शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

स्वामी विवेकानंद -गतांक से आगे [ १९ / १ / ' १३ ]


स्वामी विवेकानंद जी       
के प्रेरणादायक सूत्रात्मक 
संदेश 
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उनके जीवन  का हर इक पल  "ईश्वर का संदेश"  बन गया ,
वह जब बोले जो भी बोले ,"आध्यात्मिक उपदेश" बन गया !

"सूत्र" सरिस उनका वचनामृत भाव पूर्ण उनका  वह  गायन,  
तमस मिटा जिज्ञासु हृदय में भरता गया ज्योति मनभावन ! 

उनसे  मानव-धर्म समझ, जग अवगत हुआ हिंदु  दर्शन  से ,
  उनको "विश्वगुरू" स्वीकारा  सकल जगत  ने  हर्षित मन से ! 

[भोला]
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 आत्मोत्थान प्रेरक स्वामी जी के फुटकर वचन 


१.    उठो जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल मिल न जाये !

२.   आत्मगौरव बढाओ  !
      सच्चे और सहनशील बनो ! ईर्ष्या  तथा अहंकार  को  दूर  कर  दो !
      संगठित हो कर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो ! सबके सेवक बनो !

   आत्म विश्वास रखो !
      तुम अपनी आत्मशक्ति से सारे संसार को हिला सकते हो  !
    
      किसी बात से तुम निराश और निरुत्साहित न हो ! 
      ईश्वर की कृपा तुम्हारे ऊपर बनी हुई है ! इस पृथ्वी पर कौन है ,जो  तुम्हारे मंगलकारी                 
      कर्मों की उपेक्षा कर सकता है ! 

४.   आत्म निर्भर बनो ! 
      शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो ! 
      बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा हो  कर कार्य करना चाहिए ! 

      तुममें सब शक्तियाँ विद्यमान है ! अपनी शक्तियों और क्षमताओं को पहचानों ; 
      उनका आंकलन करो ! तुम्हारी क्षमता असीम है ! इन्हें किसी दायरे में न बांधो  !

५.    सत्यनिष्ठ ,पवित्र और निर्मल रहो तथा आपस में न लड़ो !
      अपना  एश्वर्यमय स्वरूप  विकसित करो !

६     
दिव्य जीवन जियो, जो सत्य  है ,उसे निर्भयता से सबको बताओ !

७     मानव सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाओ !
       
       हम जितनी अधिक दूसरों की सेवा करेंगे ,प्राणिमात्र का भला करेंगे 
      हमारा  हृदय  उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें बसेंगे !

८.      मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष में सदा अटल रहो! 

९.     आप जैसा सोचेंगे वैसा ही बनेंगे! 

१०.   भाग्य केवल बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का साथ देता है ! 

११.   मौन क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है 



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"शिक्षा" विषयक वक्तव्य : 


१.     जब तक जियो ,तब तक सीखो !

२.     अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है !

३.     जीवन  पाठशाला है और जीना ही शिक्षा है !


४.     शिक्षा ऎसी हो जो मनुष्य को चरित्रवान बनाए !  


५        शिक्षा मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाकर उसका सर्वतोमुखी विकास करती है ! 

.     शिक्षा ऎसी हो जो मनुष्य को दांनव नहीं मानव बनाये !


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"धर्म" सम्बन्धी सूत्र : 


१.    धर्म-पालन  ही  मनुष्य के  आत्मोन्नति  का यथार्थ उपाय है !

२     धर्म के पालन से मन का विकास करो , मन को  संयमित रखो !


३.    धर्म का रहस्य आचरण से जाना जाता है !


४.    सच्चे बनो तथा सच्चा बर्ताव करो ! इसमें ही समग्र धर्म निहित है !


५.    मानव सामर्थ्यशाली बने , निरंतर कर्मशील बने ,निरंतर संघर्ष करे और निःस्वार्थ

       बनने का प्रयत्न करे  !   सब धर्मों का सार  यही है  !

६.    नीति परायणता तथा साहस को छोड़ कर और कोई दूसरा धर्म नहीं है !


७.    सबको आत्मरूप  मानकर प्राणीमात्र से प्रेम करो ! अंत में प्रेम की ही विजय होगी  

८.    मानव सेवा ही सर्वोच्च धर्म है !

      सभी जीवंत ईश्वर हैं इस भाव से सबको देखो , यदि नहीं देख पाओ तो उन्हें 
      आत्मरूप अनुभव करो ! उनकी सेवा करो !   

९.     अपने इष्ट [ईश्वर] की समर्थता पर अटूट विश्वास रखो !

१०.   अपनी हर सफलता में अपने 'इष्ट' के सहयोग को स्वीकारो !


११.   जीवन की हर अप्रिय व दुखद घटना, ईश्वर में 
हमारे विश्वास की परीक्षा लेती है! 


स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से संबंधित साहित्य  से संकलित =========================================

निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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