( गतांक के आगे )
प्रियजन मुझे तो उनके इस कथन मैं अहमता की दुर्गंध आ रही है ! आप भी लिहाज़ और तकल्लुफ छोडिये ,और निवेदक के उपरोक्त कथन की दुर्गन्ध स्वीकार लीजिए !
महात्माओं का कथन है कि मानव एकमात्र निजी अथवा अपने किसी निकटतम मानवी सहयोगी के बल बूते से कोई भी आध्यात्मिक अथवा सांसारिक कार्य सफलता से सम्पन्न नहीं कर सकता !
भगवत् कृपा से उपलब्ध दिव्य प्रेरणाओं तथा निज प्रारब्धानुसार प्राप्त मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के बिना मानव किसी भी क्षेत्र में कभी कोई सफलता नहीं पा सकता !
प्रियजन हम सब साधारण मानव हैं ! अपने अपने इष्ट देवों के "भरोसे" हम आज तक जिये हैं और शेषजीवन भी "उनके भरोसे" ही जीलेंगे, हमे इस सत्य का ज्ञान और उस की सार्थकता पर दृढ़तम् भरोसा होना चाहिए !
गुरुजन की कृपा से बहुत पहले ३० - ४० वर्ष की अवस्था मैं ही मेंरी यह धारणा प्रबल हो गयी ! कैसे बनी यह हमारी दृढ़ भावना ?
वर्षों पुरानी डायरीज़ के प्रष्ठों के बीच दबी यादों की मंजूषा की कई सूखी पंखुडियाँ हाथ आगई हैं ! आप भी आनंद लें उसकी भीनीभीनी सुगंध का
इस विषय मैं इसके आगे कुछ लिखने से लेखनी - ( हमारे कम्प्यूटर ने ही ) इनकार कर दिया ! ऊपर से यह विचार भी आया कि मेरी सहयोगिनी अर्धांगिनी श्रीमती जी ,सदा की भांति इस बार भी मेरे किसी अहंकार सूचक स्वगुणगान युक्त बकवास में मेरा सहयोग नहीं देंगी ! अस्तु अपने निजी अनुभव तक सीमित रहूंगा और परिवार वालों के "भरोसे" से प्राप्त दिव्य अनुभूतियों के बीच जीवन दान तक का वर्णन फिलहाल नहीं करूँगा !
"उनकी" कृपा करुणा और "उनके" प्रेम के "भरोसे" हमारा 'वर्तमान' कैसा प्रफुल्लित है उसका नमूना अवश्य पेश करूंगा ! !
प्रियजन , इस दासानुदास को उसके ऊपर होने वाली "राम कृपा" का मधुर अनुभव प्रति पल हो रहा है ! शरीर जीर्णशीर्ण हो गया है लेकिन "मन" पूर्णतः स्वस्थ और आनंदित है ! उसका "रिसीवर" सूक्ष्म से सूक्ष्म दिव्य -"इथीरिय्ल" तरंगों को ज्यूँ का त्यूं पकड़ रहा है ! "प्यारे प्रभु" के प्रेरणात्मक संदेशों की अमृत वृष्टि में सराबोर है मेरा तन मन ! शब्द और स्वरों की बौछार हो रही है ! स्वरों के साथ शब्द मूक मुख से स्वतः प्रस्फुटित हो रहे हैं ! "भरोसे"का कितना सरस सुंफल है यह -
सद्गुरु की कृपा से मन में "राम भरोसा" अवतीर्ण हुआ ! मैंने उनकी दिव्य प्रेरणाओं के सहारे बिस्तर पर लेटे लेटे अपने सूखे कंठ से महाराज जी के भजन "अब मुझे राम भरोसा तेरा" की धुन बनाई , गाया और रेकोर्ड भी किया ! प्रियजन "कर्ता" नहीं हूँ , केवल यंत्र हूँ ! सुनिये देखिये ---
"भरोसे" के सहारे आज तक जिये हैं और आगे भी जियेंगे !
भरोसा
केवल यह प्रार्थना किये जायेंगे कि :
भरोसा हो तो ऐसा हो मेरे मालिक मुझे तुम पर ,
भरोसा हो तो ऐसा हो मेरे मालिक मुझे तुम पर ,
कि मेरा जी न घबराये ,'सुनामी' भी अगर आये !!
