बुधवार, 5 मई 2010

"नाम आराधना" से "कृपा - प्राप्ति "

कलियुग की आत्माओं को मुक्तिप्राप्ति के लिए, ध्रुव-प्रह्लाद सरीखी गहन तपस्या तथा अन्य विषम कष्टदायक साधन नही करने हैं .प्रभु ने हमारे लिए आराधना का सरलतम साधन निश्चित किया है "नाम जाप भजन- कीर्तन" .

इस सरल साधना की सिद्धि के लिए भी अति आवश्यक है कि हमारे मन में यह दृढ विश्वास तथा अटूट निश्चय हो कि हमारे "इष्टदेव" परम कृपा स्वरुप है, सर्वज्ञ हैं, सर्वत्र हैं, सर्वशक्तिमान है.,"वह परमेश्वर ही है", और उनका वह नाम जिसकी आराधना हम कर रहे हैं, उसमे वह स्वयं विद्यमान हैं .

इस प्रकार "इष्ट देव" के नाम में अपने "नामी" इष्ट का ध्यान लगा कर मन ही मन नाम जाप करने से साधक पर "प्रभु कृपा" का अवतरण निश्चित ही होगा. वैसे ही जैसे सूर्योदय के साथ ही प्रकाश का आगमन होता है, जैसे खिडकी द्वार खुलते ही पवन बेधडक कमरे में प्रवेश कर लेता है, उसी प्रकार सच्ची भावनाओं एवं अखंड विश्वास से की हुई आपकी साधना से प्रसन्न आपके "इष्ट" की कृपा आपको अवश्य प्राप्त होगी.

स्वामी सत्यानन्द जी के वचन:

परम पुण्य प्रतीक है परम ईश का नाम .
तारक मंत्र शक्ति घर बीजाक्षर है राम ..

राम शब्द को ध्यायिये, मंत्र तारक मान .
स्वशक्ति सत्ता जग करे उपरिचक्र को यान ..

आप "राम" के स्थान पर अपने इष्टदेव का नाम लें, वही नाम जाप करें . परमात्मा तो एक ही है.

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