(गतांक से आगे)
पिछले आलेख मे हम ,सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी के निम्नांकित शब्द गाकर अपने देवाधिदेव "राम" से मांग रहे थे "उनका "अनमोल भरोसा"
मुझे भरोसा राम तू दे अपना अनमोल --
रहूं मस्त निश्चिन्त मैं कभी न जाऊं डोल
फलस्वरूप करुनानिधान श्री राम ने निज स्वभावानुसार सदा की भांति इस बार भी अति कृपा कर मुझे अपना 'अनमोल भरोसा' अविलम्ब प्रदान भी कर दिया ! आप जानते हैं इसी अनमोल भरोसे के मार्ग दर्शन में मैंने सन १९५९ से (लगभग ३० वर्ष की अवस्था से) आज तक का अपना जीवन कितनी सफलता से जिया है ! मेरी आत्मकथा उसके उदाहरणों से भरी पड़ी है और आज की स्थिति ये है कि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि :-
राम भरोसे काट दिए हैं, जीवन के पच्चासी
बाक़ीभी कटजायेंगे, मन काहे भया उदासी
थामे रह 'उसकी' ही उंगली दृढता से मनमेरे
पहुंचायेगा "वही" तुझे 'गंगासागर औ कासी'
('भोला')
कम्प्युटर पर उपरोक्त पंक्तियाँ लिखकर जब दुबारा पढीं तो इस कथन की असत्यता का आभास हुआ ! दुर्गंध है इसमें अहमता की ! "मैं" और "मुझे" ही सारा श्रेय कयू ?
मैं आज स्वयम से पूछ रह हूँ कि मेरा यह अहंकारी "मैं" कहाँ होता यदि (सद्गुरु श्रीस्वामी सत्यानन्दजी महाराज से दीक्षित होने के एक वर्ष बाद ही ) संन १९६० में ही अकस्मात मेरा जीवन दीप बुझ गया होता ?
पर भयंकर झंझा मैं भी मेरा जीवन दीप बुझा नहीं
आपको सुनाने के लिए अटूट भरोसे से प्राप्त "जीवन दान"का एक जीवंत भूला बिसरा उदाहरण सहसा ही याद आ गया :
लेकिन आज नहीं कहूँगा यह कहानी , आज राम नवमी है ,
बधाई हो बधाई , सबको राम जन्म की बधाई
आज तो नाचने गाने खुशी मनाने का दिवस है ! आज पहले इस बूढे तोते (पोपट) - की भेंट - "सूरदासजी" की यह रचना स्वीकार करिये
जिसे वह अपने परिवार के तीन पुश्तों के सहयोग से
अतिशय हर्षोल्लास के साथ प्रस्तुत कर रहा है
रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर
देस देस से टीको आयो ,कनक रतन मणि हीर !!रघुकुल ----
घर घर मंगल होत बधाई , भई पुरबासिन भीर ,
आनंद मग्न होय सब डोलत ,कछु न शोध सरीर !!रघुकुल ----
मागध बंदी सबे लुटावें, गो गयंद हय चीर ,
देत असीस सूर चिर जीवो रामचन्द्र रणधीर !! रघ्कुल ----
("सूरदास जी")
वीडियो लिंक https://youtu.be/XWfs-bQ8dSI
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निवेदक : व्ही. एन श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा "भोला"
एवं समग्र भोला परिवार
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