गतांक मैं मैंने कहा था :
राम भरोसे काट दिए हैं, जीवन के "पच्चासी"
बाक़ी भी कट जायेंगे,मन काहे भया उदासी
थामे रह 'उसकी' ही उंगली दृढता से मनमेरे
पहुंचायेगा "वही" तुझे 'गंगासागर औ कासी'
('भोला')
इस तुकबंदी के बाद मैंने यह भी स्वीकारा था कि
इस तुकबंदी के बाद मैंने यह भी स्वीकारा था कि
कम्प्युटर पर उपरोक्त पंक्तियाँ लिखकर जब दुबारा पढीं तो अपने कथन की असत्यता का आभास हुआ ! अहंकारी "भोला जी " समझते हैं कि अपने जीवन के पिछ्ले ८५ वर्ष वह एकमात्र अपने पराक्रम से जिये हैं !
प्रियजन मुझे तो उनके इस कथन मैं अहमता की दुर्गंध आ रही है ! आप भी लिहाज़ और तकल्लुफ छोडिये ,और निवेदक के उपरोक्त कथन की दुर्गन्ध स्वीकार लीजिए !
महात्माओं का कथन है कि मानव एकमात्र निजी अथवा अपने किसी निकटतम मानवी सहयोगी के बल बूते से कोई भी आध्यात्मिक अथवा सांसारिक कार्य सफलता से सम्पन्न नहीं कर सकता !
भगवत् कृपा से उपलब्ध दिव्य प्रेरणाओं तथा निज प्रारब्धानुसार प्राप्त मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के बिना मानव किसी भी क्षेत्र में कभी कोई सफलता नहीं पा सकता !
प्रियजन हम सब साधारण मानव हैं ! अपने अपने इष्ट देवों के "भरोसे" हम आज तक जिये हैं और शेषजीवन भी "उनके भरोसे" ही जीलेंगे, हमे इस सत्य का ज्ञान और उस की सार्थकता पर दृढ़तम् भरोसा होना चाहिए !
गुरुजन की कृपा से बहुत पहले ३० - ४० वर्ष की अवस्था मैं ही मेंरी यह धारणा प्रबल हो गयी ! कैसे बनी यह हमारी दृढ़ भावना ?
वर्षों पुरानी डायरीज़ के प्रष्ठों के बीच दबी यादों की मंजूषा की कई सूखी पंखुडियाँ हाथ आगई हैं ! आप भी आनंद लें उसकी भीनीभीनी सुगंध का
"उनकी" कृपा करुणा और "उनके" प्रेम के "भरोसे" हमारा 'वर्तमान' कैसा प्रफुल्लित है उसका नमूना अवश्य पेश करूंगा ! !
प्रियजन , इस दासानुदास को उसके ऊपर होने वाली "राम कृपा" का मधुर अनुभव प्रति पल हो रहा है ! शरीर जीर्णशीर्ण हो गया है लेकिन "मन" पूर्णतः स्वस्थ और आनंदित है ! उसका "रिसीवर" सूक्ष्म से सूक्ष्म दिव्य -"इथीरिय्ल" तरंगों को ज्यूँ का त्यूं पकड़ रहा है ! "प्यारे प्रभु" के प्रेरणात्मक संदेशों की अमृत वृष्टि में सराबोर है मेरा तन मन ! शब्द और स्वरों की बौछार हो रही है ! स्वरों के साथ शब्द मूक मुख से स्वतः प्रस्फुटित हो रहे हैं ! "भरोसे"का कितना सरस सुंफल है यह -
सद्गुरु की कृपा से मन में "राम भरोसा" अवतीर्ण हुआ ! मैंने उनकी दिव्य प्रेरणाओं के सहारे बिस्तर पर लेटे लेटे अपने सूखे कंठ से महाराज जी के भजन "अब मुझे राम भरोसा तेरा" की धुन बनाई , गाया और रेकोर्ड भी किया ! प्रियजन "कर्ता" नहीं हूँ , केवल यंत्र हूँ ! सुनिये देखिये ---
क्रमशः
निवेदक - व्ही एन श्रीवास्तव "भोला:
सहयोग - श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
वाह कितना सुन्दर भजन है कितनी सुन्दर लय और बोल हैं।
दीपक नाम जगा जब भीतर मिटा अज्ञान अँधेरा
बहुत ही सुंदर । आँसू आ गए ��
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