जीव - जगत - जगदीश
जगदीश - वह सर्वेश्वर
अपनी अपनी मान्यताओं, परम्पराओं, संस्कारों के आधार पर हम सब ने इस सर्वदयालू, सर्वसमर्थ, सर्वज्ञ , सर्वत्र व्याप्त सर्वशक्तिमान परमात्म तत्व को विभिन्न नामों से पुकारा है. और इस परम कृपालु शक्ति ने हम में से किसी को भी ,कभी भी निराश नही किया. प्रभु, बिना किसी धर्म -जाति, रंग- रूप का भेदभाव किये सब प्राणियों पर अपनी अनंत कृपा वृष्टि करते रहते हैं .
ज़रा सोंचें , क्या सूर्य अपना प्रकाश , चन्द्र अपनी ज्योत्सना, वायु अपनी जीवनदायिनी ऊर्जा का दान किसी जाति विशेष अथवा धर्म विशेष के अनुयायियों पर ही करते हैं ? नहीं ना. जगदीश ने इस समस्त सृष्टि का निर्माण सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए किया है. सृष्टि सृष्टिकर्ता की प्रथम कृति है. जैसे चित्र में चित्रकार निवास करता है वेसे ही इस जगत के कण कण में जगदीश स्वयम समाया हुआ है. उपनिषदों में कहा है यह जगत जगदीश की चिन्मय शक्ति से ही क्रिया शील है:
"ईशावास्वयमइदं सर्वं ,यत किंच जगत्यां जगत -तें त्यक्तेन भुंजीथा "
श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने भी कहा है ::- "जगदीश की विभूतियों का समग्र रूप यह जगत है." (गीता अध्याय १० श्लोक ४२) . आज भी मानव उस महान शिल्पी चित्रकार की कलाकृति -इस जगत का अनूठा सौन्दर्य देख कर भौचक्का हो कर पूछता फिरता है :
हरी-हरी वसुंधरा पे नीला-नीला ये गगन
कि जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाऐं देखो रंग भरीऽऽऽ
दिशाऐं देखी रंग भरी, चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल-फूल पेऽऽऽ
ये किसने फूल-फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
तपस्वियों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुऐऽऽऽ
ध्वजा से ये खड़े हुऐ, हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहार के
ये किस कवि की कल्पनाऽऽऽ
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमाऽऽऽ
चमका लो आज लालिमा अपने ललाट की
कण-कण से झाँकती तुम्हें छवि विराट की
अपनी तो आँख एक हैऽऽऽ
अपनी तो आँख एक है उसकी हज़ार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
कि जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाऐं देखो रंग भरीऽऽऽ
दिशाऐं देखी रंग भरी, चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल-फूल पेऽऽऽ
ये किसने फूल-फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
तपस्वियों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुऐऽऽऽ
ध्वजा से ये खड़े हुऐ, हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहार के
ये किस कवि की कल्पनाऽऽऽ
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमाऽऽऽ
चमका लो आज लालिमा अपने ललाट की
कण-कण से झाँकती तुम्हें छवि विराट की
अपनी तो आँख एक हैऽऽऽ
अपनी तो आँख एक है उसकी हज़ार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौऽऽऽन चित्रकार है...
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
इस गीत के शब्दकार ने स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया है .वह चित्रकार कोई अन्य नही स्वयं सर्वशक्तिमान जगदीश ही है. प्रियजन हम कितने सौभाग्यशाली है कि हमे उस चंचल चितचोर चित्रकार की चमत्कारी कलाकृति, और उससे झाँकती उनकी मनमोहक विराट छवि के दर्शन, उनकी ही महती अहेतुकी कृपा से प्राप्त हो रहे हैं .
जय हो, जय हो, हे जगदीश .
जगन्नाथ, जगपालक ईश..
--- क्रमश:
--- निवेदन: श्रीमती डॉ.:कृष्णा एवं व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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