हिन्दुस्तनी फिल्मों में "गीतों" के बदलते स्वरूप
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प्रियजन , ऐसा नहीं है कि अब मेरी "बच्चन खुमारी" उतर गयी है ! अभी ,कल मध्य रात्रि ही सहसा बच्चन जी के एक अन्य गीत ने मुझे गुदगुदाकर जगाया ! जबरन पलंग छोड़ कर अपने "पोर्टेबल रेकोर्डर" पर , १९५०-६० में बनायी पुरानी धुन में गाकर रिकोर्ड कर लेने को मजबूर हो गया ! मध्य रात्रि की यह प्रेरणा "उनकी" ही ओर से आयी थी --
लेकिन प्रातः होने तक "मालिक" ने दूसरा फरमान जारी कर दिया ! इस बार जो सेवा "उन्होंने" मुझे सौंपी , वह अति कठिन है ! क्यूँ ?
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मैं भली भांति जानता हूँ कि ,पेशे से ,जीवन के अधिकांश भाग में ,"ललित कलाओं" के नितांत विपरीत दिशा की "चर्मकारी" जैसे तथाकथित "अछूत" व्यापर में लगी मेरी यह पंच भूतीय काया, "संगीत" जैसे पवित्र विषय पर ,अधिकार से कुछ भी कह पाने को सक्षम नहीं है ! सच पूछें तों मुझे यह लगता है कि अध्यात्म ,संगीत और साहित्य पर कुछ भी कहना मेरे लिए सर्वथा अनुचित एवं अनाधिकारिक चेष्टा है !
पर फिर भी वह अज्ञात शक्ति मुझे आज प्रातः से ही उकसा रही है ,कि मैं कुछ बोलूँ ! क्यूँ और क्या ? यह मैं अभी नहीं कह पाउँगा ! इस प्रश्न का उत्तर तों 'वह" निराकार ,सर्वज्ञ , "सर्वरहित सब उरपुर-वासी" ही देगा जो इस "जंगली बानर (मुझ)" को प्रीति की डोरी से बांधकर , डंडा फटकार कर ,मुझसे , न जाने क्या क्या करवा रहा है !
मैं दोषी नहीं, सुनो स्वजनों , है सारा दोष "मदारी" का
"भोला" बानर , मैं क्या जानू ,अंतर मैका -ससुरारी का
रस्सी थामे मेरी ,मुझसे, "वह" करवाता मनमानी है
डुगडुगी बजा कर नचा रहा मुझको 'वह' चतुर मदारी है
(भोला)
मेरी तों आपसे केवल यह प्रार्थना है कि आप मेरी इस अनाधारिक चेष्टा - औकात से अधिक विद्वता दर्शाने के अहंकारिक प्रयास के लिए मुझे क्षमा करें!:
चलिए विषय विशेष पर आयें
हमारी फिल्मों में "आयटम नम्बर्स "
बचपन से ,उच्च कोटि के गीतों के साथ साथ फिल्मों में "कोमर्शीयल सक्सेस" के लिए उनमे जबरदस्ती डाले हुए 'आयटम नम्बर्स" सुनता और देखता आया हूँ !
१९३०-४० के दशक के साफ़ सुथरे , शिक्षा प्रद गीत अभी तक याद हैं :
चल चल रे नौजवान ,कहना मेरा मान मान ,
तू आगे बढे जा , आफत से लडे जा ,
आंधी हो या तूफान फटता हो आसमान,
रुकना तेरा काम नहीं चलना तेरी शान
( शायद फिल्म "बंधन" से )
तथा
मन साफ तेरा है कि नहीं पूछ ले जी से ,
फिर जो कुछ भी करना है तुझे कर ले खुशी से,
घबडा न किसी से,
सच्चे नहीं डरते हैं जमाने में किसी से,
( शायद फिल्म -"स्वयंसिद्धा" से )
फिर भी लिख रहा हूँ , यह बताने के लिए कि उस ज़माने के अश्लील से अश्लील गीत , इतने विषैले नहीं थे जितने आजकल के आयटम नम्बर हैं ! १९४० के आसपास "रेहाना" (?) पर फिल्माया यह गीत - "जवानी की रेल चली जाय रे" को मैंने उन दिनों बार बार सुना था पर एक दो बार ही उसे स्क्रीन पर देख सका था ! लेकिन आजकल के फिल्मों के आयटम नम्बर आपके बिना चाहे भी आपको टेलीविजन के किसी न किसी चेनल पर हर घडी दिखाई दे जायेंगे !
