"भरमाये हैं"
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सुश्री संगीता स्वरूप "गीत" जी के ब्लॉग में उनकी उपरोक्त गजल पढ़ी !
पहला शेर पढते ही उनके शब्दों में निहित आज के भारत की
"गंदी राजनीति"
की वास्तविकता उजागर हो गयी !
("गंदे" के लिए , इससे गंदा शब्द मेरे मुंह से निकलेगा ही नहीं )
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मध्य रात्रि थी , बिस्तर छोड़ कर मैं तुरंत अपने केसियो सिंथेसाइजर पर बैठ गया ! दैविक प्रेरणा से , संगीता जी की ये गजल थोड़े परिवर्तित शब्दों के साथ ,मेरे कंठ से प्रस्फुटित होने लगी ! गजल को स्वर बद्ध करके "गेय" बनाने के लिए शब्दों में हेर फेर करने की देवी- प्रेरणा हुई ,पर मैं इसका अधिकारी नहीं था , अस्तु 'गीत जी"से अनुमति मांगी और उन्होंने अति उदारता से मुझे अनुमति दे भी दी ! उनका आभार व्यक्त करते हुए उनकी वही गजल आप सब की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ !
(प्रियजन , मैं भारत से हजारों मील दूर हूँ
उतनी बारीकी से वहाँ की स्थिति का आंकलन नहीं कर सकता ,
आप वहीं हैं और उस वीभत्स परिस्थिति को धीरज से झेल रहे हैं !
आपके धैर्य को नमन करता हूँ )
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"गीत" जी की गजल
"भरमाये है "
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बावफा हैं मगर हम बेवफा कहलाए हैं
आज अपनों नें ही नश्तर हमे चुभाये हैं
चाहते थे न करे जिनपे यकी हम हरगिज़
आज दानिस्दा उन्ही के फरेब खाए हैं
है सियासत बुरी, क्यूँकर करें हम उनपे यकीं
झूठे वादों से जो जनता का मन लुभाए हैं
कैसे विश्वास करे "गीत" ऐसे लोगों का
भ्रमित स्वयम हैं , औरों को भी भरमाये हैं
बावफा हैं मगर हम बेवफा कहलाए हैं
आज अपनों नें ही नश्तर हमे चुभाये हैं
(मूल शब्द श्रजक - संगीता स्वरूप "गीत ")
संशोधक , स्वर शिल्पी एवं गायक : "भोला"
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यह गजल वीडियो रेकोर्ड कर के आपकी सेवा में भेज रहा हूँ !
उम्र और रोगों के कारण मेरी भर्राई आवाज़ के लिए क्षमा करियेगा !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : धर्मपत्नी कृष्णा जी एवं पौत्र गोविन्द जी
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