सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः
परम गुरू जय जय राम
महाबीर बिनवौ हनुमाना
श्री राम शरणम , लाजपत नगर , दिल्ली के साधक
व्ही.एन . श्रीवास्तव "भोला"
परम गुरू जय जय राम
महाबीर बिनवौ हनुमाना
श्री राम शरणम , लाजपत नगर , दिल्ली के साधक
व्ही.एन . श्रीवास्तव "भोला"
की आध्यात्मिक अनुभूतियों पर आधारित उनकी आत्मकथा
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"दो" अक्टूबर
समस्त विश्व के लिए एक अविस्मरणीय तारीख -
भारत के राष्ट्र पिता "बापू", स्वख्यातिधनी प्रधानमंत्री "लाल बहादुर शाश्त्री "
एवं हमारे
सद्गुरु श्री प्रेमनाथ जी महाराज का जन्म दिवस -
साथ ही "म.बि.हनुमाना" की दूसरी खेप के प्रथम अंक का प्रकाशन दिवस
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'राम नाम मुद् मंगलकारी ; विघ्न हरे सब पातक हारी'
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एप्रिल २०१० से प्रारंभ करके इस वर्ष अगस्त के अंत तक ,पिछले लगभग ढाई वर्षों में "गुरू आज्ञा" एवं अपने इष्टदेव "सर्वशक्तिमान परमात्मा श्रीराम " की दिव्य प्रेरणा से , स्वयम अनंत विकारों से युक्त तथा सर्वथा अज्ञानी ,एवं वास्तविक आध्यात्म से पूर्णतः अनभिज्ञ होते हुए भी ,,एकमात्र श्री राम कृपा से ,अपने ब्लॉग- "महाबीर बिनवौ हनुमाना" के प्रथम खेप में लगभग ५०० आलेख प्रेषित किये; जिनके द्वारा मैंने निजी अनुभूतियों पर आधारित अपनी आत्म कथा का निवेदन किया ! पर ---- सितम्बर २०१२ के आते ही न जाने क्या हुआ ,कि मैं पूर्णतः मूक हो गया ! कारण ?"दो" अक्टूबर
समस्त विश्व के लिए एक अविस्मरणीय तारीख -
भारत के राष्ट्र पिता "बापू", स्वख्यातिधनी प्रधानमंत्री "लाल बहादुर शाश्त्री "
एवं हमारे
सद्गुरु श्री प्रेमनाथ जी महाराज का जन्म दिवस -
साथ ही "म.बि.हनुमाना" की दूसरी खेप के प्रथम अंक का प्रकाशन दिवस
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'राम नाम मुद् मंगलकारी ; विघ्न हरे सब पातक हारी'
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मेरा मन २ जुलाई २०१२ से ही उचटा उचटा सा था , कारण सर्व विदित है - उस दिन हमारे
प्यारे सद्गुरु
डॉक्टर विश्वामित्र जी महाजन अपना समाधिस्थ मानव शरीर त्याग कर "परम धाम" की ओर अग्रसर हो गये ! सैकड़ों साधकों के सन्मुख , हरिद्वार में मातेश्वरी गंगा की 'नीलधारा' के अति पावन तट पर , उन्ही पवित्र शिला खंडों पर आसीन होकर गुरुदेव ने अपनी इहलीला का समापन किया जिनपर उन्होंने स्वयम तथा उनके अग्रज संत , श्री राम शरणम के प्रात: स्मरणीय परम पूज्यनीय संस्थापक , मेरे सद्गुरु, श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज एवं गुरुवर श्री प्रेमनाथ जी महराज ने पिछले लगभग ८५ वर्षों से अनवरत "नाम साधना" का प्रचार प्रसार किया तथा लाखों 'भ्रम भूल में भटकते', मेरे जैसे अनाड़ियों का मार्ग दर्शन किया और उन्हें वास्तविक "मानव धर्म" से परिचित कराया !
हाँ २ जुलाई २०१२ के बाद कुछ ऐसा हुआ कि मैं सब कुछ भूल गया - लिखना पढ़ना गाना बजाना सब ! प्रकोष्ठ का केसियो सिंथेसाइजर , इलेक्ट्रोनिक तानपूरा , डिजिटल तबला सब के सब , मेरे समान ही निर्जीव पड़े रहे ! ब्लॉग लेखन का क्रम टूट गया !
चिरसंगिनी धर्म पत्नी एवं अपने छोटे से परिवार के अतिशय प्यारे प्यारे , पुत्र-पुत्रवधुओं, पुत्रियों ,पौत्र-पौत्रियों का प्रेम पात्र 'मैं' , सब सुख सुविधाओं से युक्त जीवन वाला' 'मैं' धीरे धीरे सब से विरक्त हो गया ! आजीवन स्वान्तः सूखाय, लिखने पढ़ने ,गाने बजाने वाला मैं पूर्णतः मौन हो गया ! सहसा जैसे सब कुछ थम गया !
आज २ अक्टूबर को ब्रह्मलीन गुरुदेव पूज्यपाद श्री प्रेमजी महाराज की जयंती पर, उनकी प्रेरणा दायक स्मृति ने झकझोर दिया -
१९८१-८२ की घटना है , उनदिनो मैं पंजाब में पोस्टेड था ! सरकारी नौकरी में पूरी तरह व्यस्त रहने के कारण औपचारिक साधना - नाम जाप ध्यान भजन नहीं कर पाता था ! [बहाना है प्रियजन, सच पूछिए तो , करना चाहता तो अवश्य ही कर सकता था ! प्रार्थना है आप मेरा अनुकरण न करें ]
हाँ तो उन दिनों भी मेरी मनःस्थिति लगभग आज जैसी ही थी ! मेरे परम सौभाग्य से पंजाब की पोस्टिंग में मुझे स्वामी जी के एक अति प्रिय पात्र प्रोफेसर अग्निहोत्री जी से भेंट हुई ! स्वामी जी महाराज , गुरुदासपुर में प्रोफेसर साहेब के पिताजी के निवास स्थान में अक्सर आते जाते थे ! गुरुदेव प्रेम नाथ जी महराज भी प्रोफेसर साहेब पर बहुत कृपालु थे उनका बहुत सम्मान करते थे !
पंजाब की दो वर्षों की पोस्टिंग में प्रोफेसर साहेब हमारे बड़े भाई सद्र्श्य हो गये थे ! उनकी प्रेरणा से वर्षों से 'श्री राम शरणं' से भटका मेरा मन पुनः 'गुरू मंत्र' में लग गया ! उनके सत्संग में मुझे भी श्रद्धेय श्री प्रेम नाथ जी महाराज के निकट आने का सौभाग्य मिला और नेरा जीवन धन्य हुआ !
प्रेमजी महाराज की किन कृपाओं की स्मृति ने मुझे आज पुनः उठ बैठने की प्रेरणा दी , ये अगले अंकों में बताऊंगा ! आज इतना ही !
क्रमशः
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
बेहद भावप्रवण
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