स्वामी विवेकानंद
शिकागो- विश्व धर्म सम्मेलन में
परमहंस ठाकुर राम कृष्ण देव की यह इच्छा थी कि उनके सर्वाधिक प्रिय ,दिव्य ,ज्ञानी शिष्य विवेकानंद विश्व की समग्र मानवता को "धर्म" का वास्तविक स्वरूप दिखाए तथा विभिन्न मत मतान्तरों , सम्प्रदायों , धर्मानुयायियों द्वारा फैलाई धर्म विषयक भ्रामक मान्यताओं को मिटा कर मानवता को शाश्वत "धर्म" के सत्य स्वरूप से परिचित कराए !
अपने गुरुदेव के स्वप्न को साकार करने के लिए स्वामी विवेकानंद' भगवती स्वरूपा ,गुरु माँ शारादामणि की आज्ञा ले कर तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर नोर्थ अमेरिका के शिकागो नगर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए भारत से सिंगापुर ,जापान ,कनाडा होते हुए जुलाई १८९३ में शिकागो पहुंचे !अमेरिका पहुँचने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि सम्मेलन स्थगित हो गया है , दो महीने बाद होने की सम्भावना है !
एक अपरचित देश जहां न कोई मित्र था न कोई सम्बन्धी ,न कहीं ठहरने का ठिकाना था ,न कोई खाने पीने की सुविधा ! उनके पास इतनी धन राशि भी नही थी कि वह अपनी कोई निजी निश्चित व्यवस्था कर सकें ! उन्हें ऐसा लगने लगा कि जैसे अमेरिका का वह पूरा प्रवास अब उन्हें वहाँ की सड़कों पर भटक भटक कर बिताना पडेगा ! किसी साधारण व्यक्ति के लिए यह एक अति चिन्तादायक स्थिति होती !
परन्तु प्रियजन ,एक प्राकृतिक नियम है -"दिव्यात्मा युक्त व्यक्ति हर परिस्थिति में चिंता मुक्त रहता हैं ! वह विश्वासी जानता है कि उसकी चिंता स्वयम "प्रभु"करते हैं " !
विधि को विवेकानन्द से बड़े महत्वपूर्ण काम करवाने थे अस्तु अमेरिका की सड़कों पर निश्चिन्त घूमते हुए नैसर्गिक मुस्कुराहट युक्त तेजस्वी मुखमंडल वाले उस परिव्राजक की भेंट एक अमेरिकन महिला Miss Kate Sanborn से हुई ! स्वामीजी के दिव्य आभामय स्वरूप तथा उनके विद्व्तापूर्ण मधुर सम्भाषण से उनके प्रति गहन श्रद्धा से आकर्षित हुई वह महिला उन्हें अपने साथ बोस्टन ले आयीं ! मिस केट ने अपने घर मे ही उनके ठहरने की उचित व्यवस्था कर दी ! इनके घर पर ही स्वामी जी की भेंट हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोन हेनरी राईट से हुई !
विवेकानंद जी में एक अद्भुत चुम्बकीय आकर्षण था ! वह जिससे मिलते, उसे अपनी ओर खीच लेते , उसे अपना बना लेते , उसका मन मोह लेते और उसका दिल जीत लेते थे ! ऐसा मनमोहक व्यक्ततित्व था उनका !
प्रोफेसर राईट के प्रयास से ही स्वामीजी को विश्वधर्म परिषद में प्रवेश पाने के लिए परिचय- पत्र मिला !
शिकागो में विश्व के अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों को बड़े शान से फूलों से सजी घोड़ा गाड़ियों पर सवार हो कर सभास्थल तक पहुचते देख एक वयो वृद्धा अमेरिकन भद्र महिला Mrs Hale ने स्वामी जी को अपनी निजी बग्गी (घोड़ा गाड़ी ) द्वारा परिषद के सभागृह तक पहुंचाया !
स्वामीजी को विश्व धर्म परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करवाने का सम्पूर्ण श्रेय , हिंदुत्व से सर्वथा अनभिज्ञ रहें अन्य धर्म के अनुयायी ,इन दो अमेरिकी नागरिक - हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राईट और शिकागो की श्रीमती हेल को ही जाता है !
अनेकों विघ्न बाधाओं और प्रतिकूल परिस्थितियों से टक्कर लेते हुए स्वामी जी परिषद भवन में दाखिल तो हो गये लेकिन उन्हें सम्मलेन में भारतीय आध्यात्म,धर्म एवं जीवन दर्शन पर प्रकाश डालने का अवसर कैसे मिले ,यह समस्या अभी भी बरकरार थी !
उस सम्मेलन में , विश्व के अन्य सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को अपने अपने धर्मों की विशेषताएं बताने के लिए व्यवस्थापकों द्वारा आमंत्रित किया गया था लेकिन इस परिव्राजक को ऐसा कोई निमंत्रण नहीं दिया गया था ! फिर भी चंद भारतीय एवं उपरोक्त दोनों अमरीकी स्वजनों के सह्योग एवं अनवरत प्रयास , तथा ईश्वरीय प्रेरणा से अन्त्तोगत्वा स्वामी जी को संसद में बोलने का समय मिल गया !
