अपने पिछले जन्मो में किये शुभ-अशुभ कर्मों के फल भोगने के लिए ही हमारा यह जन्म हुआ है. हम प्रारब्ध की चादर ओढ़े हैं. इस चादर पर हमारे दुष्कर्मो के कारण अनेक गंदे दाग लगे हैं. हम इस जन्म में शुभ कर्मो का साबुन लगाकर इन दागों को शीघ्रातिशीघ्र धो सकते हैं हमे प्रयास करना है की इसमें अब कोई नया दाग नही लगने पाए..
हमे दृढ निश्चय करना है की हम इस जन्म में केवळ शुभ कार्य ही करेंगे. ऐसा तभी होगा जब हम पर प्रभु की कृपा होगी. "उनकी" कृपा पाने के लिए हमे उनके सन्मुख होना पड़ेगा..जितने उपकार "उन्होंने"अब तक हमारे ऊपर किये हैं ,उनके लिए, हमे , सजल नेत्रों और गदगद कंठ से अपना आभार व्यक्त करना है ."उनके" उपकारों का जितना भारी ऋण हम पर चढ़ा है हमे उतारना है., अब आप ही बताओ :
कहो उरिन कैसे हो पाऊं ? किस मुद्रा में मोल चुकाऊं ?
केवल प्रभु की महिमा गाता , और मुझे कुछ भी ना आता..
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निवेदक :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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