"गुरु पर्व"
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर
समग्र मानवता को
अनंत बधाइयाँ
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आप माने न माने इस विश्व में निगुरा कोई नहीं है
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मेरे परमप्रिय पाठकगण,
(गतांक की अधूरी कथा गुरु प्रदत्त प्रेरणा की अगली खेप मिलने पर पूरी करूँगा !
आज मिली खेप के आधार पर निम्नांकित आलेख प्रस्तुत है )
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'परम सत्य' से मिलन की ऎसी ही उत्कट चाह ने अपने स्वामी जी महाराज जी को १९ वर्ष की किशोरावस्था से ही , उन दिनो भारत में प्रतिष्ठित जैन धर्म तथा आर्य समाज को भली भाँति परखने की प्रेरणा दी तथा उन्हें इन धार्मिक शिविरों में लगभग ४५ वर्षों तक भ्रमण करने और उनकी सेवा करने को प्रेरित किया था ! इस अवधि में स्वामीजी ने इन धर्मों में गहराई तक पैंठ कर उनका सघन अध्ययन एवं अनुभव किया ! इन धर्मों की साधना से आंतरिक जिज्ञासा की तृप्ति न होने पर स्वामी जी ने हिमांचल प्रदेश में एकान्तीय साधना प्रारंभ की !
भाग्योदय होते ही ६४ वर्ष की आयु में , सात जुलाई १९२५ को डलहौजी के "परम धाम" में लगभग ३० दिन की गहन "एकान्तीय तपश्चर्या" के बाद, स्वामीजी के "निराकार 'परमगुरु' श्री राम" की प्रेरणामयी असीम करुणा एवं अनुकम्पा से उन्हें " परम सत्य , ज्योतिस्वरूप , नाद-ब्रह्म श्री राम का साक्षात्कार हुआ ! उनके सन्मुख अचानक ही सर्वशक्तिमान परमात्मा "श्रीराम" का प्रागट्य हुआ ! इस चमत्कारिक अनुभूति को उजागर करते हुए महाराज जी ने "भक्ति प्रकाश" में कहा :
भ्रम भूल में भटकते , उदय हुए जब भाग !
मिला अचानक 'गुरु' मुझे लगी लगन की जाग!!
परम गुरु"राम "की इस अहेतुकी कृपा के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए स्वामीजी महाराज ने "भक्ति प्रकाश" के "शब्द प्रकाश" खंड में कहा:
उनका रहूँ कृतज्ञ मैं , मानूँ अति आभार !
जिसने अति हित प्रेम से,मुझपर कर उपकार !!
दिया दीवा सुदीप्ता , परम दिव्य हरि नाम !
पडी सूझ निज रूप की , जिससे सुधरे काम !!
प्रियजन , हम सब जीवों को साकार गुरुजनों ने दीक्षित किया है ! तनिक विचार करें अपने "सद्गुरु देव" की कृपा एवं आशीर्वाद के बिना हमारी स्थिति कैसी होती ? क्या होता हमारा यदि जीवात्मा एवं परमात्मा के बीच के भ्रम-भूलों के अथाह सागर में हिचकोले खाती हमारी जीवन नैया को पार लगाने वाला "माझी"- हमारा सद्गुरु हमे न मिला होता ?
फिर भी हम, गुरुजन के उपकारों को भुला कर दिन रात अहंकार में डूब कर 'निज गुणगान' एवं 'पर-दोष-दर्शन एवं परचर्चा' में ही व्यस्त रहते हैं !
साधक बन्धुजन हमे अपने छोटे से मानव जीवन में ,प्रति पल ,अपने गुरुजन को ,उनके अनंत उपकारों के लिए अतीव श्रद्धा सहित याद करना चाहिए ! किसी न किसी रूप में हमे उनके प्रति अनुग्रह एवं हार्दिक आभार प्रगट करते रहना चाहिए !
श्रीराम शरणम [लाजपत नगर ] के तीनों गुरुजन ने मुझे "भजन" रचकर और उन्हें गाकर अपने इष्ट श्री राम को रिझाते रहने की प्रेरणा दी !
सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने मुझे मूल मंत्र "राम नाम" प्रदान किया !