अवसर मिला तो ,लेकिन विडम्बना देखिये भारतीय आध्यात्म और धर्म के पक्ष को उजागर करने के लिए सम्मेलन के आयोजकों ने स्वामी जी को केवल पांच मिनट जी हाँ केवल पांच मिनट का ही समय दिया था !
शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में मंच पर आसीन स्वामी विवेकानंद
प्यारे प्रभु की इच्छा तथा सदगुरु की कृपा तो देखिये कि जिस वक्ता को बमुश्किल तमाम ,जोड़ तोड़ के बाद , बोलने के लिए केवल पांच मिनट का ही समय दिया गया था ,उसने अपने ज्ञानवर्धक ओजस्वी ,विवेचनात्मक व्याखानों से सभागृह पर ऐसा जादू डाला कि ११ से २७ सितम्बर तक पूरे सत्र भर वह वहाँ पर छाये रहें ,व्याख्यान देते रहें !!
यह चमत्कार कैसे हुआ ? सुनिए
११ सितम्बर १८९३ को विश्व धर्म सम्मेलन के प्रथम दिन ही स्वामी जी ने सभागृह में उपस्थित लगभग ७००० श्रोताओं को ,जिनमे ९० प्रतिशत से अधिक श्वेत अमरीकी थे, "ब्रदर्स एंड सिस्टर्स " कह कर सम्बोधित किया !
Full text: Swami Vivekananda's 1893 Chicago speech
"मेरे प्यारे अमरीकी भाई बहनों" - यह सम्बोधन सुन कर ,पहिले कुछ पलों के लिए तो सभी श्रोतागण स्तब्ध रह गये तत्पश्चात रोमांचित हो कर सभी खड़े हो गये और जोर जोर से तालियाँ बजाने लगे ! तालियों की गडगड़ाहट से सभागृह तब तक गूँजता रहा जब तक आयोजकों ने उनसे अति विनय पूर्वक बैठ जाने का आग्रह नहीं किया !
इस आत्मीय सम्बोधन में समाहित था ,भारतीय आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित हमारी संस्कृति का एक पुरातन अनमोल सन्देश- "वसुधैव कुटुम्बकम" जिसका भावार्थ यह है कि " विश्व एक परिवार है ! चाहे हम किसी भी देश के हों, किसी भी "रेस" के हों ,हम काले हो ,सांवले हों ,बादामी हों अथवा गोरे हों , हम सब एक ही पिता की सन्तान हैं ,हम सब एक दूसरे के "भाई बहिन"हैं "!
सम्मेलन में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उन्हें हिन्दू होने का गर्व है ,उन्हें गर्व है कि वह एक ऐसे धर्म के अनुयायी हैं जिसमें "सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति", की क्षमता है ! उन्होंने कहा कि भारतीय धर्म अति उदार है ,वह हमे विश्व के अन्य सभी धर्मों के प्रति केवल "सहिष्णुता" ही नहीं वरन उनपर विश्वास कर के उन्हें सच्चा मान कर स्वीकार करने तक की अनुमति भी देता है !
फिर अपने वक्तव्य में उन्होंने भारतीय दर्शन को संजोये दो शास्त्रीय संस्कृत श्लोकों को उदधृत किया;प्रथम श्लोक "शिव महिमा स्तोत्र" से था : दूसरा "श्रीमद भगवदगीता" से ; जिसमे भारतीय धर्म तथा आध्यात्म की सार्वभौमिक स्वीकृति तथा उसकी सहिष्णुता एवं उसके सार्वजानिक स्वरूप को उजागर किया गया है !
प्रथम श्लोक ,"शिव महिमा स्तोत्र" से
रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।
" जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार अपनी अपनी रुचि के अनुसार भिन्न भिन्न साधना रूपी टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग भी अन्त में "एक परमतत्व "में ही आकर मिल जाते हैं।विभिन्न मार्ग से लोग आते हैं पर सारे रास्ते एक ही लक्ष्य की ओर जाते हैं "
द्वितीय श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता से था :ये यथा माम् प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।।4-11।।
योगेश्वर श्रीकृष्ण के उपरोक्त कथन का हिन्दी भावार्थ
जिस भांति जो भजते मुझे उस भांति दूँ फल योग भी !
सब ओर से ही बर्तते मम मार्ग में मानव सभी !!
[दिनेश जी रचित श्री हरि गीता से]
जो कोई ,अपनी रूचि के अनुसार ,जिस किसी मार्ग या विधि -विधान से मेरी ओर आता है ,उसे मैं निश्चय ही प्राप्त हो जाता हूँ [ वह मुझे पा लेता है ] !
भारतीय जन मानस इन पुरातन धार्मिक स्त्रोतों को जीवन में उतार कर अन्य सभी धर्मों के प्रति आदर सहित उदार बना रहा ! भारत ने विश्व के अन्य देशों से निष्कासित अन्य धर्मों के अनुयायी शरणार्थियों को न केवल अपनी भूमि पर फलने फूलने दिया, उन्हें अपने अपने धर्मों का पालन करने की पूरी छूट दी ! भारत उन विस्थापितों के साथ आज तक "एकता" बनाये हुए है !
