जय शिव शंकर औघडदानी
शिवरात्रि तो लगभग दो महीने पहले फरवरी में ही गुजर गयी ! उस दिन प्रातः से मध्य रात्रि तक कृष्णा जी [ धर्म पत्नी ] ने उपवास रखा था ! एक बात बताऊँ वह अपने सभी व्रत और उपवास बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ सभी औपचारिकताओं का पालन करते हुए निभाती हैं !
उपवास के दिन वह पूरे दिन भोजन नहीं करतीं और दिन भर आध्यात्मिक ग्रंथों का पाठ करतीं हैं ! बहुत आग्रह करने पर वह बीच बीच में मुझे भी अपने आध्यात्मिक अध्ययन में शामिल कर लेतीं हैं और इस प्रकार मुझे भी उनकी व्यास पीठ से कुछ ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है ! बहती भागीरथी में मैं भी अपने हाथ धो लेता हूँ !
अन्य सब देवताओं को छोड़ कर हमारी कृष्णा जी ने शंकर जी की ही उपासना आराधना क्यूँ की उसका कारण जान कर उनके [ कृष्णा जी ] के प्रति मेरी श्रृद्धा भक्ति की भावना आकाश छू गयी ! उनकी सहेलियों ने मुझे बताया कि दक्ष कन्या सती के समान कृष्णा जी को भी बालपन से ही शंकर जी जैसे उदार,सुंदर , सुडौल ,समर्पित सुयोग्य, बम् भोला पति प्राप्ति की मनोकामना जाग्रत हो गयी थी !
उपवास के दिन वह पूरे दिन भोजन नहीं करतीं और दिन भर आध्यात्मिक ग्रंथों का पाठ करतीं हैं ! बहुत आग्रह करने पर वह बीच बीच में मुझे भी अपने आध्यात्मिक अध्ययन में शामिल कर लेतीं हैं और इस प्रकार मुझे भी उनकी व्यास पीठ से कुछ ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है ! बहती भागीरथी में मैं भी अपने हाथ धो लेता हूँ !
अन्य सब देवताओं को छोड़ कर हमारी कृष्णा जी ने शंकर जी की ही उपासना आराधना क्यूँ की उसका कारण जान कर उनके [ कृष्णा जी ] के प्रति मेरी श्रृद्धा भक्ति की भावना आकाश छू गयी ! उनकी सहेलियों ने मुझे बताया कि दक्ष कन्या सती के समान कृष्णा जी को भी बालपन से ही शंकर जी जैसे उदार,सुंदर , सुडौल ,समर्पित सुयोग्य, बम् भोला पति प्राप्ति की मनोकामना जाग्रत हो गयी थी !
आप तो जानते ही हैं कि भारत में बहुधा कुंवारी लड़कियों की माताएं उन्हें अच्छे वर की प्राप्ति के लिए ,शंकर भक्ति की ओर प्रेरित करती हैं और उन्हें जबरदस्ती सोमवार का उपवास रखने को मजबूर करती हैं ! कृष्णाजी ने संभवतः इसी भावना से प्रेरित होकर बचपन से ,स्वेच्छा से ही , स्वान्तः सुखाय , निज स्वार्थसिद्धि के लिए ( सुयोग्य पति प्राप्ति की अभिलाषा से ) ,सोमवार तथा शिवरात्रि का यह व्रत रखना प्रारंभ किया था और वह अपना शिवरात्रि वाला व्रत आज तक निभा रही हैं !
सोमवार वाला व्रत उन्होंने मुझ भोले भाले पति की प्राप्ति के बाद छोड़ दिया ! सच पूछिए तो इस आशंका से भयभीत होकर ,कि कहीं औघढ़दानी शंकर जी , अधिक प्रसन्न हो कर कृष्णाजी को मुझसे भी अच्छा ,"इम्प्रूव्ड मॉडल" का दूसरा पति न प्रदान करदें और मुझे 'अन्सर्विसेबिल' कह कर 'डिस्कार्ड' कर दिया जाये मैंने ही कृष्णाजी से बहुत इसरार और चिरौरी करके उनसे सोमवार का व्रत बंद करवा दिया ! ठीक किया न भैया ? आप ही कहो उस औघडदानी का क्या भरोसा ?
