"धन्यवाद दिवस"
(" यू.एस.ऑफ अमेरिका" का "राष्ट्रीय पर्व" )
THANKS GIVING DAY
(celebrated annually on last Thursday of November in U.S.A)
आज सारे यू. एस. ए . में एक बड़ा त्योहारी माहौल है !
सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ( लगभग १६२१ वीं ईस्वी में ), तीर्थयात्रियों की तरह अपनी आस्थाओं को एकाग्रता एवं दृढ़ता से निभाने के लिए किसी नयी धरती की खोज में ,जल- पोतों पर सवार हो कर कुछ पुर्तगाली योरप से अमेरिका के इस भू भाग में आये और जिस स्थान पर वे अपने जहाज़ से उतरे वह USA का यह MASSACHUSETTS मैसच्यूसेट्स राज्य है , जिसमे संयोगवश ,इन दिनों ,हम रह रहे हैं !
यू.एस.ए. वालों के लिए आज का दिन विशेष महत्व का है! नेटिव अमेरिकन्स (रेड इंडीयंस) और सागरपार से आये इन यात्रियों ने अपने आपसी सम्बन्ध सुदृढ़ करने की शुभेच्छा से १६७६ के नवेम्बर मास के किसी बृहस्पतिवार को एक सहभोज का आयोजन किया ! उस दिन औपचारिक रीति से दोनों पक्षों ने परस्पर मित्रता का हाथ मिलाया ! मूल अमेरिका वासियों नें प्रवासी योरोपिंअंस को इस भोज में "टर्की" नामक पक्षी का मांस खिलाया तथा कुछ अन्य खाद्यान्न जैसे मक्का ,शकरकंदी से बने पकवान ,(जिनसे ,तब तक ,वे विदेशी आगंतुक परिचित नहीं थे) उन्हें परोसे तथा आगे चल कर उन्हें इनकी खेती करने के गुर भी सिखाए !
१८६३ में अमेरिका के तत्कालीन प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन ने मूल निवासियों तथा यूरोप से आये प्रवासियों के बीच की आपसी सद्भावना को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से नवम्बर के अंतिम गुरूवार को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया और इस पर्व को "धन्यवाद दिवस" का नाम दिया ! इस दिन देश के सभी मूल ,धर्म, जाति,रंग के निवासी एकत्रित हो कर एक साथ भोजन करते हैं और एक दूसरे के प्रति, अपना आभार प्रदर्शन करते हैं ! आज के दिन स्कूल कालेज, दफ्तर , कारखाने बंद रहते हैं और यू. एस. ए . के निवासी परम्परागत रीति से इस दिवस को बड़े हर्षोल्लास के साथ राष्ट्रीय-पर्व के रूप में मनाते हैं !
यहाँ के अमेरिकन परिवारों के साथ हमारे जैसे प्रवासी परिवार भी अब इस पर्व में शिरकत करने लगे हैं ! हम भी सहर्ष ऐसी पार्टीज में जाते हैं ! बात ऐसी है कि जब हमारे विदेशी मूल के दामाद "उलरिख" जो जर्मन हैं , तथा हमारे छोटे भाई की इटेलियन धर्मपत्नी "जुलिया" हमारी होली दिवाली में , इतने हर्ष उल्लास से शामिल होते हैं तो यह अनुचित होगा यदि हम उनके द्वारा आयोजित किसी कार्यक्रम में सम्मिलित न हों !
इस दिन यहाँ का कुछ कुछ वैसा ही वातावरण बन जाता है जैसा कि आमतौर पर भारत के घरों में होली दिवाली या दूसरे तीज- त्योहारों के दिन अथवा किसी परिजन के तिलक- शादी-ब्याह ,यज्ञोपवीत-मुंडन ,छठी-बरही के समारोह के अवसर पर होता है! सब सम्बन्धी स्वजन किसी एक स्थान पर ( किसी एक के घर ) में एकत्रित होकर ,अति उमंग से , हर्षित मन से एक दूसरे का अभिनन्दन करते हैं ! गत वर्ष में ,उनसे मिले सहयोग के लिए , सब एक दूसरे को धन्यवाद देते हैं !
सालभर, दिन की रोशनी में , सूनसान दिखने वाली यहाँ की बस्तियों और उनकी सड़कों पर जितनी चहल पहल आज Thanks Giving के दिन दिखती है उतनी वर्ष में किसी अन्य दिन नहीं दिखाई देती ! यू. एस . में आज के दिन मकानों के सामने की सड़कों पर मोटरकारों की कतारें दिखाई देती हैं , घर के ड्राइव वे में परिवार के बड़े बच्चे "रोलर स्केटर" पर अपनी कलाबाजी का प्रदर्शन करते दीखते हैं ; "बेकयार्ड" और "फ्रंटयार्ड" में छोटे बच्चे अपने अभिवावकों के साथ"बेसबाल",फ्रिसबी" और "फ़ुटबाल" खेलने के लिए जिद करते नज़र आते हैं ! घरों के अंदर सह -भोज की तैयारी करते हुए वयस्क स्त्री पुरुषों के ठहाके और उनके पीछे कांच और चायना के बर्तनों के खनकने की आवाजे भी बीच बीच में कानों में पड़ती रहती हैं !
