गुरुवार, 13 मई 2010

रामहि केवल प्रेम पियारा

रामहि केवल प्रेम पियारा

हमारे इष्ट को तो उपहार में केवल प्रेम ही चाहिए .अन्य कोई भेंट उन्हें नही पसंद है. स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के कथनानुसार:
"प्रिय रूप" "निज रूप" है, "प्रेम रूप" है ईश
सिमरन, चिन्तन प्रेम से , है पूजन जगदीश

अब सवाल यह है कि  "वैसा प्रेम कहाँ से लाऊं, जिससे अपना राम रिझाऊं"और अपने प्रियतम इष्ट का प्रेम पात्र बन पाऊँ.


किसी संत के प्रवचन में उत्तर मिला "तुम्हारे आस पास ही हैं वे सब जिनसे तू दिव्य "प्रेम " का आदान प्रदान कर सकता है. अंग्रेज़ी में एक कहावत है ' Charity begins at home". सो पहले हम "निज" (स्वयं - अपने आप) से प्रेम करें, फिर अपने निकटतम /सगे सम्बन्धियों से, मुहल्ले वालों से, नगर वालों से और फिर इस परिधि के बाहर, अपने समाज एवं जननी जन्मभूमि तथा अपने राष्ट्र से प्रेम करें".

उन्ही महाराज जी ने अन्यत्र कहा: "स्वयं अपने आप और उपरोक्त सब प्राणियों पर लुटाया आपका यह सारा का सारा प्रेम आपके प्रियतम प्रभु के पास ज्यों का त्यों पहुंच जायेगा. अपने प्रेमीभक्त से इतना सारा प्यार पा कर प्रभु कितने प्रसन्न होंगे उसका अनुमान नही लगाया जा सकता".

प्रभु के प्रसन्न होते ही आपका हृदय एक अनूठे आनंद से भर जायेगा--- संत जन जिसे "परमानंद" कहते हैं. अनेक अनुभवी संत इसे प्रभु दर्शन की संज्ञा देते हैं .

अब तो मुझ मंदबुद्धि को भी यह सत्य लगने लगा है. हमने स्वयं देखा है प्रेमा भक्ति से सराबोर साधकों का नर्तन, और सुनी है उनकी मधुर, दिव्य वाणी, जिन्हें देखते सुनते हम भी अपनी सुध बुध खो बैठे, हमे रोमांच हुआ, हमारी आँखे डबडबा गयीं, कंठ अवरुद्ध हो गया . सर्वत्र आनंद ही आनंद बरस ने लगा.

संभवतः यही है प्रभु प्रेम का प्रसाद .

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