सोमवार वाला व्रत उन्होंने मुझ भोले भाले पति की प्राप्ति के बाद छोड़ दिया ! सच पूछिए तो इस आशंका से भयभीत होकर ,कि कहीं औघढ़दानी शंकर जी , अधिक प्रसन्न हो कर कृष्णाजी को मुझसे भी अच्छा ,"इम्प्रूव्ड मॉडल" का दूसरा पति न प्रदान करदें और मुझे 'अन्सर्विसेबिल' कह कर 'डिस्कार्ड' कर दिया जाये मैंने ही कृष्णाजी से बहुत इसरार और चिरौरी करके उनसे सोमवार का व्रत बंद करवा दिया ! ठीक किया न भैया ? आप ही कहो उस औघडदानी का क्या भरोसा ?
पत्नी पुराण बंद करता हूँ ! अब आत्म कथा सुनाता हूँ :
बचपन में ,बहुधा गर्मियों की छुट्टी में हम "बाबा विश्वनाथ" की नगरी बनारस जाते थे ! कानपूर से बलिया आते जाते समय बनारस बीच में पड़ता है ! इत्तेफाक से १९४० -४५ में जगन्नाथ भैया की पोस्टिंग वहाँ हुई ! तब वह 'अ' विवाहित अथवा 'नव' विवाहित थे इसलिए आजी/ दादी / इया उनके साथ रहती थीं ! आजी के साथ अक्सर मैं भी ,चीटगंज से दसाश्वमेंध घाट गंगा स्नान करने और काशी विश्वनाथ मंदिर में शंकर जी का दर्शन करने जाया करता था ! (वास्तव में , मेरे मन में, गंगास्नान तथा "शिवदर्शन" की लालसा से कहीं अधिक ,बाल सुलभ लालच ,विश्वनाथ गली के रामदेव हलवाई की दुकान से एक दोना गर्मागरम जलेबी प्राप्ति की रहती थी ) ! मेरा नन्हा मन उनदिनों केवल जलेबी खाने की लालच से " बाबा विश्वनाथ " के दर्शन करने को व्याकुल रहता था !
औघडदानी हैं न . इसलिए जलेबी प्रेमी भक्त पर भी उतनी ही कृपा की जितनी सोमवार का व्रत रखने वाली कृष्णाजी पर ! 'बाबा विश्वनाथ' की कृपा से मेरी और कृष्णा जी की जीवन की सभी मनोकामनाएं एक एक कर पूरी होती गयीं ! मुझे मेरी जलेबी मिली (भाई जलेबीबाई नहीं कहूँगा ,कृष्णाजी रूठ जाएंगी ) और कृष्णा जी को उनका "मन जाहि राचा " सोइ, " सहज सुंदर संवारा बर" प्राप्त हुआ ! देखा औघढ़दानी कितने कृपालु हैं ?
और फिर कभी कभी बाबा विश्वनाथ मुझसे अपनी महिमा लिखवाने और गवाने भी लगे !
अक्टूबर २००८ में "उनकी" प्रेरणा से निम्नांकित पद गाया ! इस भजन में एक अंतरे मे मैंने कहा है :
औरन को निज धाम देत हो , हमसे करते आनाकानी
जय शिव शंकर औघडदानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
होस्पिटल के क्रिटिकल वार्ड से , मैं उनके निजधाम तक पहुंच गया था
पर उन्होंने मुझे लौटा कर द्वार बंद कर लिये !
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भजन सुन लीजिए :
ओम नमः शिवाय
ओम नमः तुभ्यम महेशान , नमः तुभ्यम तपोमय ,
प्रसीद शम्भो देवेश, भूयो भूयो नमोस्तुते !
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जय शिव शंकर औघडदानी
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
सकल बिस्व के सिरजन हारे , पालक रक्षक 'अघ संघारी'
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
हिम आसन त्रिपुरारि बिराजें , बाम अंग गिरिजा महरानी
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
औरन को निज धाम देत हो , हमसे करते आनाकानी
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
सब दुखियन पर कृपा करत हो हमरी सुधि काहे बिसरानी
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
"भोला"
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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