अपने इष्ट का "नाम" सिमरन - महाऔषधि
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राम नाम मुद मंगलकारी , विघ्न हरे सब पातक हारी
[ स्वामी सत्यानन्द जी ]
सिद्ध संत महात्माओं का कथन है कि असाध्य से असाध्य सांसारिक व्याधि से मुक्ति की एक मात्र औषधि है "नाम सिमरन , नाम जाप" ! हमारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने कहा
औषधि राम नाम की खाइये ! मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये !!
संत तुलसीदास , संत कबीरदास , संत रविदास एवं गुरु नानक देव आदि महात्माओं ने भी"राम नाम"को भव रोगों से मुक्ति का सहज एवं सरलतम उपचार उद्घोषित किया ! प्रियजन इन महात्माओं की राम नामी औषधि का "राम" मात्र दशरथ नंदन राम नहीं है !
इन महात्माओं का इष्ट ["राम"] वह सर्व शक्तिमान एकेवाद्वातीय परम पुरुष "परमात्मा" है जो परम सत्य है , जो प्रकाशरूप है , जो परमानंद स्वरूप है , जो सर्वज्ञ है और सर्वव्यापी है !
यह वही परमात्मा है जिसे विभिन्न मतावलंबी अलग अलग नामों से पुकारते हैं ! अधिकाधिक हिंदू उन्हें - "ईश्वर , शिव , विष्णु ,कृष्ण ,राम" आदि नामों से पूजते हैं ! मुसलमान भाई उन्हें "रहीम ,अल्लाह,खुदा" आदि नामों से याद करते हैं ! ईसाई उन्हें "पितास्वरूप GOD" के रूप में देखते हैं ! हमारे सिक्ख भाई बहेन् उन्हें "वाहेगुरू" कह कर पुकारते हैं ! हिंदुत्व की एक धारा उन्हें "राधा स्वामी" की संज्ञा देती है !
उल्लेखनीय है कि सद्गुरुजन के मुखारविंद रूपी गंगोत्री से प्रगटीं उपरोक्त सभी पवित्र धारायें अंततोगत्वा परमानंद के एक ही महासागर - परमपिता परमेश्वर की मोदमयी गोदी में विलीन हो जातीं हैं !
प्रियजन सद्गुरु की अनन्य कृपा से प्राप्त जिस इष्ट को हम पुकारते हैं , उसका नाम है "राम" और हमारा दृढ़ मत है कि हमारे इस "राम" नाम में वही सर्वशक्तिमान परमात्मा विद्यमान है जो इस्लाम के "अल्लाह" में है , जो ईसाइयों के "GOD" में है , जो सिक्ख भाइयों के "वाहेगुरू" में है , जो राधास्वामी मतावलंबियों की राधा धारा में प्रवाहित हो रहा है !
हमे आनंद आता है अपने सद्गुरु से प्राप्त इस नाम के उच्चारण में ! हमे सुख मिलता है अपने इष्ट के गुण गाने में ! ऐसा क्यूँ न हो ,उन्होंने हमें शब्द एवं स्वर रचने की क्षमता दी , गीत गाने के लिए कंठ और वाद्य बजाने के लिए हाथों में शक्ति दी ! "उनसे" प्राप्त इस क्षमता का उपयोग कर और पत्र पुष्प सदृश्य अपनी रचनाये "उनके" श्री चरणों पर अर्पित कर हम संतुष्ट होते हैं, परम शान्ति का अनुभव करते हैं , आनंदित होते हैं ! हम अपने जीवन में कोई न्यूनता नहीं अनुभव करते ! हमे किसी किस्म की कोई भी कमी महसूस नहीं होती
हमाँरे अंतःकरण की कलुषिता - कालिमा छंट जाती है ! कोई वैरी नहीं लगता ! किसी अन्य का कोई दोष हमे नजर नहीं आता ! सबही अपने लगते हैं ! सब प्यारे लगते हैं ! सबको गले लगा कर ,सबके स्वर में स्वर मिलाकर सबके इष्ट उन "एक" परमपिता परमेश्वर को पुकार कर एक साथ समग्र मानवता के कल्याण हेतु प्रार्थना करने को जी चाहता है !
भारतीय परिपेक्ष में कठिन लगता है इस स्वप्न का सत्य होना ! परन्तु असंभव नहीं है यह ! मैंने पाश्चात्य देशों में ऐसा होते स्वयम देखा है !
आश्चर्य है कि भारत में ऐसा नहीं हो सकता ?
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प्रियजन
मैं निज सद्गुरु के मार्गदर्शन से प्राप्त
इष्ट "राम" के नाम का गुणगान कर के अति प्रसन्न हूँ !
आप भी अपने अपने इष्ट का गुण गान करिये और
परमानंद युक्त परम शान्ति का अनुभव करिये !
लीजिए सुनिए
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे !
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भव सागर पार रे !
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राम नाम मुद मंगल कारी; विघ्न हरे सब पातक हारी
सांस सांस श्री राम सिमर मन;पथ के संकट टार रे भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे !!
भजन : शब्दकार ,स्वरकार, गायक - VNS "भोला"
परम कृपालु सहायक है वो; बिनु कारन सुख दायक है वो।
केवल एक उसी के आगे ; साधक बाँह पसार रे।
भज मन मेरे ...
गहन अंधेरा चहुं दिश छाया ;पग पग भरमाती है माया ।
जीवन पथ आलोकित कर ले ; नाम सुदीपक बार रे ।
भज मन मेरे ...
सर्वेश्वर है , परमेश्वर है । 'नाम' प्रकाश पुन्य निर्झर है ।
मन की ज्योति जलाले इससे । चहुं दिश कर उजियार रे ।
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
नाम सुनौका बैठ मुसाफिर जा भव सागर पार रे !!
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(शब्दकार ,स्वरकार ,गायक - व्ही एन एस "भोला")
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवा
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