हम सब - यह सब - वह सर्वेश्वर
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जीव - हम सब
मैं कौन हूँ ? हम सब कौन हैं ? इस विषय में काफी चर्चा गत दो लेखों में हो गयी है, हम जान गए हैं कि हम "शरीर" नही हैं. हम "चेतन स्वरुप शुद्ध बुद्ध आत्मा" हैं , किसी ने कहा है :
खुल गया राज़ कि मैं कौन हूँ क्यों आया हूँ ?
मैं नहीं वह, मुझे जिस नाम से पुकारा है ..
नाम वाले बहुत आये, गए, गुमनाम हुए.
बच गए वह कि जिन्हें नाम का सहारा है .. (भोला)
अपने परमपिता परमात्मा के अभिन्न अंश हैं हम. अस्तु हमें स्वधर्म का पालन करटे हुए, अपनी निजी भौतिक तथा आध्यात्मिक प्रगति के साथ साथ लोक कल्याण के लिए भी कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. अब प्रश्न यह उठता है कि जीव का धर्म क्या है? भारत भूमि के प्राचीन (२००० से ७००० वर्ष पूर्व के) विचारकों से ले कर आज तक के मनीषियों के मतानुसार हमारा (सम्पूर्ण मानवता का) ईश्वर एक है और हमारा एक मात्र धर्म है, मानव - धर्मं . .
तुलसी की भाषा में.:
धरम न दूसर सत्य सामना . आगम निगम पुराण बखाना ..
परहित सरिस धरम नही भाई . पर पीड़ा सम नही अधमाई ..
परम धरम श्रुति विदित अहिंसा , पर निंदा सम अघ न गरीसा ..
अपने जीवन में सत्य, करुणा, प्रेम के दिव्य भावों के साथ साथ नर-नारायण की सेवा के भाव का समावेश कर हम अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते चलें. और इस प्रकार अपना यह दुर्लभ मानव जीवन सार्थक, सफल, एवं सुखी बना लें.
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जगत - यह सब
हमारे चारोँ और जो भी हमें दृष्टिगोचर होता है, चाहे वह जड़ हों अथवा चेतन, सब जगत ही है. इस जगत को कोई संसार,कोई दुनिया, कोई प्रकृति, कोई-कुदरत, ना जाने किस किस नाम से सम्बोधित करता है. पर सम्पूर्ण मानवता को आजीवन आनंदित रखने के लिए ही हमारे प्यारे प्रभु ने हमारे लिए इस संसार का निर्माण किया है. इस जगत-दुनिया-कुदरत के प्रति अपने अपने अनुभव के आधार पर हम मानवों ने क्या क्या भाव आरोपित किये हैं. जानने.योग्य है. किसी ने जग-निर्माता की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा :
क्या जल्वये शाने कुदरत है, सुभान अल्ला, सुभान अल्लाह .
हर शय में निराली सन्यत है,सुभान अल्लाह, सुभान अल्लाह ..
(जनाब राद)
भावार्थ : हे प्रभु तुम्हारी जय हो, तूने कितनी सुन्दर और शानदार प्रकृति का निर्माण किया है . तुम्हारी जय हो, जय हो.
--------- क्रमशः ----------
निवेदन -श्रीमती डॉ. कृष्णा एवं भोला श्रीवास्तव
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