बुधवार, 12 जून 2013

स्वामी अखंडानंद जी द्वारा "बाबू" का मार्ग दर्शन

अनंतश्री स्वामी अखंडानंद जी महाराज
एवं
उनके स्नेहिल कृपा पात्र 

                                    माननीय शिवदयाल जी श्रीवास्तव
गतांक - (१ जून २०१३ के अंक) से आगे 
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गृहस्थ संत माननीय श्री शिवदयालजी तथा अनंतश्री स्वामी अखंडानंदजी महाराज के  पारस्परिक सम्बन्ध अत्यंत घनिष्ट एवं आत्मीय  थे ! जब भी अवसर मिलता पूज्य बाबू महाराजश्री से जबलपुर, वृन्दावन , बम्बई तथा ऋषिकेश के आश्रमों में जहां कहीं भी स्वामी जी होते,मिलते रहते थे ! केवल बाबू ही नहीं अपितु समस्त " राम परिवार " ही महाराजश्री की विशिष्ट कृपा से कृतकृत्य था ! और जैसा आप जानते हैं प्यारे प्रभु की असीम अनुकम्पा से तथा कदाचित अपने पूर्व जन्म के शुभ संस्कारों के फलस्वरूप, इस अधमाधम प्राणी "भोला" को भी परम पूज्य बाबू के इस सत्संगी परिवार में शामिल होने का अवसर मिल गया था ! अस्तु पूज्य बाबू की शुभ प्रेरणा से मुझ नाचीज़ को भी महाराजश्री के दर्शन एवं उनके सानिध्य का लाभ तो होना ही था और हुआ भी ! 

२२ मई वाले आलेख में मैंने अपनी एक कहानी शुरू की थी जिसमे बम्बई में पहली बार  "मुकेश नाईट" ,"रफी नाईट" आदि से टक्कर लेने हेतु कुछ आस्तिक महापुरुषों द्वारा आयोजित, सर्व प्रथम "भगवान राम नाईट" के विषय में लिखा था !  उस ब्लॉग में मैं असल में जो विशेष बात आपको बताना चाहता था वह अधूरी रह गयी थी! अस्तु मैं सक्षेप में पहले वह अधूरी कहानी पूरी कर लूँ उसके बाद , पूज्यनीय बाबू एवं स्वामी अखंडानंद जी के पारस्परिक स्नेहिल सम्बन्ध की बहुत सी बातें बताउंगा ! तो सुनिए -

१९७०-७१  की बात है इसलिए ,ठीक से याद नहीं कि वह साउथ बम्बई का " भूलाभाई देसाई  सभागार" था अथवा "बिरला मातुश्री सभागार" - जो भी रहा हो, निश्चित समय पर उस विशाल सभागार की बत्तियाँ बुझ गयीं ! स्टेज पर हम सब 'कलियुगी भक्तों'- भजनीक कलाकारों पर तेज रोशनी की बौछार पड़ने लगी , हमारी आँखें चौधिया गयीं फलस्वरूप हमे स्टेज के अतिरिक्त बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ! 

हाँ तो फिर - ओमकार के दिव्य शंखनाद से कार्यक्रम का श्रीगणेश हुआ ! तत्पश्चात हमने संत - महात्माओं की आध्यात्मिक भावनाओं से युक्त रचनाओं के गायन द्वारा " चौरासी लाख विभिन्न योनियों में भटकने के बाद , ईश्वरअंश अविनाशी जीव द्वारा नश्वर पंचतत्व-निर्मित-मानव-काया में प्रवेश करने से लेकर उसके वहाँ से बहिर्गमन तक की समग्र जीवनयात्रा का विवरण प्रस्तुत किया "!

कबीर के शब्दों में कपास से सूत कातने ,सूत से झीनी झीनी चदरिया बुनने ,उसे रंगने,उस पचरंगी चुनरी को जीवन भर ओढने, ठगनी माया के कुप्रभाव से उसे मैला करने तथा संतों के सत्संग में आत्मज्ञान के साबुन से उस पंचरंगी चुनरिया के धुल जाने तक की सारी कथा हमने धीरे धीरे अपने गायन द्वारा उस मंच पर प्रस्तुत की ! 