श्री प्रेमजी महाराज ने पंजाब के नगर गुरुदासपुर में कदाचित [१९८१-८२ में कभी],मुझसे मीरा बाई का निम्नांकित पद सुनकर मुझे स्वामी जी से प्राप्त "महामंत्र" -"राम नाम" को गा गा कर यथासंभव सर्वत्र प्रचारित करने को प्रेरित किया ! मीरा का वह पद था :
मेरो मन राम हि राम रटे रे
राम नाम जप लीजे प्राणी कोटिक पाप कटे रे ,
जन्म जन्म के खत जु पुराने नाम हि लेत फटे रे
मेरो मन राम हि राम रटे रे
कनक कटोरे इम्रित भरिया पीवत कौन नटे रे ,
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी तनमन ताहि पटे रे
मेरो मन राम हि राम रटे रे
[यहाँ नहीं ,आप यह भजन यू ट्यूब के भोलाकृष्णा चेनेल पर सुन सकते हैं]
सर्वदा स्मरणीय डॉ.श्री विश्वामित्र जी महाराज ने तो मुझको कुछ ऎसी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा प्रदान कर दी जिससे मुझे भजन गायन ;उनकी शब्द-रचना एवं स्वर रचना की अभूतपूर्व क्षमता प्राप्त हो गई !
मेरे मानस से स्वतः,प्राक्रतिक निर्झरों के समान , श्री राम शरणम के इन तीनों गुरुजनों के आध्यात्मिक चिंतन संजोये भजनों की रचना एवं गायन का प्राकट्य होने लगा !
महाराज जी की मंत्रणा प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से "श्याम हमे बाँसुरी बनाओ" "मेरे मन मंदिर में राम बिराजें" ,"राम हि राम ,और नाही काहू सो काम" ,"कब सिमरोगे राम अब् तुम ", "दाता राम दिए ही जाता","राम राम काहे ना बोले","बोले बोले रे राम चिरैया"तथा "तुझसे हमने दिल है लगाया", आदि भजनों की रचना हुई !
इन रचनाओं में से एक जो महाराज जी को बहुत पसंद आई थी ,मैं आज गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर आप सभी पाठकों को सुना रहा हूँ !
भज मन मेरे राम नाम तू , गुरु आज्ञा सिर धार रे
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भवसागर पार रे
राम नाम मुद मंगल कारी ,विघ्न हरे सब पातक हारी
सांस सांस श्री राम सिमर मन पथ के संकट टार रे
भज मन मेरे राम नाम तू , गुरु आज्ञा सिर धार रे
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
परम कृपालु सहायक है वो। बिनु कारन सुख दायक है वो।
केवल एक उसी के आगे। साधक बाँह पसार रे।
भज मन मेरे ...
गहन अंधेरा चहुं दिश छाया । पग पग भरमाती है माया।
परम कृपालु सहायक है वो। बिनु कारन सुख दायक है वो।
केवल एक उसी के आगे। साधक बाँह पसार रे।
भज मन मेरे ...
गहन अंधेरा चहुं दिश छाया । पग पग भरमाती है माया।
जीवन पथ आलोकित कर ले । नाम - सुदीपक बार रे।
भज मन मेरे ...
परम सत्य है परमेश्वर है । नाम प्रकाश पुन्य निर्झर है ।
उसी ज्योति से ज्योति जला निज। चहुं दिश कर उजियार रे।
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
भज मन मेरे ...
परम सत्य है परमेश्वर है । नाम प्रकाश पुन्य निर्झर है ।
उसी ज्योति से ज्योति जला निज। चहुं दिश कर उजियार रे।
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भव सागर पार रे
प्रियजन यदि आप यह वीडियो नहीं देख पायें तो कृपया निम्नांकित यू ट्यूब के लिंक पर जाएँ :
http://youtu.be/ncnjnkwz9Yw
निवेदक : व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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2 टिप्पणियां:
ज्ञान की ज्योत जगाई
भक्ति की अलख लगाई
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाती
आनन्दघन से कहाँ मिल पाती
धन्य धन्य हो गयी आज
जो खुदाई नूर से हो गयी लाल
काका और काकी जी को प्रणाम ।
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