सुनामी से पहले का शून्याकाश
१ जुलाई की अपनी मनः स्थिति का विवरण मैं अपने २ जुलाई के ब्लॉग में दे चुका हूँ !
कुछ भि बदला न था सब कुछ हि रोज जैसा था .
भीड़ में जीस्त की मुझ को मिली तन्हाई थी
वैसे साधारणतःमेरे प्रियजन मुझे इस प्रकार के दार्शनिक गूढ़ तथ्यों से ओतप्रोत प्रतीकात्मक पद गाने से मना करते थे जिनमे जीवात्मा के इस संसार से प्रयाण का जीवंत चित्रण होता है !
'हमारा पूर्वाभास'
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केवल मैं ही नहीं , यहाँ अमेरिका के अनेक साधकों ने मुझे बताया कि
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केवल मैं ही नहीं , यहाँ अमेरिका के अनेक साधकों ने मुझे बताया कि
पहली जुलाई की सुबह से ही अकारण उन्हें अपने
चारो ओर एक अजीब सूनेपन का अनुभव हो रहा था !
सभी के मन में एक अनोखी टीस ,एक दिव्य अनुभूतिमय मधुर पीड़ा सी हो रही थी !
चारो ओर एक अजीब सूनेपन का अनुभव हो रहा था !
सभी के मन में एक अनोखी टीस ,एक दिव्य अनुभूतिमय मधुर पीड़ा सी हो रही थी !
१ जुलाई की अपनी मनः स्थिति का विवरण मैं अपने २ जुलाई के ब्लॉग में दे चुका हूँ !
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"पहली जूलाई यहाँ , वहाँ दो जुलाई थी"
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ना कहीं शोर था औ , ना कहीं सियाही थी
फिर भि मनपे मिरे घनघोर घटा छाई थी
कुछ भि बदला न था सब कुछ हि रोज जैसा था .
फिर भि हर चीज़ क्यूँ बदली सि नजर आई थी
भीड़ में जीस्त की मुझ को मिली तन्हाई थी
हर तरफ क्यूँ मिरे मायूसियत सि छाई थी
दर्दे दिल क्यूँ उठा मेरी समझ में ना आया
क्यू उठी आह जहां गूँजती शहनाई थी बस यही याद है मुझको मिरे प्यारे हमदम
फर्स्ट की शाम यहाँ ,वहाँ दो जुलाई थी
[भोला]
यू.एस.ए से
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Neither was there any indication of an approaching cyclone
nor did the horizon turn BLACK
but my loved ones
this HEART of mine, for unknown reasons,got filled with a mysterious PAIN
It was JULY 1, here and JULY 2 in India
] BHOLA in USA ]
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It was JULY 1, here and JULY 2 in India
] BHOLA in USA ]
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प्रियजन ,उस दिन मैं अकारण ही दुखी होकर संत कबीर के,'आवागमन-जीवन मरण' के आध्यात्मिक भजनों का गायन कर रहा था !
[शायद इस विचार से कि अब मेरी भी चलाचली की बेला है और ये - मेरे अपने कहे जाने वाले स्नेही स्वजन अभी से उस दृश्य की कल्पना नहीं करना चाहते ]
पर उस दिन शायद किसी अन्तःप्रेरणा से कृष्णा जी ने भी मुझे रोका टोका नहीं
और मेरे उस विरह भावनामयी गायन का ज्यों का त्यों वीडीयोंकरण भी कर लिया !
"दो जुलाई के ब्लॉग के लिए"
प्रियजन,
नहीं कह सकता , हमने क्यूँ , किस भावावेश में वह शीर्षक उन भजनों को दिया होगा !
क्या यह पूर्वाभास था , चंद घंटों में ,हम पर ,दर्द के सुनामी के टूट पड़ने का ?
राम जाने अथवा हमारे प्यारे गुरुजन ही जाने ]
दो जुलाई की सुबह ड्राफ्ट ब्लोग्गर देखने के बाद जब मेल खोली
तो जैसे एक गाज सी गिर गयी --
विभिन्न श्री राम शरणं से आई मेल देख कर हक्का बक्का रह गया
तदोपरांत क्या क्या हुआ बयान नहीं कर पाऊंगा !
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चलिए आपको एक एक कर के दिखाऊँ ,और सुनाऊँ भी कबीर के वे पद जो मेरे मुख से अनायास ही पहली जुलाई को अश्रु बूंदों की तरह झरे थे
[कृष्णाजी और हमारी बड़ी बेटी श्रीदेवी के सौहाद्रपूर्ण सहयोग के बिना यह संभव न होता ]
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कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो
चन्दन काठ के बनल खटोलना तापर दुल्हिन सूतल हो
उठोरी सखी मोरी मांग संवारो ,दुल्हा मोसे रूसल हो
कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो
यम के दूत पलंग चढ़ी बैठे , अँखियन अँसुआ छूटल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता छूटल हो
कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो
[ संत कबीरदास ]
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आज इतना ही ,धीरे धीरे उस दिन वाले कबीरदास के सभी भजन सुनादूंगा
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और हाँ, पिछले ब्लॉग की स्वामी विवेकानंद जी वाली कथा भी पूरी करूँगा और उसके साथ श्री गुरुदेव विश्वामित्र जी महराज के सम्बन्ध के विषय में भी बताऊंगा !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव
श्रीमती श्री देवी कुमार
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2 टिप्पणियां:
shayad poorvabhas ise hi kahte hain .sarthak post .aabhar
.सार्थक प्रस्तुति सृष्टि में एक नारी,
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