शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

हम कैसे जिए

-राम 
 "समग्र सृष्टि का 
 एक मात्र भरोसा, एक बल, एक आस और एक बिस्वास"

राम कृपा से हम सब सुरक्षित हैं !
कमरे में आनंद से अपने कृपालु  प्रभु के प्रति,  उनकी अनंत करुणा हेतु अपना हार्दिक आभार व्यक्त करते रहे ! 

उनके सन्मुख ,उनसे ही प्राप्त क्षमताओं के संबल से , हम ,उनके ही शब्द , उनकी ही धुनों से सजा कर ,उनके ही कंठ से मुखर कर , उनकी ही प्रेरणा से , अपनी स्वरांजलि  बनाकर उनके श्री चरणों पर अर्पित करते रहे !

नीचे के चित्र में टीले के सामने खड़ा  प्यारे प्रभु की  अनंत कृपाओं के लिए उनके प्रति अपना हार्दिक  आभार  व्यक्त करता यह  निवेदक दासानुदास "भोला" 


 


प्रियजन , इसके अतिरिक्त हम उनकी और कौनसी सेवा कर सकते थे ऐसे बर्फीले मौसम में?  हमारे पास अपने प्यारे प्रभु के श्री चरणों पर अर्पित करने योग्य यहाँ कुछ भी न था ! यदि उपलब्ध था तो केवल सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द्जी महाराज से प्राप्त "नामोपासना" की ललक और स्वर सेवा प्रदान कर स्वामी जी  की  भक्तिरस रंजित रचनाओं को सुंदर-सुगन्धित पुष्पों  का स्वरूप दे उन्हें अपने प्यारे प्रभु को समर्पित करने की क्षमता  ! 

उनमे से एक आज आपको अवश्य सुनाउंगा /दिखाउंगा ! उसका  यू ट्यूब लिंक भी नीचे दे रहा हूँ ! भजन के शब्द ऐसे हैं -


अब मुझे राम भरोसा तेरा 
मधुर  महारस नाम पान कर , मुदित हुआ मन मेरा !!

दीपक नाम जगा जब भीतर ,  मिटा अज्ञान अन्धेरा !!

निशा निराशा  दूर  हुई  सब ,   आया   शांत    सबेरा  !!

अब मुझे राम भरोसा तेरा
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LINK
http://youtu.be/_eXPkYiL8H8




निज अनुभव के आधार पर आपसे एक अनुरोध  करूँगा ," एक बार अपने इष्ट के श्री चरणों पर पूर्णतः समर्पित हो कर ,उनपर पूरा भरोसा कर के इतना कहो तो सही कि,    

हें अखिल विश्व के नाथ!  सर्वशक्तिमान प्रभु , 
मैं तेरी शरण में पूर्णतः अर्पित हूँ ! 
मुझे शुचिता सत्य व सुविश्वास दे !
मेरे सभी अपराध क्षमा कर !  
मुझे अपनी अपार लगन, अपना अटलनिश्चय , अतुल्य प्यार 
और अनमोल "भरोसा" दे !
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स्वामीजी महाराज के शब्दों में 

मुझे भरोसा राम तू दे अपना अनमोल 
रहूं मस्त निश्चिन्त मैं कभी न जाऊं डोल 

प्रियजन उसके बाद देखिये कि तूफानों से भी भयंकर 
आपदाओं में "वह",  आपको कैसे  सुरक्षित रखता है !


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निवेदक:   व्ही.  एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

मैंने क्या किया - बर्फीले तूफ़ान भरे गत ४ सप्ताहों में -प्रस्तुत है

बर्फीले तूफ़ान भरे दिन रात, तापमान शून्य से भी २० अंश नीचे 
बाहर निकलने का प्रश्न ही नहीं ,
गरम कमरे में बैठे बैठे 
हमने प्रतीक्षा की , 
शिव-कृपा-अवतरण की 
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"ओम नमः शिवाय" 

कर्पूरगौरम  करुणावतारम  संसारसारं  भुजगेंद्रहारम  
     सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि 

कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले ,करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में 
सदा सर्वदा बसे रहते हैं ,हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं !!" 