पिछले १० वर्षों में हिन्दुस्तानी सिनेमा में आयटम नम्बर्स की बाढ सी आ गयी है ! दुःख होता है यह कहते हुए कि ,तब [१९३० - ४०] के दशक के मुकाबले ,आज के दशक में ऐसे गीतों को फिल्माने में कुछ अभिनेत्रियों द्वारा बे रोक टोक अंग प्रदर्शन और कभी कभी जान बूझ कर "टॉपलेस" होने की प्रक्रिया के कारण आजके "आयटम नम्बर्स" ,पहले के गीतों से कहीं अधिक जहरीले हो गए हैं !
[ १ ] २००६ की फिल्म - "चायना गेट " का गीत " बीडी जलाइ ले "
[ २ ] २०१० की फिल्म - "दबंग " का गीत " मुन्नी बदनाम ---- "
[ ३ ] २०१० की फिल्म - "तीसमार खां" का गीत "शीला की जवानी"
[ ४ ] २०११ की फिल्म - "डबल धमाल" का गीत , " जलेबी बाई "
पिछले चार पांच वर्षों में उपरोक्त गीतों ने , देश के हिन्दी भाषा भाषी युवक युवतियों का कितना शारीरिक ,मानसिक ,बौद्धिक ,नैतिक, तथा आध्यात्मिक कल्याण किया होगा आप प्रबुद्ध मनीषी ब्लोगर बन्धु अवश्य आंक सकते हैं !
[ मैं बरसों से भारत नहीं गया , अस्तु मेरा उपरोक्त ज्ञान उन्हीं गीतों/फिल्मों तक सीमित है ,जिनके विषय में मैंने यहाँ पर अपनी पोतियों से सुना है ]
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क्यूँ लिखवाया "उन्होंने" मुझसे यह सब ? मैं कैसे कहूँ ? लेकिन इतना लिखवाकर "वह"
खामोश हो गए और मेरी कलम थम गयी ! आगे कब और क्या लिखवायेंगे ये तों "वह" ही जाने ! जैसे ही 'सिग्नल' मिलने लगेंगे मेरी 'ब्लोगिंग" पुनः चालू हो जायगी ! मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ आप भी थोड़ी प्रतीक्षा करें !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
3 टिप्पणियां:
आपकी बहुत याद आ रही थी.डेश बोर्ड पर आपकी पोस्ट देख यहाँ
चला आया.आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगता है.
दिल से लिखते हैं आप. आपकी प्रतीक्षा करते रहेंगें,भोला जी.
समय मिलने पर मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-३'
पर आईएगा.
सादर प्रणाम.
तभी तो ये कलियुग है वक्त के साथ कितना कुछ बदल चुका है।
Patali-The Village के अज्ञात स्वजन ,स्नेहमयी वन्दना जी, रेखा जी, तथा स्नेही प्रियवर गोरख जी, एवं हनुमानभक्त प्रिय राकेश जी ,
अपने बेशकीमती कमेंट्स के लिए हार्दिक आभार ,धन्यवाद स्वीकारें !
प्रत्युत्तर में विलम्ब होती है जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आशा है अगले अंकों में "वह" मुझसे आपके कमेंट्स के विस्त्रत उत्तर लिखवायेंगे !
यह भी मैं नहीं लिख रहा हूँ ,"वह" ही लिखवा रहे हैं !मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ , आप भी करलें !- "भोला"
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