हे प्यारे पिता
तेरे चरण कमलों में शत शत नमन
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तेरे चरणों में प्यारे 'हे पिता' ,मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो
कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो
[ राधा स्वामी सत्संग - द्यालबाग ]
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आदिकाल से सभी धर्म ग्रंथों में इस सम्पूर्ण सृष्टि के सर्जक , उत्पादक,पालक,-संहांरक सर्वशक्तिमान भगवान को "पिता" क़ह कर पुकारा गया है!
हिन्दू धर्म ग्रन्थों में उन्हें "परमपिता" की संज्ञा दी गयी है ! ईसाई धर्मावलंबी उन्हें अतीव श्रद्धा सहित "होलीफादर" कह कर संबोधित करते हैं !
हमारी "ब्रह्माकुमारी" बहनें उसी परम आनन्द दायक , अतुलित शक्ति प्रदायक , ,ज्योतिर्मय ,शान्तिपुंज को "शिवबाबा" की उपाधि से विभूषित करके ,सर्वशक्तिमान निराकार परब्रह्म परमेश्वर से साधको के साथ पिता और सन्तान सा सम्बन्ध दृढ़ करतीं हैं !
कविश्रेष्ठ श्री प्रताप नारायणजी के समर्पण -भाव से भरी यह पंक्ति कितनी सार्थक है --
कविश्रेष्ठ श्री प्रताप नारायणजी के समर्पण -भाव से भरी यह पंक्ति कितनी सार्थक है --
पितु मात सहायक स्वामी सखा तुम्ही इक नाथ हमारे हो
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उपकारन को कछु अंत नहीं छिन ही छिन जो विस्तारे हो
[ हे पिता ! तुम्हारे उपकार इतने विस्तृत हैं कि उनसे उऋण हो पाना असम्भव है ]
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आज पितृ -दिवस पर राधास्वामी संत मत के सौजन्य से वर्षों राम परिवार में अति श्रद्धा सहित गायी जाने वाली इस ' पितृ भक्ति युक्त प्रार्थना' को अपने परिवार के बच्चों के साथ गा कर 'परमपिता' को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा हूँ ----
यह भजन १९८२ में कानपुर में रेकोर्ड किया गया था
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव 'भोला'
सहयोग : श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव
श्रीमती श्री देवी कुमार
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