इसका प्रमाण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने धर्म संसद को बताया कि जब रोमन जाति के अत्याचार से पीड़ित "यहूदी" शरणार्थी भारत के दक्षिणी तट पर आये तब भारतीयों ने उन्हें सहर्ष अपनी धरती पर शरण दी ! इसी प्रकार जब जोरास्थियंन [जरथुष्ट्र] धर्म के विस्थापित अनुयायी बेघर हो कर भारत आये तब भारत ने उन्हें अपनाया ! आज हम उन्हें "पारसी" कह कर पुकारते हैं ! अपने धर्म का यथा विधि पालन करते हुए "पारसी" समाज आज भी भारत में सख -समृद्धि भरा प्रगतिशील जीवन जी रहा है !
भारत का वास्तविक हिंदू धर्म ,विश्व के अन्य सभी धर्मों की मान्यताओं ,विचारों तथा उनकी पूजा पाठ और आराधना के विधि विधान को स्वीकारता है और उनका समुचित आदर करते हुए उनमे समन्वय बनाये रखने का प्रयास करता है !
विवेकानंद ने इस परिषद में विश्व के किसी भी धर्म की कोई आलोचना नहीं की .किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया , किसी भी धर्म को ऊंचा या नीचा नहीं बताया ,ना धर्म परिवर्तन की बात की ! उन्होंने स्पष्ट किया कि विश्व के विभिन्न धर्मों,सम्प्रदायों , मत मतान्तरों का सारतत्व एक ही है लेकिन उनके अभिव्यक्तिकरण की प्रणाली ,शब्दों में निरूपण करने की पद्धति ,साधना के क्रियात्मक स्वरुप की रूप रेखा भिन्न भिन्न है ! इस प्रकार स्वामी जी ने भारतीय वेदान्त के मानवतावादी ,व्यवहारिक ,प्रगतिशील ,और प्रायोगिक सन्देश के मर्म को विश्व के समक्ष अत्यंत मधुर वाक्पटुता से प्रस्तुत कर हिंदू धर्म और आध्यात्म को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किया ,उसके गौरव को अक्षुण्ण बनाया !
विश्व भर के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में स्वामी जी के शिकागो के व्याख्यानों की चर्चा हुई , उनके विचारों का मोटे मोटे अक्षरों में उल्लेख हुआ तथा उन्हें साधुवाद दिया गया ! अमेरिकी अखबारों ने तो उनकी तारीफ़ के पुल ही बाँध दिए ! TRIBUNE ने उन्हें ,The Cyclonic HIindu Monk कहा ,THE NEW YORK HERALD ने उन्हें संज्ञा दी The greatest figure in the Parliament of religions की !Boston Evening Transcript ने उन्हें " A great favorite at the Parliament of Religions" कह कर सम्मानित किया ! सच ही तो है "जाकी सहाय करी करूणानिधि ताके जगत में मान घनेरो "
भारत की महानतम विभूति ,इस युवा संन्यासी विवेकानंद ने धर्म और अध्यात्म के नये परिप्रेक्ष्य में अद्वैत वेदान्त के आधार पर श्रोताओं को यह समझाया कि, "सारा विश्व आत्म रूप है" !" सारे जगत को आत्म रूप देखने का प्रयास करो, न देख सको तो इसका अनुभव करो ! स्वानुभूति के आधार पर नर को नारायण जानकार उनकी सेवा करो ! अनेकता में एकता के दर्शन करो ! ईश्वर का यह ही सर्वमान्य स्वरूप है !
स्वामी जी के निजी अनुभवों पर आधारित उनकी सत्य-निर्मल विचारधारा , उनकी त्यागमयी सेवा वृत्ति एवं उनकी वाणी की मधुरता से ढंकी उनकी गम्भीर द्रढता ने सम्मलेन में सबका मन जीत लिया और इस प्रकार भारत को सपेरों, भिखारियों और जटाजूटधारी ढोंगियों तथा पत्थर के देवी देवता पूजने वाले धर्म गुरुओं का एक निकृष्ट देश समझने वाले पाश्चात्य श्रोताओं ने पहली बार वास्तविक भारतीय आध्यात्म का आस्वादन किया ! उनकी आँखें खुली की खुली रह गयीं !
'सभी धर्म सत्य हैं ! वे सब ,ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न उपाय मात्र हैं "!
सदगुरु ठाकुर रामकृष्ण परमहंस देव जी के निजी स्वनुभूतियों पर आधारित
उनकी प्रमुख सिखावन के मुखर स्वरुप थे
विश्वगुरु स्वामी विवेकानंदजी द्वारा
शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिये सारगर्भित संदेश !!
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क्रमशः
अभी बहुत कुछ कहना है !
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निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
आप कहते रहिये और हमारा ज्ञान वर्धन करते रहिये बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .
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