 !महामहिमामय  देवों के देव महादेव  का  स्वरूप तेजोमय और कल्याणकारी है ! 
"शिव"  का शब्दार्थ है " कल्याण" !!




पुरातन काल से ओंकार" के मूल ,विभु ,व्यापक , तुरीय  शिव के  निराकार ब्रह्म स्वरूप को  हमारे धर्माचार्यों ने एक  अनूठा वैरागी  स्वरूप दिया है ;  जिसमें  उनके  शरीर  को भस्म से विभूषितकिया है , उनके गले में सर्प और  रुंड मुंड की माला डाली है,उनकी जटाजूट ने पतित पावनी "गंगधारा" को विश्राम प्रदान किया है ,उनके भाल  को दूज के चाँद से अलंकृत किया है ! "

एक हाथ से डम डम डमरू बजाते तथा दूसरे में त्रिशूल लहराते "शिव शंकर"  कभी ललितकला सम्राट नटराज , तो कभी पापियों के संहारक् ,कभी  तांडव नृत्य की लीला से प्रलयंकारी  तो कभी भक्त को मनमांगा वरदान देने वाले औघडदानी लगते हैं ! अपने सभी स्वरूपों में वह वन्दनीय हैं !

उनके गुण , स्वभाव और  क्रिया -कलाप के कारण श्रद्धालु  भक्तजन  शिव ,शंकर ,भोला ,महादेव ,नीलकंठ , ,नटराज, त्रिपुरारी , अर्धनारीश्वर ,विश्वनाथ आदि अनेकानेक  नामों से उनका नमन  करते है ! 
आइये   आज हम आप सब प्रियजनों के साथ मिल कर समवेत स्वरों में पूरी श्रद्धा एवं निष्ठां से ,गुरुजनों के भी सद्गुरु ,सर्व गुण सम्पन्न ,सर्व शास्त्रों के ज्ञाता ,
सर्वकला पारंगत , राम भक्त , देवाधिदेव , भोले नाथ शिव शंकर की वन्दना करें :

ओम नमः शिवाय

शिव वन्दना 

  ओम नमः तुभ्यम महेशान , नमः तुभ्यम तपोमय ,
प्रसीद शम्भो देवेश, भूयो भूयो नमोस्तुते !
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जय शिव शंकर औघडदानी 
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी 


सकल बिस्व के सिरजन हारे , पालक रक्षक 'अघ संघारी' 
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी  

हिम आसन त्रिपुरारि बिराजें , बाम अंग गिरिजा महरानी
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी 

औरन को निज धाम देत हो , हमसे करते आनाकानी 
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी

सब दुखियन पर कृपा करत हो हमरी सुधि काहे बिसरानी 
जय शिव शंकर औघड़दानी ,विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी
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महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई स्वीकारें 
और सुने इस दासानुदास द्वारा रचित 
उपरोक्त शिव वन्दना 


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निवेदक - व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग - श्रीमती कृष्णा भोला 
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सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

कैसे जियें ? सतत सेवारत रहो

कैसे जियें - हम रिटायर्ड लोग  ?
 संत महात्माओं का कथन है: 
"सेवा करो"
"सेवारत" रहकर अपना लोक-परलोक दोनों संवार लो !"
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सेवानिवृत होकर अब पुनः सेवा करें ? किसकी ? कैसे ?
सद्गुरु स्वामी सत्यानन्दजी महाराज ने सेवाधर्म को सर्वोच्च धर्म बताया 




स्वामी जी ने अपने सदग्रंथ "भक्ति प्रकाश"  के "सेवा" प्रकरण में कहा :

