सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

शनिवार, 24 मार्च 2012

मनुष्य है क्या ?

मैं हूँ क्या ?
(गतांक से आगे) 

मैं बानर, "श्रीराम" मदारी ! कठपुतला 'मैं',"ईश" खिलारी !!

  जैसे 'वह'राखे , रह जावें  ,पहिरें जो भी 'वह'पहिरावे 
  बैठें जहवाँ 'ऊ' बैठावे  , जीमें  जो जो 'राम' जिमावे  
  
लिखें वही जो "वह" लिखवावे गावें जो "वह" सुनना चाहे  
    मोल लिया यह दास "राम" का अन्य हाथ कैसे बिक पावे   


प्रियवर , सच पूछो तो,
 -
मधुबन में बंसरी बजाकर नचा रहा सबको बनवारी   
मैं बानर, "श्रीराम" मदारी ! कठपुतला मैं ,"ईश"खिलारी !!
[ भोला ]
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प्रियजन , जीवन के विगत ८२ वर्षों में भी मैं यह समझ न पाया कि वास्तव में मैं हूँ क्या ? कठपुतला हूँ या  बानर हूँ ?  एक तुकबन्दक कवि हूँ या सुनी सुनाई सुनाने वाला, अनाड़ी कोई कथा-वाचक ! आपजी के जी में जो आये ,आप दे दीजिए वही उपाधि मुझे ! बुरा नहीं मानूंगा ! मैं जो हूँ , जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा !

कहते हैं कि वास्तविक भक्तों का स्वरूप अक्सर उनके इष्ट देव सा हो जाता है ! एक संत से सुना कि ,"भगवान राम" के भक्तों का रूप और चिंतन "रामजी" जैसा , कृष्णजी के भक्तों का '"श्री कृष्णजी" जैसा और हनुमानजी के भक्तों का स्वरूप भी बहुधा "पवनसुत हनुमान" जी के जैसा हो जाता है !

बचपन में और विद्याध्ययन के शुरूआती वर्षों तक ,पारिवारिक संस्कारों के प्रभाव में सबके साथ नगर के हर  हिंदू मदिर में जाना , उसमे स्थापित देवता की मूर्ति के सन्मुख प्रणाम करना ,आरती में सब के साथ तालियाँ बजाना ,आरती कर शब्द याद न हो तों भी होठ हिलाकर यह जतलाना कि आरती गा रहा हूँ वाला नाटक बखूबी करता रहता था  ! लेकिन  उन मदिरों के गर्भ ग्रह में अधिष्ठित श्रीराम ,श्रीकृष्ण भगवन की सुंदर प्रतिमाओं के प्रति मेरे मन में कोई वास्तविक श्रद्धा-भक्ति नहीं थी !  मैं "वास्तविक भक्त" न था , जो था वह केवल दिखावटी था ! अस्तु इस प्रकार मेरा स्वरूप और चिंतन - न राम जैसा न श्याम जैसा और न किसी अन्य देवता के समान बन पाया !

तों फिर मैं बना क्या ? 
[ अगले अंक में ]
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव " भोला"
सहयोग : श्रीमती. कृष्णा भोला श्रीवास्तव