स्वस्थ व्यवस्था का मोहताज
हमारा प्यारा देश
"भारत"
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अपने पिछले किसी अंक में मैंने लिखा था कि बचपन - [१९३०-४०] में
घर के संगीत गुरु 'श्री ग्रामाफोन जी महाराज' से ,हमने जो प्रथम गीत सीखा था वह था पंडित नारायणराव व्यास का गाया हुआ स्वदेश प्रेम की भावना से भरपूर गीत :
भारत हमारा देश है ,हित उसका निश्चय चाहेंगे
[और]
उसके हित के कारण हम कुछ न् कुछ कर जायेंगे
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आज प्रातः ही भारत से एक पत्र मिला जिसमे ,अपने देश की
वर्तमान दुर्दशा का सजीव चित्रण था !
अंग्रेजी भाषा में लिखित पत्र का शीर्षक था "अजब देश की गजब कहानी "
उससे प्रेरित हो ,आपके इस दुखी हृदय मित्र के अवरुद्ध कंठ से
निम्नांकित शब्द फूट पड़े :
हमारा देश - भारत
हम उस देश के बासी हैं - जिस देश में गंगा बहती है
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आधी से अधिक जहां की जनता झोपडियों में रहती है
या शहरों के फुटपाथों पर बारिश औ सर्दी सहती है
चावल चालीस का एक किलो - "सिम कार्ड" मुफ्त में मिलता है
नीबू" औषधि को दुर्लभ है ,"वाशिंग मशीन्" में पड़ता है
नौ सौ ग्यारह की घंटी बजती है बजती रहती है
औ पुलिस यहां घटनास्थल पर घंटे भर बाद पहुंचती है
इस बीच नगर बस सेवा की बस चौराहे पर जलती है
फायर ब्रिगेड की खाली टंकी पानी हेतु तरसती है
"पिज्जा" जल्दी आजाता है "एम्ब्युलेंस" पहुंच ना पाती है
होस्पिटल" पहंचने से पहिले रोगी की गति हो जाती है
जिए मरे कोई इसका गम नहीं किसी को होता है
फिक्र किसे है क्यू कोई भी फुटपाथों पर सोता है
देर रात तक डिस्को-क्लब में मदिरा चलती रहती है
सुबह सबेरे फुट पाथों पर तेज 'फरारी' चढ़ती है
दब कर मरते सोने वाले ,बच्चे अनाथ हो जाते हैं
नेताओं के संरक्षण में दोषी फरार हो जाते हैं"
"भोला"
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प्रियजन
फिर भी इस निर्धन-पिछडों के देश में
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जूते "ए. सी " में बिकते हैं , सब्जी हाटो में सडती है
भारत के चोरों की सम्पति स्विस की धरती में गड़ती है
अति आसानी से 'कारलोन' सस्ते दर पर मिल जाता है ,
बारह प्रतिशत पर 'स्ट्डी लोन' अति भाग दौड से आता है
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प्रियजन !
हम तों बेबस हैं , देश से हजारों मील दूर ,
वयस और स्वास्थ्य जनित कठिनाइयों के कारण
कुछ भी करने का सामर्थ्य नहीं रखते ! परन्तु आप तों सक्षम हैं !
प्लीज़ कुछ करिये !
और कुछ नहीं तों कमसे कम् चुनावों में अपना बहुमूल्य वोट तों डालिए ही !
अच्छे ,ईमानदार, व्यक्तिओं को चुनिए !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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