२००८ का अंत, कोमा में, अस्पताल में, आई सी यू में पड़ा हुआ था, एक मध्य रात्रि थोड़ा होश आया, रात्रि की नीरवता में मेरे कान में सस्वर इस भजन की एक पंक्ति सुनायी दे रही थी! कहाँ से आ रही थी वह आवाज़ मुझे नहीं मालूम, पर ये शब्द साफ साफ मुझे सुनायी दिए।
उस समय, "कोमा" के बीच, होश आने पर, मैं कुछ बडबड़ाया जिसे ड्यूटी नर्स ने एक पुर्जी पर नोट कर लिया ! प्रियजन, अगले प्रातः धर्म पत्नी कृष्णा जी ने वह पर्ची पढ़ी, उसमे लिखा था :-
रोम रोम 'श्रीराम' बिराजें धनुष बाण ले हाथ
माता सीता लखनलाल अरु बजरंगी के साथ
(आये कोई लगाये हाथ)
इसी मुखड़े पर आधारित, यह भजन उसके बाद पूरा लिखा एवं गाया।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।
जनक लली, श्री लखन लला अरु महावीर के साथ ।।
वन्दन करते राम चरण अति हर्षित मन हनुमान ।
आतुर रक्षा करने को सज्जन भगतन के प्रान ।
अभयदान दे रहे मुझे करुणा सागर रघुनाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
मुझको भला कष्ट हो कैसे, क्यों कर पीड़ सताए ।
साहस कैसे करें दुष्ट जन, मुझ पर हाथ उठाए ।
अंग संग जब मेरे हैं संकटमोचन के नाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
विघ्न हरे, सद्गुरु के आश्रम स्वयं राम जी आये ।
शाप मुक्त कर दिया अहिल्या को पग धूर लगाये ।
वैसे चिंता मुक्त हमें कर रहे राम रघुनाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।
जनक लली, श्री लखन लला अरु महावीर के साथ ।।
मेरे रोम रोम श्री राम विराजते रहे, यही मेरी इच्छा है ।
- व्ही. एन. श्रीवास्तव 'भोला'
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