"सर्दी गर्मी और धूप छाँव" के समान "सुख-दुःख" हमारे जीवन में आते जाते रहते हैं. हम नर हैं. नारायण नहीं.. हम विचलित हो जाते हैं . जो स्वाभाविक ही है . ऐसे में यदि हम याद करें गीता का वह उत्साहवर्धक सन्देश जो अपने श्रीमुख से, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था (श्रीमद भगवदगीता -अध्याय १२-.श्लोक १८):
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥
श्री कृष्ण का उपरोक्त कथन समझते ही हमारी वर्तमान स्तिथि कुछ भिन्न हो जायेगी.. हम इतने दुखी ना रहेंगे, इतने निराश न रह पाएंगे. हम इस प्रकार "प्रभुकृपा" में अपना विश्वास ना खो देंगे और अपने नित्य कर्म के प्रति उदासीन हो हम अपनी दैनिक साधना भी ना त्याग देंगे . ऐसे में गुरुदेव श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के शब्द अति प्रेरणा दायक सिद्ध होंगे :-
सम कर समझूं दुःख सुख, सब उतराव चढाव ,
राम भरोसे मैं सहूँ सभी बिगाड़ बनाव .
सोते जगते काम में, चलते फिरते बैठ ,
रहूँ भरोसे राम में, शांत प्रेम जल पैठ ..
मेरे अतिशय प्रिय स्वजन ऐसे में मुझे अपना एक बहुत पुराना भजन याद आ रहा है , जिसे ६०-७० वर्ष से गा रहा हूँ:
आपके साथ साथ अपना भरोसा भी बढ़ाऊंगा, अवसर मिला तो पूरा भजन सुनाऊंगा.
निवेदक :वही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
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