बुधवार, 14 जनवरी 2015

उनकी याद में जियें

 "उनका" स्मरण होना -"उनकी" याद का आना 
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प्रज्ञाचक्षु स्वामी शरणानंद जी महाराज के प्रेरणाप्रद प्रवचनों पर आधारित 
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 हमे "उसकी"ही याद आती है जिससे हमारा प्यार का कोई नाता होता है  ! "
 यदि प्रेमास्पद की" याद हर घड़ी बनी रहें तो जानो इस से ही आपके द्वारा उसकी "उपासना" हो गयी !

और जब ऐसा लगने लगे कि अब "उन्हें" याद किये बिना जीना दुश्वार है ,
और हर पल उस प्रेमास्पद की आवश्यकता महसूस होने लगे तब समझो कि 
तुम्हारी आराधना संपन्न हो गयी ,तुम्हारी  दुआ कबूल हो गयी !!  
  
"वह" कौन है जिसकी याद सतत बनाये रखने की सलाह गुरुजन हमे देते हैं  ? 
गुरुजन के शब्दों में ही इस प्रश्न का उत्तर है कि 
"वह "कोई और नहीं ,,हमारा "प्यारा प्रभु" है ! 
प्रभु की अनंत महिमा स्वीकार करके  अबोघ साधक भी अनायास ही "उनकी"स्तुति में  मुखर हो जाते हैं!


अस्तु प्रियजन 
प्रभु से प्रगाढ प्रीति करो
कैसे ?
उनकी महिमा का गान  करो ,
उनका असितत्व स्वीकारो
उसकी महत्ता का अनुभव करो  
इन तीनों साधनों से उनसे आपकी प्रीती प्रगाढ़ होगी 
प्रीति में गहनता आयेगी , उपासना से प्रभु से अपनत्व स्थापित होगा !!

प्रज्ञाचक्षु स्वामी श्र्नानान्द्जी के शब्दों में :

प्यारे प्रभु को 'मेरे नाथ 'कह कर संबोधित करते ही हृदय में भास् होता है कि हम अनाथ नहीं हैं ,कोई हमारा अपना है जो कठिनाइयों की घड़ी में हमारी सहायता करने को सर्वदा ही तत्पर है केवल वह ही हमारा अपना है वह सर्वशक्तिमान है वह सर्वसमर्थ है  !अब आप सोचिये कि ऐसे शक्तिमान और समर्थ रक्षक  के होते हुए हमारे और आपके जीवन में चिंता का कोई स्थान नहीं रह जाता !

इस सन्दर्भ में हमारे आध्यात्मिक गुरुदेव ने एक पत्र में मुझे लिखा कि "याद" कभी एकतरफा नहीं होती"! उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा कि एकदिन वह दिल्ली में साधकों से मेरे [ इस दासानुदास के ] विषय में कुछ बात कर रहे थे कि पोस्ट द्वारा एक विदेशी लिफाफा उनके पास आया जिसके  ऊपर भेजने वाले का नाम श्रीवास्तन - यू एस ए  लिखा था ! सब बोले "महाराज जी हम उनकी बात कर रहे थे और उनका पत्र ही आ गया ! जब वो लिफाफा खुला तो उसमे पत्र किसी अन्य श्रीवास्तव का निकला ! 

लगभग एक सप्ताह बाद महाराज जी को यहाँ अमेरिका से भेजा मेरा पत्र मिला ! महाराजजी उस समय भी उन्ही साधकों से वार्तालाप कर रहे थे , उन्होंने साधकों से कहा कि ७ दिन पूर्व जिस समय वह दिल्ली में मेरे विषय में साधकों से बात कर रहे थे उस समय "मैं" [उनका श्रीवास्तवजी] अमेरिका में उनके नाम पत्र लिख रहा था ! महाराज जी ने इस प्रकार साबित किया कि सचमुच याद एकतरफा नहीं होती ! वास्तविक याद दोनों तरफ से होती है ! महाराज जी ने यहाँ यू एस ए में मुझसे मिलने पर इस संदर्भ का एक शेर भी भी मुझे सुनाय!वह शेर था "मुमकिन नहीं कि आग बराबर लगी न हो "! याद की आग दोनों चोरों पर बराबर ही लगती है !

महाराज जी ने अक्सर यह भी कहा है कि आप प्रभु को तभी याद करोगे जब प्रभु आप पर कृपा करेंगे ,और प्रभु तभी कृपा करेंगे जब प्रभु को आपकी याद आयेगी ! आवश्यक है कि आप इतनी गहनता से प्रभु को याद करें कि प्रभु भी आप को याद करने के लिए मजबूर हो जाएँ !  सिद्ध महापुरुष के चोले में अवतरित गुरुजन साक्षात प्रभु के प्रतिरूप हैं ! देवीसंपदा युक्त समर्थ गुरुजन भी योग्य साधकों पर ऎसी ही कृपा करते रहते हैं !

प्रियजन  

अपने अपने इष्ट देव - प्यारे प्रभु को भजन कीर्तन द्वारा सतत याद करते रहो ! प्रतिउत्तर में प्रभु के प्रसाद स्वरूप उनकी दया वृष्टि तुम्हे सदा आनंदित रखेगी ! भजन कीर्तन गायकी द्वारा  जहां हम उन्हें याद करते हैं वहीं सुनने वाले सभी लोगों को भी "उनकी" याद आ जाती है ! इस निष्काम सेवा के फल स्वरूप प्रभु के प्यारे उनकी महिमा का गान करने वाले साधक सदेव आनंदित रहते हैं ! ,  

अनेकों बार का ऐसा मेरा निजी अनुभव है इससे अधिकार से कह रहा हूँ ! 
हमारी ओर से आप सब प्रिय पाठकों के लिए यह नये वर्ष का विशेष सन्देश है !
"प्रभु को सतत याद करते रहो" 

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निवेदन 
व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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