रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कण कण में व्याप्त - 'तू ही तू ' - Feb. 10 / 11 - 2013'


हे सर्वज्ञ,  सर्वत्र ,  सर्वशक्तिमान-"प्रभु" 
 मेरा तो केवल एक "तू" ही है , 
अन्य कोई भी नहीं,अन्य कुछ भी नहीं है मेरा ,
यदि कोई है तो बस एक 
 "तू ही है" 
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भारतीय वेदान्तिक सिद्धांतों पर आधारित ,सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज तथा स्वामी विवेकानंद जी एवं अन्य गुरुजनों की रचनाओं और प्रवचनों से प्रेरित,प्यारे प्रभु की सर्वगुण सम्पन्नता तथा हम जीवधारी मनुष्यों की निर्गुनता तथा परवशता झलकाते मीरा के इस भजन  - 
"मैं निरगुनियाँ गुन नहीं जानी एक धनी के हाथ बिकानी " की सार्थकता दर्शाता मेरा निम्नांकित भजन सुने----

तू ही तू 
रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 
सकल सृष्टि का सिरजन हारा  ,सब का ही रखवैया तू  
तू ही तू 

डाल डाल में,पात पात में , मानवता के हर जमात में 
हर मजहब, हर जात पात  में , एक  तुही है तू ही  तू  
तू ही तू 

 रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 


   -


रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 

सागर का खारा जल तू है, बादल में हिम कण में तू है 
गंगा  का  पावन जल तू   है  ,  रूप अनेक  'एक' है तू 
तू ही तू 
रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 

चपल पवन के स्वर में तू है , पंछी के कलरव में तू है 
भंवरों के गुजन  में तू  है , हर स्वर में,  ईश्वर  है तू  
तू ही तू 
रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 

तन है  तेरा ,  मन  है तेरा , प्राण हैं  तेरे, जीवन तेरा  
सब हैं  तेरे ,सब  है  तेरा ,  पर मेरा  इक  तू  ही  तू  
तू ही तू 
रोम  रोम  में  रमा   हुआ  है , मेरा   'राम'  रमैया  तू 
सकल सृष्टि का सिरजन हारा, सब का ही रखवैया तू  
 ["भोला"]
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शब्दकार , स्वरकार ,गायक : 
व्ही .एन .श्रीवास्तव  "भोला"
 सहयोग 
श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत प्यारा भजन .... सादर

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर व् भावात्मक प्रस्तुति .सराहनीय अभिव्यक्ति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग

Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता ने कहा…

bahut sundar lagaa uncle :) aabhaar :)

Bhola-Krishna ने कहा…

स्नेहमयी संगीता जी,शालिनी जी तथा शिल्पा जी - बहुत बहुत धन्यवाद एवं आशीर्वाद !
बेटा,बिलकुल गुणहींन हूँ मैं ! गुरुजनों के आशीर्वाद से कुछ लिखनेपढ़ने और गानेबजाने की शक्ति मिली है ! गुरुजन का यह प्रसादामृत मैं दोनों हाथों से उलीच कर सब स्नेही स्वजनों में वितरित करना चाहता हूँ !स्वरचित भजनों का भंडार है और सब की धुनें भी हैं! ब्लॉग के माध्यम से इन भजनों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ ! जीवन में अब अधिक दिन शेष नहीं हैं ! जैसी हरि इच्छा होगी वैसा होगा ! आप सब प्रसन्न रहें ,