"गुरु ही ईश्वर गुरु ही राम"
परमात्मा श्री राम को परमगुरु स्वीकारते हुए
हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने कहा था :
"भगवान (ईश्वर) ही युग युग में गुरु रूप धारण करते हैं !
भगवान के उस गुरु रूप में ही साधकों पर भगवत कृपा अवतीर्ण होती है
जो उनका (साधकों का) आस्तिकवाद बनाए रखती है !
आस्तिक भाव से आराधन करनेवालों के
अन्तः करण में गुरु का आशीर्वाद बस जाता है !
गुरुजन के आशीर्वाद से
समस्त मानव -मंडल सुधरता है तथा
सम्पूर्ण जगत में मंगल का संचार होता है "
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पूर्णतः समर्पित ,शरणागत साधक के लिए अविस्मरणीय होता है उसके जीवन का एक एक पल ! क्यूँ ? ! विश्वास करें , जीवन भर निरंतर मिलने वाले, उसके गुरुजनों के आशीर्वाद के फल स्वरूप उस पर सतत होती रहती है आनंददायनी "प्रभु कृपामृत" की वर्षा ;जो उसे पल भर को भी उसके गुरुजन एवं इष्ट के स्मरण से दूर नहीं होने देती !
गुरु के मंगलदायी चरणों में उसका ध्यान लगा रहता है ,वह अपने सद्गुरु के मनभावन नाम तथा उनके श्री चरणों में चारों धाम के दर्शन करता है !-
बड़ी बेटी श्री देवी की नन्द श्रीमती "सौम्या राम" जो "बहरीन" यू ए ई में रहती हैं, उन्होंने अपने इंग्लिश भाषा के आध्यात्मिक ब्लॉग "Soumya's Gitaaonline" के अंतर्गत भारतीय संगीत शिक्षण की एक योजना बनाई है ! प्रथम प्रयास में उन्होंने एक सुंदर गुरुभक्ति -रस से रंजित भजन सिखाया है ! हमें इस भजन का एक एक शब्द गुरु महिमा को उजागर करते हुए अत्यंत सार्थक लगा तथा इसकी धुन भी बहुत कर्णप्रिय लगी !
प्रियजन , कुछ दिनों पहले मैंने वायदा किया था कि भविष्य में मैं अपने ब्लॉग के द्वारा कलियुग में मोक्ष प्राप्ति के सरलतम साधन "भजन-कीर्तन "के गायन के प्रशिक्षण का प्रयास करूँगा ! खेद है कि अपनी अस्वस्थता के कारण आज तक यह कार्य प्रारम्भ न कर सका! परन्तु प्रसन्नता इस बात की है कि मेरी अतिशय प्रिय एक दक्षिण भारतीय बिटिया"सौम्या" ने अपनी ब्लॉग श्रंखला में,हिन्दी भाषा में भजन प्रशिक्षण का श्रीगणेश कर दिया है ! मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं हैं उसके इस अभियान के लिए और यह लिखते समय मैं उसे मन ही मन बहुत बहुत आशीर्वाद दे रहा हूँ !
महाबीर बिनवौ हनुमाना के वे पाठक जो नये भजन सीखना चाहते हैं अति सुगमता से यह भजन सीख सकते हैं ! सौम्या बेटी ने उस भजन का वीडियोकृत रूप भेजा है जिसे मैं नीचे दे रहा हूँ ! इस वीडियो मे सीखने वालों की सुविधा के लिए, इस भजन के शब्द हिन्दी भाषा की 'देवनागरी' लिपि के साथ साथ अंग्रेजी की 'रोमन' लिपि ( इंग्लिश के अक्षरों ) में भी अंकित हैं !
भजन
मन भावन मेरो सत्गुरु नाम् ,गुरु चरणो में चारों धाम्
गुरु नॆ मिटाई विषय वासना ,गुरु ने जगाई भक्ति भावना
गुरु निर्मल् मेरो गुरु निष्काम् , गुरु चरणो में चारों धाम्
मन भावन मेरो सत्गुरु नाम् ,गुरु चरणो में चारों धाम्
गुरु चरणो में चारों धाम्
मन भावन मेरो सत्गुरु नाम् ,गुरु चरणो में चारों धाम्
गुरु ने सिखाई सच् कि साधना ,जप्-तप् निष्ठा नित्योपासना
गुरु ही ईश्वर् गुरु ही राम् ,गुरु चरणो में चारों धाम्
मन भावन मेरो सत्गुरु नाम्, गुरु चरणो में चारों धाम्
अविचल प्रीत् कि रीत् सिखा दो, गुरुवर नैय्या पार् लगादो
लीजो मेरो कोटि प्रणाम् , गुरु चरणो में चारों धाम्
मन भावन मेरो सत्गुरु नाम् ,गुरु चरणो में चारों धाम्
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(इस भजन के शब्दकार, स्वरकार के नाम नहीं ज्ञात हैं,
गायिका श्रीमती "श्रीविद्या रंगराजन" हैं )
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गायिका श्रीमती "श्रीविद्या रंगराजन" हैं )
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मुझे पूर्ण विश्वास है कि सौम्याबेटी का यह प्रयास विदेशों में बसे भारतीयों को जहां एक ओर ,योगेश्वर श्री कृष्ण की श्रीमदभगवत गीता के गूढतम रहस्यों से अवगत करायेगा वहीं भजनों द्वारा केवल नाम सुमिरन करके भवसागर पार करने की सुविधाजनक विधि भी बताएगा !
कुछ निज अनुभूति से बताऊँ :
गुरु की दृष्टि से ,शब्द से और स्पर्श से साधक की आत्मिक शक्ति जगती है ! साधक जहां भी जाए ,जो भी करे ,जो भी सोचे ,गुरु सदैव उसके साथ रहते हैं ! नाम के कारण गुरु और शिष्य का संबंध बड़े उत्तरदायित्व का बन जाता है ! यह सम्बन्ध इस लोक से परलोक तक दोनों (गुरु शिष्य ) के बीच दृढता से बना रहता है और सब प्रकार से शरणागत साधक का आत्म जागरण एवं कल्याण करता है !
कुछ निज अनुभूति से बताऊँ :
गुरु की दृष्टि से ,शब्द से और स्पर्श से साधक की आत्मिक शक्ति जगती है ! साधक जहां भी जाए ,जो भी करे ,जो भी सोचे ,गुरु सदैव उसके साथ रहते हैं ! नाम के कारण गुरु और शिष्य का संबंध बड़े उत्तरदायित्व का बन जाता है ! यह सम्बन्ध इस लोक से परलोक तक दोनों (गुरु शिष्य ) के बीच दृढता से बना रहता है और सब प्रकार से शरणागत साधक का आत्म जागरण एवं कल्याण करता है !
प्रियजन ; नाम चाहे सद्गुरु का हो अथवा परमगुरु परमेश्वर के अनंत नामों में से कोई एक हो, सच्चा नामाराधक, भवसागर तो पार कर ही लेगा ! तुलसी की अनुभूति पर आधारित है उनके ये उदगार -----
कलियुग केवल नाम अधारा !
सुमिर सुमिर जन उतरहि पारा !!
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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