मूलतः यह पर्व अपने सभी प्रियजनों के साथ मिलने तथा औपचारिक ढंग से उनके साथ मेज़ कुर्सी पर बैठ कर फोर्मल लंच-डिनर जीमने का है !लंच-डिनर इस लिए कहा क्यूंकि यह भोजन , न तो दोपहर में होता है ,न रात्रि में ! यह भोजन ,दोपहर के बाद ,शाम के समय होता है और सूर्यास्त तक चलता रहता है !
इस "थेंक्स गिविंग मील" का नाम चरितार्थ होता है तब जब भोज में शामिल सभी व्यक्ति भोजन के बाद , एक एक करके , अपने अपने शब्दों में उन सभी व्यक्तियों शक्तियों और , चमत्कारों को धन्यवाद देते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने पिछले वर्ष उनपर कोई भी उपकार किया होता है ! अपने मातापिता, गुरुजन , घनिष्ट मित्रों से लेकर अपनी पत्नी अपने पति ,अपने बच्चे ,पोते पोतियों तक को लोग धन्यवाद देते हैं !
ह्म भी आज प्रोविडेंस गए थे ,मीनाक्षी बेटी के घर ,जहां उसने हर साल की तरह इस वर्ष भी सब परिवार वालों का "धन्यवाद-दिवस-भोज" आयोजित किया था ! यहाँ भी बहुत स्वादुल भोजन पाने के बाद सभी लोगों ने अपने अपने धन्यवाद संदेश दिए ! सबसे छोटे ६-७ वर्षीय बच्चे आनंद उल्रिख से प्रारम्भ होकर "धन्यवाद प्रकाशन" का भार , अंत में ,परिवार के ,उस समय वहाँ मौजूद , सबसे बुजर्ग सदस्य - "मुझ" पर पड़ी ! विश्वास करेंगे आप , उस समय मेरे मुंह में जैसे एक ताला लग गया ! उस प्रातः दैनिक १२ औषधियों के ऊपर एक विशेष पीड़ा निवारक दवाई लेने के कारण मैं उस शाम लगभग पूर्णतः शून्य हो गया था ! मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किसको किसको धन्यवाद दूँ , किसके किसके प्रति आभार व्यक्त करूं !
किसकिस का आभार जताऊँ किसकिस को मैं धन्यवाद दूं
श्रद्धा सुमन चढाऊँ किस पर, किसकिस के चरनों को बंदूं ?
धन्यवाद के वास्तविक अधिकारिओं की सुची में जिनका नाम हमे सदा सर्वदा याद रहता है वह हैं हमारे "परमपिता परमात्मा"! प्रभु के अनंत उपकारों को याद रखना और गिना पाना असंभव है ! "उनके" प्रति आभार जताने तथा उन्हें धन्यवाद में केवल इतना ही कह पाता हूँ :
धन्यवाद तुझको भला कैसे दूँ भगवान ! तूने है सब कुछ दिया यह काया यह प्रान !!
पलपल रक्षा कर रहा देकर जीवन दान ! क्षमा करो अपराध मम मैं "भोला" नादान !!
प्यारे प्रभु की कृपा का प्रत्यक्ष दर्शन हमे सर्व प्रथम अपने जन्म पर होता है उसके बाद भी अपने जीवन के एक एक पल में उनकी कृपा के दर्शन होते रहते हैं ! चलिए जन्म से ही हम "उनके" उपकारों की गणना शुरू करें :
लाखों योनि घुमाकर प्रभु ने दिया हमे यह मानव चोला !
बुद्धि विवेक ज्ञान भक्ती दे दरवाजा मुक्ती का खोला !!
ऐसे कुल में जन्म दिया जिस पर प्रभु तेरी दया बड़ी थी!
महावीर रक्षक हैं जिसके, आंगन 'उनकी" ध्वजा गडी थी!!
साँझ सबेरे नितप्रति होती थी जिस घर में तेरी पूजा !
बिना मनाये तुमको प्रभु जी होता कोई काम न दूजा !!
प्रियजन , प्यारे प्रभु हमे यह दुर्लभ मानव जन्म देते है ,हमे संसार का बोध कराते हैं ; मित्र -स्वजन -सम्बन्धियों से मिलवाते हैं जिनके संसर्ग में हम जीवन का अनुभव संचित करते है , ऐसे सद्गुरु से भेंट करवाते हैं जो हमे जीवन जीने की कला सिखाते हैं ! हर क्षण ही हम "उनके" किसी न किसी उपकार के आश्रय से आनंदमय जीवन जीते हैं !
अस्तु उस "परम पिता" को याद करते हुए , चलिए हम प्रेम से , मस्ती में झूम झूमकर ,"परमार्थ निकेतन" ,ऋषीकेश में नित्य गायी जाने वाली निम्नांकित पंक्तियाँ गायें और "उनके " श्री चरणों पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें और उन्हें गदगद कंठ से धन्यवाद दें --
हे दयामय आप ही संसार के आधार हो !
आप ही करतार हो हम सब के पालन हार हो !!
धनधान्य जो भी है यहाँ सब आपका ही है दिया !
उसके लिए प्रभु आपको धन्यवाद सौ सौ बार हो !!
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निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्ण भोला श्रीवास्तव
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