शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

" नाम महिमा "


कलियुग केवल नाम अधारा


अपनी इस धरती पर ही हजारों वर्ष पूर्व प्रगटे युग-दृष्टा महापुरुषों ने तभी यह उद्घोषित कर दिया था कि जहां सतयुग त्रेता एवं द्वापर युग के जीवों को भगवत प्राप्ति हेतु तपश्चर्या, यज्ञ आदि अति कठिन चेष्टाएं करनी पडेंगी , वहाँ कलियुग के प्राणियों को वही मुक्ति केवल "नाम" जप सिमरन ,भजन कीर्तन से प्राप्त हो जायेगी ! पौरानिक ग्रंथों में इस सत्य का उल्लेख है!
आज के युग में , गोस्वामी तुलसीदास ने यही बात लोक भाषा में हमारे हितार्थ इस प्रकार कही है :

कलियुग केवल नाम अधारा ,सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ,
चहु जुग चहु श्रुति नाम प्रभाऊ ,कलि बिसेस नहीं आन उपाऊ !!

एहि कलिकाल न साधन दूजा , जोग जज्ञ जप तप व्रत पूजा ,
रामहि सुमिरिय गाइह रामहि संतत सुनिय राम गुण ग्रामहि !!

महामंत्र जोई जपत महेसू , कासी मुकुति हेतु उपदेसू
महिमा जासु जान गन राऊ , प्रथम पूजियत नाम प्रभाऊ !!

जान आदि कबि नाम प्रतापू , भयऊ सुद्ध करी उलटा जापू ,
सहस नाम सम सुनि सिव बानी ,जपि जेई पिय संग भवानी !!

हरषे हेतु हेरि हर ही को , किय भूषण तिय भूषण ती को
नाम प्रभाऊ जान सिव नीको , कालकूट फलू दीन्ह अमी को !!

तुलसी ने उस पौराणिक कथन को दुहराते हुए कहा कि कलियुग में केवल नाम स्मरण से ही मानव का कल्याण हो जायेगा ! त्रिपुरारी महेश ने इसी महामंत्र का जाप किया ! आदि कवि बाल्मीकि तो उलटे नाम का जाप कर के ही सब पापों से मुक्त हो गए ! शिव जी के मुख से नामोच्चारण सुन कर भवानी ने भी अति श्रद्धा से नाम जाप किया और अपने रूठे पति को हर्षित कर दिया ! नाम का प्रभाव जान कर ही शिवजी ने कालकूट हलाहल को अति निश्चिन्तता से अपने कंठ में स्थान दिया !

अंत में निम्नांकित पंक्तियों में तो तुलसी ने यहाँ तक कह डाला कि 'नाम' की बडाई स्वयम राम भी नहीं गा सकते ! अच्छे भाव (प्रेम) से , बुरे भाव (वैर) से, क्रोध से या आलस से किसी तरह से भी 'नाम' जपने से दसों दिशाओं में कल्याण ही कल्याण होता है !

कहों कहा लगि नाम बडाई , राम न सकहि नाम गुन गाई
भायँ कुभायँ अलख आलस हूँ , नाम जपत मंगल दिस दसहूँ

अब आप ही कहो मेरे प्यारे पाठकों , जब स्वयम "राम" असमर्थ हैं , "नाम" के गुण गाने में ,तो मैं एक अति साधारण पूर्णतः अज्ञानी मानव कैसे साहस करूं "नाम महिमा" के उस अथाह सागर में डूबकी लगा कर "नाम" के गुणों के अनमोल मोती खोज निकालने की ! मैं तो केवल गुरुजनों से सुने वाक्यों को दुहरा सकता हूँ और अपने जीवन के ८२ वर्षों के अनुभवों को आपसे शेअर कर सकता हूँ !

