श्री कृष्ण: शरणम मम
==============
नन्दनन्दन गोपालकृष्ण जू , झूलें चन्दन पालने में
बधइया बाजे आंगने में
==============
मधुराधिपते अखिलं मधुरं
मेरे प्रियजन ,जो मधुर है वह ही प्रिय लगता है और जो अतिशय प्रिय लगता है उसके प्रति होती है सच्ची श्रद्धा ! जब हृदय की श्रद्धा पराकाष्ठा की सीमा लाँघ लेती है तब उपासक के अंतरमन में तरंगित होती है 'प्रेमाभक्ति' की लहर ! और वह प्रेमास्पद जिसके प्रति यह प्रबल लहर जगती है वह बन जाता है उस साधक का "इष्ट" ! ==============
नन्दनन्दन गोपालकृष्ण जू , झूलें चन्दन पालने में
बधइया बाजे आंगने में
==============
मधुराधिपते अखिलं मधुरं
मधुरता की बात चली है तो आप ही कहो प्यारे स्वजनों , कौन है उस नटखट नन्द नन्दन गोपाल कृष्ण सा मधुर ! और कौन है उस 'मधुराधिपते "श्री कृष्ण" के समान माधुर्य रस को लुटाने वाला ?
श्रीकृष्ण के प्रेमी संत महापुरुषों का कथन है कि किसी भी साधक के हृदय में अपने इष्ट [कृष्ण] के प्रति प्रियता का जागरण उस साधक की श्री कृष्ण के लिए प्रगाढ़ अनुराग का प्रतीक है ! जब ऐसी सघन प्रीति किसी साधक के हृदय में जगती है तब वह 'मीरा' के समान , ''मेर तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई " गा गा कर बेसुध होकर नाचता फिरता है , नेत्रहीन 'सूर' के समान हर ओर एक मात्र "कृष्ण" का ही दर्शन करता है और सर्वत्र "या मोहन की प्रीति निरंतर--- रोम रोम अरुझानी " गाता- गुनगुनाता फिरता है ,तथा " चैतन्य महाप्रभु , नामदेव , तुकाराम के समान ,"हरे कृष्णा हरे कृष्णा " अथवा "बिट्ठल बिट्ठल " पुकारते हुए "लोक लाज , कुल की मर्यादा छोड़ कर", गली गली कूचे कूचे नाचता डोलता है और अन्य प्रेमियों को भी अपने साथ नचाता फिरता है !
इस संदर्भ में ,श्री "हरि" के अनन्य उपासक , बंद आँखों से प्रति पल अपने प्रेमास्पद इष्ट अशरण शरण "श्री राधा कृष्ण" की लावण्यमयी मूर्ति का दर्शन करने वाले और स्वास स्वास में श्री हरि का स्मरण करते हुए , "हरी शरणम" की गुहार लगाने वाले प्रज्ञाचक्षु ,प्रातःस्मरणीय स्वामी शरणानन्द जी महाराज का कथन है कि श्री कृष्ण के प्रति , हृदय में ,-----
"प्रियता जब उदित होती है तो फिर कभी उसका अंत नहीं होता ! उस प्रियता में कितनी सुंदरता है, उस प्रियता में कितना आकर्षण है , उस प्रियता में कितना ऐश्वर्य है ,कितना रस है , इसके लिए शब्दावली नहीं हो सकती ! अनंत ,अनंत ,अनंत कह दो ! अनंत सौंदर्य ,अनंत रस अनंत प्रियता "
[ स्वामी शरणानंद जी महाराज ]
ऐसी प्रियता जाग्रत होने पर .'प्रेमास्पद श्रीकृष्ण' के अनंत सौंदर्य तथा उस सौंदर्य से झरते "अनंत प्रेमरस का पान करने वाले उपासक उस "रस रंग " में ऐसे सराबोर होजाते हैं कि हर कोण से अपने
प्रेमास्पद जैसे ही लगने लगते हैं ! प्रियजन ! इस आनंद की पराकाष्ठा मे ही होता है "आनंदघन नन्द नन्दन मुरली मनोहर योगेश्वर "श्री हरि" का दर्शन ,या यूं कहें साधक के हृदय में "श्री कृष्ण का वास्तविक जन्मोत्सव "
बाँकेबिहारी श्यामसुंदर श्रीकृष्ण की मनोहारी छवि जिसके नैनों में बस गयी समझो वह स्वयं कृष्णमय हो गया ! उसकी आँखों से अविरल प्रेमाश्रु प्रवाहित होने लगता हैं ! सुधबुध खो कर , श्रीकृष्ण-उपासना में वह स्वयम को ही धूप ,दीप ,पत्र-पुष्प नैवेद बना कर अपने इष्ट के श्री विग्रह पर समर्पित कर देता है ! एक ऐसे ही प्रेमी के हृदय के उद्गारों को सुनिए और कृष्ण -प्रेम के रस का आस्वादन करिये -------
श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी
शीश मुकुट वंशी अधर ,रेशम का पीताम्बर
पहिरे है बनमाल सखी सलोनो श्यामसुन्दर
कमलों से चरणों पर जाऊं मैं वारी री
श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी
मैं तो आज फूल बनूँ धूप बनूँ दीप बनूँ
गाते गाते गीत सखी आरती का दीप बनूँ
आज चढूँ पूजा में बन के एक पांखुरी
श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी
====================
गीत - 'आकाशवाणी भारत' के सौजन्य से
स्वरकार व गायक - "भोला"
===================
श्रीकृष्ण के जन्मदिवस पर सब प्रियजनों को बहुत बहुत बधाई !
------------------------ ----------------------------------
निवेदक : - व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
------------------------ ----------------------------------
निवेदक : - व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
--------------------------------------------
11 टिप्पणियां:
श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी
सुध बुध भूली अपनी हो गयी मै बावरी
काका और काकी जी को प्रणाम | कृष्ण जन्मस्थली की शुभकामनाएं
.बहुत सार्थक प्रस्तुति .श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें . ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं
आपकी पोस्ट का एक एक शब्द कृष्ण प्रेम रस में पगा हुआ है.
सुमुधुर गायन हृदय को झंकृत कर रहा है.
काश! हमारे हृदय में भी ऐसी कृष्ण लग्न उदय हो जाए.
बहुत बहुत हार्दिक आभार भोला जी.
आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ओ जीजी-देखो ना, क्यूं रो रहा
मेरे नन्द जी का लाला
क्या कर लूं मैं, कैसे कर लूं
दिल चीर, रुदन ने डाला ..
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाईयाँ और शुभकामनाएं..
काची नींद से जागो है सो रुदन मचाय रहो है
नंदरानी , भूखे कान्हा को पेट पिराय रहो है
दूध मलाई माखन मिसरी जब तू लाय दिखाई
तब बहनी तुमका ई नटखट बहुते नाच नचाई
[भोला]
राकेश जी ! आप जानते हैं , व्यक्ति स्वयं न तो लिखता है और न गाता बजाता है ! वास्तव में वह स्वयं अपने बल से कछ भी नहीं कर सकता ! अस्तु , वह "परम" [मदारी] ही धन्यवाद के पात्र हैं !
धन्यवाद , आपको भी बहुत बहुत बधाई बेटा !
दूसरी पंक्ति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ,वन्दना जी-
भोला कृष्णा
धन्यवादल गोरखजी ! रामजी स्वस्थ होंगे ,उनका ख्याल रखिये !
स्वतंत्रता दिवस महोत्सव पर बधाईयाँ और शुभ कामनाएं
एक टिप्पणी भेजें