तुलसी के इस सारगर्भित निष्कर्ष से कि अविनाशी जीव ईश्वर अंश है -[ "ईश्वर अंश जीव अविनासी ,चेतन अमल सहज सुखरासी"] से हमारा कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ और , "कबहुक कर करुना नर देही , देत ईस बिनु हेतु सनेही " होता हुआ उस स्थिति तक गया जहां जीव का मानव तन सांसारिक सुखों से खेलते खेलते अपने जनक परमपिता को भुला कर अतिशय दुःख झेलने लगा ! अंत में सत्संगो से आत्मज्ञान मिलने पर वह अपने मन को कोसता और कहता है " रे मन मूरख जनम गवायो ! कर अभिमान विषय सो राच्यो , नाम सरन नहीं आयो " [सूरदास] ! इस आत्म ज्ञान के होते ही जीव पर "प्रभु" की विशेष कृपा हो जाती है , उसका भाग्योदय होता है और उसे सद्गुरु की प्राप्ति होती है ! वह कह उठता है " भ्रम-भूल में भटकते उदय हुए जब भाग , मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग " [स्वामी सत्यानन्द जी] ! गुरु उसे बताते हैं कि "जन्म तेरा बातों ही बीत गयो-तूने अजहू न कृष्ण कह्यो" [कबीर] ! गुरु आदेश से वह परम पिता से प्रार्थना करता है -" तू दयालु दीन हौं तु दानी हों भिखारी - हौं प्रसिद्ध पातकी तू पाप पुंज हारी "[तुलसी] अपने मन को आदेश देता है "भज  मन राम चरण सुखदाई" तथा "श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरन भव भय दारुणं" [तुलसी] और अन्ततोगत्वा जीवन मुक्त होजाता है ! 

कार्यक्रम के अंत में हमने श्री हनुमान चालीसा गाई ! जी हाँ 'हमारे राम जी से राम राम कहियो जी हनुमान ' की टेक वाली ही ! सभी दर्शक हमारे साथ तालियाँ बजा कर झूम झूम कर हनुमान चालीसा गा रहे थे ! हनुमान जी के दिव्य प्रताप से सभागार का वातावरण पूर्णतः राम मय हो गया था ! 

तभी अचानक ही संचालकों ने स्टेज पर पड़ने वाली लाईट कुछ कम करवादी जिससे  हमारी आँखों की चकाचौन्ध भी कम हो गयी और हमने देखा कि एक विशेष "बेबी" फ़ोकस  लाईट" घूमती फिरती उस विशाल हाल के "सेंट्रल आइल" के बीचो बीच ,ठीक हम सब भजनीकों के सन्मुख एक बड़ी सी आराम कुर्सी पर विराजमान  एक  भगवा वस्त्रधारी तेजस्वी  देव मूर्ति पर पडी ! वह महात्मा अति एकाग्रता से ह्नुमान -चालीसा गायन में हमारा साथ भी दे रहे थे ! 

प्रियजन क्यूंकि इस कार्यक्रम के पब्लिसिटी फ्लायर्स , पोस्टर्स तथा विज्ञापनों में कहीं भी यह नही कहा गया था कि कोई विशेष संत महापुरुष हमारे इस कार्यक्रम को अपने आशीर्वाद से नवाजेंगे ,हम यह नहीं जानते थे कि वह महापुरुष कौन हैं !  प्रियजन विश्वास करें कि मैं कतई नहीं जानता था कि सभागार में पूरे कार्यक्रम के दौरान हमारे सन्मुख  मूर्तिवत समाधिस्थ से बैठे  वह तेजस्वी महापुरुष कोई और नहीं वरन अनंतश्री स्वामी अखंडानंदजी महाराज ही थे !

प्रियजन मेरा यह कैसा सौभाग्य था कि जिन दिव्य विभूति के दर्शनार्थ मैं कभी कानपूर की धूलभरी सड़कों पर मौसम की उग्रता झेलता हुआ सायकिल पर घंटों भटकता रहता था , वह महात्मा  आज स्वयम हमारे सन्मुख विराजमान थे  और उनकी अनंत ममतामयी ,करुणामयी कृपा दृष्टि हम सब गायकों पर लगातार डेढ़ घंटे तक अपना आशीर्वाद   बरसाती रही थी ! 

महाराजश्री की उपस्थिति से संचरित ऊर्ध्वगामी ऊर्जा का प्रताप था कि उस सायं सभी श्रोता अपनी सुधबुध बिसरा कर भजन के आनंद सागर में आकंठ डूब गए ! मुझे अभी भी याद है कि कार्यक्रम समाप्त होने के बाद कितने ही क्षणों तक श्रोता स्तब्ध से अपनी सीटों पर बैठे रह गये थे  ! हाल में "पिन ड्रॉप" शान्ति बिफरी रही !  