तो लीजिए सबसे पहले , अभी कल ही ,एक विद्वान ब्लोग्गर बंधु ,डॉक्टर अनवर जमाल साहब से मिले अति सार्थक सन्देश को ज्यों का त्यों आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ ! डॉक्टर साहेब की बतायी सभी बातें , मुझे अपने अनुभवों के आधार पर भी बिलकुल ठीक लग रही हैं ,केवल उसमे बताई "तीन" महीने वाली बात मेरी समझ में नही आयी क्योंकि उस विषय का मेरा अनुभव शून्य है ! मेरे अनुभव में अपने प्यारे प्रभू की कृपा प्राप्ति के लिये "नाम जाप" जैसी किसी साधना के वास्ते कोई "समय सीमा" जैसे तीन महीने अथवा उससे कम या ज्यादा , नही निश्चित की जा सकती ! हम सब साधारण साधक कैसे ,स्वामी राम तीर्थ जी , हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महराज जी अथवा वर्तमान काल के जगतगुरु कृपालु जी महराज के समान किसी समय सीमा में "उनकी" कृपा प्राप्त कर सकते हैं ? (जब तक हम पर हमारे गुरुजनों की विशेष कृपा दृष्टि न हो )

चलिए डॉक्टर जमाल के बहुमूल्य वचन पढ़ लें :
नाम जाप एक अति प्राचीन पद्धति है. इसके कारगर होने में कोई शक नहीं है।कुछ लोग वाणी से उच्चारित करते हैं और कुछ लोगमन से जाप करते हैं !.किसी भी तरह से जाप किया जाए लेकिन जाप में निरंतरता रहने से वह जाप अखंड भाव से मनुष्य के अंतर्मन में जारी हो जाता है।तीन माह के बाद आदमी चाहे सोता रहे या रोता रहे या गाता रहे कुछ भी वह जाप उसके अंदर चलता ही रहता है और जाप करने वाला उसे सुनता है। दिल की आवाज़ को भौतिक जगत की अन्य ध्वनियों की तरह सुना जाना संभव है.जिसे शक हो ख़ुद करके या हमारे पास आकर देख ले, सुन ले.इस जाप से मन को शांति मिलती है लेकिन यह जाप तब तक ईश्वर की प्राप्ति का साधन नहीं बन पाता जब तक कि उसके आदेश निर्देश का पालन न किया जाए.!मन मानी के साथ नाम जाप से सिद्धि भी मिल सकती है और शक्ति भी लेकिन प्रभु का वह अनुग्रह नहीं मिल सकता जिसके लिए मनुष्य की सृष्टि की गई और उसे इस जगत में लाया गया। उसके आदेश से काटने के बाद नाम जाप मात्र एक मनोरंजन भर है।


पाठकगण , अपने इस बुज़ुर्ग शुभ चिंतक की बात मान कर , आज अभी ,अपने "प्यारे इष्ट" का नाम सुमिरन कर लीजिए ! कितनी बार अथवा कितनी देर कोई महत्व नहीं रखता !एक पल दो पल ही काफी होगे यदि पूरी श्रद्धा भक्ति से नाम लिया जाय !
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निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : डॉक्टर श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव
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5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपने इष्ट का नाम पूरी श्रद्धा से क्षण मात्र को भी लिया जाए तो काफी होता है .. सार्थक पोस्ट

vandana gupta ने कहा…

्नाम जप अखंड चलने लगे तो कहना ही क्या मगर ऐसा होना इतना आसान नही और जो इस अवस्था तक पहुंच जाता है उसके लिये फिर और कुछ करना शेष नही रहता।

रेखा ने कहा…

पूरी श्रद्धा भक्ति से अपने इष्टदेव का ध्यान करने की कोशिश जरुर करुँगी ...

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम - मै तो बच्चो के प्यारे "' प्रभु "' नाम लेकर सदैव खुश रहता हूँ !

Bhola-Krishna ने कहा…

प्रियवर गोरखजी ,स्नेहमयी संगीताजी, वंदनाजी, और रेखाजी,
हम लोग अपने प्यारे बच्चों को देवताओं का नाम देते हैं और उनके "नाम" अति स्नेह से लेकर उसके द्वारा अपने "प्रभु" का सुमिरन कर लेते हैं ! इधर हम "प्रभु" को "याद" करते हैं और उधर ,तुरंत ही प्यारे "प्रभु" हमारी "याद" के बदले में उलट कर हम पर "दया" करते हैं और हमारी झोली "खुशियाँ" से भर देते हैं जो हम आजीवन लूटते लुटाते हैं ! अस्तु किसी बहाने"नाम" लेते रहिये , खुशिया लूटते रहिये !
धन्यवाद , आभार !