ! प्रस्तुत है ३० वर्ष पूर्व गाया यह भजन :
राम
मंगल भवन अमंगल हारी , द्रवहु सु दसरथ अजिर बिहारी
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राम जपु, राम जपु , राम जपु बावरे ! घोर भव नीर महुं राम निज नाव रे!!
बावरे बावरे
एक हि साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे ! ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे !!
राम जपु - - - - - बावरे बावरे
भलो जो है पोच जो है दाहिनो जो बाम रे ! राम नाम ही सो अंत सब हीं को काम रे !!
राम जपु - - - - - बावरे बावरे
राम नाम छांड़ी जो भरोसो करे और रे , तुलसी परोसो त्यागि मांगे कूर कौर रे !!
राम जपु - - - - - बावरे बावरे
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निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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