मेरे जीवन का वह एक अविस्मरणीय  दिन् था ! पाठकजन ,उस सायं मेरे जैसे सब विधि हींन् दीन जन को  "निज जन जानि राम -- संत समागम दीन "!  यह वह शाम थी जब केवल मैं ही नहीं वरन सभी गायक  ,सभी श्रोता एवं आयोजक  महाराजश्री के आकस्मिक दर्शन से धन्य धन्य हो गये थे !

मेरे प्रभु मुझपर कितने कृपालु हैं उसका अंदाजा आपको दे न् सकूंगा ! प्रियजन मेरा मुम्बई प्रवास मेरे जीवन का वह मधुर अंश था जब प्यारे प्रभु ने मुझे "छप्पर फाड़ कर" अपनी करुणा से विभूषित किया ! मुम्बई प्रवास के दौरान ही प्यारे प्रभु ने मुझे महाराजश्री से मिलने और उनकी असीम कृपा प्राप्ति के कितने ही अन्य सुअवसर भी प्रदान किये ! महाराजश्री से मिलन का एक सुअवसर जिसमे मुझे अतिशय आनंद की अनुभूति हुई उसका विवरण आपको भी  सुनाना चाहता हूँ ! सुनिए - 

सन १९७१ में ही  सौभाग्यवश ,परमपूज्य बाबू किसी निजी कार्य से मुम्बई पधारे ! उन दिनों महाराजश्री मुम्बई में ही थे ! अवकाश मिलते ही बाबू ने महाराजश्री से मिलने का कार्यक्रम बनाया और 'मालाबार हिल'स्थित महाराजश्री के "विपुल" वाले आश्रम में हम सब - मैं ,मेरी बहिन  माधुरी और मेरे बहनोई श्री विजय बहादुर चन्द्र के साथ उनके दर्शनार्थ गये ! हम सब कितने भाग्यशाली थे कि उनके श्री चरणों के निकट बैठ कर परम शांति का अनुभव करते हुए उनके अमृत तुल्य वचनों का आनंद उठा सके ! 

उस दिन की सबसे आनंदप्रद बात यह रही कि महाराजश्री ने जहां एक ओर हमे अपनी सरस और सरल भाषा में आध्यात्मिकता युक्त जीवन जीने की कला बताई वहीं दूसरी ओर उन्होंने स्वयम अपने हाथों से परस कर हम सब को अति सरस भोजन भी कराया ! मुझे याद है कि महाराजश्री ने अपने चौके  में ही बैठा कर  बड़े प्रेम से आग्रह कर कर के हमे अन्य व्यंजनों के साथ ,"सेब" [एपिल] की पूरियां और लौकी तथा दही आलू की तरकारी खिलाई थी ! जीवन में पहली और अंतिम बार हमने सेव की अमृत-रस-भरी   पूरी का प्रसाद पाया ! गदगद हो जाता हूँ जब याद आती है, उनकी वह मनोहारी छवि जिसमें  वह झुक झुक कर प्यार से मुस्कुराते हुए  हमारी थाली में भोजन परोसते थे !

सन १९७५ नवम्बर में गयाना [दक्षिण अमेरिका] जाने से पूर्व हम सपरिवार उनके दर्शन करने तथा उनके आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु उनसे मिले ! उस दिन महाराजश्री ने मेरे ज्येष्ठ पुत्र राम रंजन को आशीर्वाद स्वरुप 'श्री राम दरबार'  का एक मनोहारी चित्र प्रदान किया ! राम रंजन ने उस चमत्कारिक चित्र में अंकित अपने इष्ट की क्षत्र छाया में आजीवन आशातीत सफलता पाई ! स्वामीजी की इस अहैतुकी कृपा के लिए मेरा रोम रोम उनके प्रति कृतज्ञ  है ! 

पूज्य बाबू के सौजन्य से ही मुझ जैसे क्षुद्र प्राणी को इन देवतुल्य संतात्मा महाराजश्री से इतना प्यार-दुलार मिला तो स्वयम बाबू पर महाराजश्री की कितनी कृपा होगी ,यह  जानने के लिए अगला आलेख पढ़ें !
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क्रमशः 
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निवेदक : व्ही .  एन .  श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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चा
ख राम को करे कर्म से काम !

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