सोमवार, 10 मई 2010

Chintamani Hari Naam

गतांक से आगे :

प्रियजन: अपने जीवन के ८१ वर्षो के विविध अनुभवों के आधार पर कुछ कहने का साहस कर रहा हूँ:

यह बिस्वास जमाय के साजो "रण" के साज'
चिंता मणि हरि नाम है सफल करे सब काज

इस दृढ़ विश्वास के साथ की श्री गुरुदेव की कृपा से प्राप्त "हरिनाम" की "चिंतामणि" आपके पास है , जीवन रण में जूझ जाइये. एक अदृश्य कवच के समान यह आर्मर आपको न केवळ भ्रम भूलों से बचाएगा वरन आपको सद्बुद्धि एवं सुविवेक प्रदान कर आपकी सफलता सुनिश्चित कर देगा.

प्रियजनों, अपने "इष्ट" के प्रति इतना द्रढ़ विश्वास पाने के लिए हमे अपना घरबार - संसार छोड़ कर कोई कठिन तपस्या नही करनी है. हमे बस ,अपने गुरुदेव से प्राप्त आदेशों का पालन करना है. हमारे आदिकालीन सद्ग्रंथों में भी इस परमसत्य का उल्लेख है :

कृते यद ध्यायते विष्णु त्रुतायाम यजतो मखे:
द्वापर परिचर्यायाम कली तद हरि कीर्तना 
(श्रीमद भागवत -स्कंध १२ ,अध्याय ३ ,श्लोक ५२)

सतयुग में ध्यान ,त्रेता में यज्न, द्वापर में विधि पूर्वक पूजन से जो फल मिलता है , कलि काल में वह केवल नाम भजन कीर्तन से मिल जायेगा. अपने कलिकाल में तुलसी ने भी निज अनुभव के आधार पर कहा है:

कलिजुग केवल नाम अधारा .
सिमर सिमर नर उतरहि पारा ..

कलिकाल में केवल "नाम" सिमरन ,भजन कीर्तन की सरलतम साधना द्वारा ही हम मानव यह दुर्गम भवसागर पार कर लेंगे हमे अतिरिक्त कोई साधना करने की आवश्यकता ही नही है .

प्रियजन, विलम्ब ना कीजिए, जहाँ हैं जैसे हैं वहीं आखे मूंद कर पल भर को ही चाहे, अपने "इष्ट" देव का सिमरन करे , परमप्रेम एवं अतिश्रद्धा के साथ भजन कीर्तन करें. "वह" विलम्ब नही करेंगे . वैसे ही जैसे वह द्रौपदी की लाज बचाने अथवा गजराज की जीवन रक्षा करने दौड़ आये थे वह हमारी नैया पार लगाने भी अवश्य ही आएंगे . केवल अपना विश्वास अडिग रखिये.

निवेदक :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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