स्वामी विवेकानंद जी
के प्रेरणादायक सूत्रात्मक
संदेश
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उनके जीवन का हर इक पल "ईश्वर का संदेश" बन गया ,
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उनके जीवन का हर इक पल "ईश्वर का संदेश" बन गया ,
वह जब बोले जो भी बोले ,"आध्यात्मिक उपदेश" बन गया !
"सूत्र" सरिस उनका वचनामृत भाव पूर्ण उनका वह गायन,
तमस मिटा जिज्ञासु हृदय में भरता गया ज्योति मनभावन !
उनसे मानव-धर्म समझ, जग अवगत हुआ हिंदु दर्शन से ,
उनको "विश्वगुरू" स्वीकारा सकल जगत ने हर्षित मन से !
[भोला]
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आत्मोत्थान प्रेरक स्वामी जी के फुटकर वचन
२. आत्मगौरव बढाओ !
सच्चे और सहनशील बनो ! ईर्ष्या तथा अहंकार को दूर कर दो !
संगठित हो कर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो ! सबके सेवक बनो !
३ आत्म विश्वास रखो !
तुम अपनी आत्मशक्ति से सारे संसार को हिला सकते हो !
किसी बात से तुम निराश और निरुत्साहित न हो !
ईश्वर की कृपा तुम्हारे ऊपर बनी हुई है ! इस पृथ्वी पर कौन है ,जो तुम्हारे मंगलकारी
कर्मों की उपेक्षा कर सकता है !
४. आत्म निर्भर बनो !
शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो !
बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा हो कर कार्य करना चाहिए !
तुममें सब शक्तियाँ विद्यमान है ! अपनी शक्तियों और क्षमताओं को पहचानों ;
उनका आंकलन करो ! तुम्हारी क्षमता असीम है ! इन्हें किसी दायरे में न बांधो !
५. सत्यनिष्ठ ,पवित्र और निर्मल रहो तथा आपस में न लड़ो !
अपना एश्वर्यमय स्वरूप विकसित करो !
६ दिव्य जीवन जियो, जो सत्य है ,उसे निर्भयता से सबको बताओ !
७ मानव सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाओ !
हम जितनी अधिक दूसरों की सेवा करेंगे ,प्राणिमात्र का भला करेंगे
हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें बसेंगे !
८. मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष में सदा अटल रहो!
९. आप जैसा सोचेंगे वैसा ही बनेंगे!
१०. भाग्य केवल बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का साथ देता है !
११. मौन क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है
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"शिक्षा" विषयक वक्तव्य :
२. अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है !
३. जीवन पाठशाला है और जीना ही शिक्षा है !
४. शिक्षा ऎसी हो जो मनुष्य को चरित्रवान बनाए !
५ शिक्षा मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाकर उसका सर्वतोमुखी विकास करती है !
६. शिक्षा ऎसी हो जो मनुष्य को दांनव नहीं मानव बनाये !
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"धर्म" सम्बन्धी सूत्र :
१. धर्म-पालन ही मनुष्य के आत्मोन्नति का यथार्थ उपाय है !
२ धर्म के पालन से मन का विकास करो , मन को संयमित रखो !
३. धर्म का रहस्य आचरण से जाना जाता है !
४. सच्चे बनो तथा सच्चा बर्ताव करो ! इसमें ही समग्र धर्म निहित है !
५. मानव सामर्थ्यशाली बने , निरंतर कर्मशील बने ,निरंतर संघर्ष करे और निःस्वार्थ
बनने का प्रयत्न करे ! सब धर्मों का सार यही है !
६. नीति परायणता तथा साहस को छोड़ कर और कोई दूसरा धर्म नहीं है !
७. सबको आत्मरूप मानकर प्राणीमात्र से प्रेम करो ! अंत में प्रेम की ही विजय होगी
८. मानव सेवा ही सर्वोच्च धर्म है !
सभी जीवंत ईश्वर हैं इस भाव से सबको देखो , यदि नहीं देख पाओ तो उन्हें
आत्मरूप अनुभव करो ! उनकी सेवा करो !
९. अपने इष्ट [ईश्वर] की समर्थता पर अटूट विश्वास रखो !
१०. अपनी हर सफलता में अपने 'इष्ट' के सहयोग को स्वीकारो !
११. जीवन की हर अप्रिय व दुखद घटना, ईश्वर में हमारे विश्वास की परीक्षा लेती है!
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से संबंधित साहित्य से संकलित =========================================
निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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