सेवा धर्म सुधर्म है, है यह उत्तम काम 
अर्पण कर भगवान को कर सेवा निष्काम !!
अहम भावना त्याग कर और छोड़ अभिमान !
स्वार्थ परता त्याग कर सेवा हो गुण खान !!
सेवा में सब गुण बसें ,पुण्य कर्म उपकार !
दया दान हित नम्रता , उन्नति पतित सुधार !!
परमारथ यह समझिए, परम धाम सोपान !
परम प्रभू की साधना , दायक उत्तम ज्ञान !!
हाथ जोड़ मांगूं हरे ,सेवा कृपा प्यार 
विनय नम्रता दान दे , देना सब कुछ वार !!
तेरे जन के हित लगे , तन मन.धन सब ठाठ!
आत्मा तुम में ही रमे , मुख में तेरा पाठ !!
साधो ! सेवा साधिए मन से मान  मिटाय !
हरिजन को संतोषिए , ऊंच नीच भुलाय !!


इस ८५ वर्षीय जर्जर काया से अब क्या सेवा होगी ?
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आज अपनी इन शारीरिक दुर्बलताओं के कारण हमे कभी कभी असहनीय ग्लानि और चिंता होती है कि, जीवन पथ के अंतिम पड़ाव पर डगमगाते पैरों पर खड़े हम-- क्षमताहीन अस्वस्थ बूढे,  भारतीय, सनातन मूल्यों पर आधारित कर्मकाण्ड सम्मत "साधना","उपासना" "आराधना" और पूजा पाठ कैसे कर पायेंगे और कैसे हम अपने सद्गुरु द्वारा इंगित उपरोक्त "सेवा-पथ" पर चल पायेंगे ? 

प्रियजन ! संतमहात्माओं का कहना है कि ऎसी चिंता होनी स्वाभाविक है !सेवा की व्याख्या करते हुए इन महात्माओं ने "सेवाधर्म " निभाने के लिए अनेक सरल मार्ग भी दर्शाये !

अपने अगले आलेख में विस्तार से उन अन्य सुगम मार्गों को दिखाने का प्रयास करूँगा जो  महात्माओं ने हमे बताये हैं !  

अभी , अपने आध्यात्मिक सद गुरुजन के मार्गदर्शन से "भजन गायन " की जिस "सेवा" पगडंडी पर मैं १९५९ से अब तक चला और अब भी चल रहा हूँ और जिसका मधुरतम "सुफल" , न चाहते हुए भी मैंने आजीवन पाया उसका एक उदाहरण प्रस्तुत कर दूँ  ! 

आजकल भजन गायन "सेवा" में मैं अपना अधिकतर समय लगाता हूँ ,! कांखते , खांसते, कराहते  आहें भर भर के, दिन भर के २४ घंटों में से २२ घंटे बिस्तर पर समानंतर समतल लेटेलेटे भी मैं गाता रहता हूँ ---------

अपने सद्गुरु के अतिरिक्त , एक नहीं अनेक, महात्माओं ने मुझे "स्वर में ही ईश्वर दर्शन" करते हुए भजन-कीर्तन-गायन द्वारा स्वयम "निज की सेवा" के साथ साथ श्रोताओं की सेवा करते रहने की प्रेरणा दी ! मैंने अपनी आत्म कथा में विस्तार से इसका वर्णन किया है ! सभी महात्माओं ने मुझे निष्काम भाव से , अहम एवं  सुफल की कामना त्याग कर आजीवन गाते रहने को प्रोत्साहित किया ! और मुझे ऐसा लगता है कि वे ही मुझे इतनी शक्ति दे रहे हैं कि मैं आजतक उनके द्वारा निदेशित सेवा कर पा रहा हूँ !

सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी के आदेशानुसार "भक्ति प्रकश " के "सेवा प्रकरण" के उपरोक्त दोहे आपको सुना रहा हूँ ! समय हो तो अवश्य सुने !


http://youtu.be/odZEXHGS118

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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग:  श्रीमती कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव 
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