सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के मुखारविंद से मुखरित उनकी प्रिय धुन
परमगुरू जय जय राम
परमगुरू जय जय राम
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महापुरुषों का कथन है :
परमेश्वर अथवा परमात्मा 'स्थूल काया धारी कोई 'व्यक्ति'' विशेष नहीं है ! वह एक निराकार अदृश्य 'शक्तिपुंज' है ! वह कोई पदार्थ नहीं है - वह ऊर्जा है ! प्रियजन ,वह नजर न आने वाला 'अनामीव्यक्ति ,'अकालपुरुष' - 'परम पिता परमेश्वर' ,सकल मानवता का , विश्व के सब धर्मों के अनुयायियों का , एकमात्र "परमगुरु " हैं !
वह 'परमात्मा' कहा जाने वाला अदृश्य "शक्ति पुंज" अपनी अनंत करुणा के प्रसाद स्वरूप भाग्यशाली मनुष्यों को उनके जीवन काल में उनके मार्गदर्शन हेतु उन्हें उनके "सदगुरु" से मिला देता है !
परमेश्वर की अहेतुकी कृपा से ,परमेश्वर के द्वारा ही मनोनीत- नियुक्त ,यह सद्गुरु ,उस भाग्यशाली जीव के समक्ष सहसा अवतरित होकर , "परमेश्वर" की प्रेरणा से ही उस जीव को अपना शिष्य स्वीकार करता हैं और उसे विधिवत दीक्षित करता है !
इस परमसत्य को उजागर करते हुए , सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महराज ने कहा है
भ्रम भूल में भटकते उदय हुए जब भाग
मिला अचानक गुरू मुझे जगी लगन की जाग
इस प्रकार भाग्योदय के उपरांत अचानक ही मिल जाता है भाग्यशाली लोगों को उनका वह सद्गुरु ;जो संत कबीर के शब्दों में अपने शिष्यों को , सहज ही वह "अनहद शब्द" सुना देता है , वह निरभय पद परसा देता है जो पर्वत की कन्दराओं में वर्षों की तपस्या करने के बाद भी योगियों सन्यासियों को नहीं प्राप्त होता !
कबीर कहते हैं , यह "सद्गुरु" अपने शिष्यों को दुर्लभ निरभय पद" प्रदान करवा देता है ! वह "सत्य प्रेम का प्याला" भर भर कर स्वयम तो पीता ही है उसका रसास्वादन अपने शिष्यों को भी कराता है तथा उनका जीवन भी परमानंद से भर देता है !
अपनी निजी अनुभूतियों के आधार पर आज मैं दृढता से कह सकता हूँ कि महापुरुषों का उपरोक्त कथन अक्षरशः सत्य है !अधिकतर मानव आजीवन सद्गुरु की खोज में मंदिर मंदिर द्वारे द्वारे भटकते ही रहते हैं पर उन्हें वास्तविक सद्गुरु नहीं मिलता !
तुलसी का कथन है कि पूर्ण समर्पण के साथ जब हम उस परम कृपालू , परमपिता परमेश्वर -परमगुरु की शरण में आते हैं तब् हमको निश्चय ही सद्गुरु मिल जाते हैं !परम गुरू इतना दयालु है ,उदार है कि बिनु सेवा के ही द्रवित हो कर आपको आपके प्रियतम से मिला देता है आपका इष्ट आपको कभी भी निराश नहीं करता ! !
इन भावों से ओतप्रोत , तुलसी की एक रचना सुना रहा हूँ :
"ऐसो को उदार जग माँहीं"
ऐसो को उदार जग माही
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर राम सरिस कोऊ नही
जो गति जोग बिराग जतन कर नहीं पावत मुनि ज्ञानी ,
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी
ऐसो को उदार जग माही
जो सम्पति दस सीस अरप करी रावण शिव पह लीन्हीं
सो सम्पदा विभीषण कह अति सकुचि सहित हरि दीन्हीं
ऐसो को उदार जग माही
तुलसिदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो
तो भज राम काम सब पूरन करहिं कृपानिधि तेरो
ऐसो को उदार जग माही
[ तुलसीदास ]
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निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
श्रीमती श्रीदेवी कुमार
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निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
श्रीमती श्रीदेवी कुमार
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5 टिप्पणियां:
अति सुन्दर!
काकाजी प्रणाम बहुत ही मधुर संगीत और आप की आवाज !
परमप्रिय स्मार्ट जी - "परमगुरु" की' प्रेरणा और "उनसे" ही प्राप्त क्षमता से सम्पन्न कार्य की सुंदरता का श्रेय भी केवल "उनको" ही है ! नत मस्तक हूँ "उनके" समक्ष ! हार्दिक आभार एवं धन्यवाद स्वीकारें ! शुभाकांक्षी -- अंकल "भोला"
वह निराकार भी है, साकार भी | वह शून्य भी है, असीम भी | वह व्यक्ति भी है, शक्ति / ऊर्जा पुंज भी | उसके बारे में कोई भी चीज़ "वह यह है" भी नहीं कही जा सकती, और "वह यह नहीं है" भी नहीं कही जा सकती |
स्नेहमयी शिल्पा जी ,थोड़े में ही आपने सब कुछ कह दिया ! आभारी हूँ ! धन्यवाद
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