सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

रविवार, 28 अक्तूबर 2012


सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की कृपा के 
अनुभव 

इस जीवन के एक एक पल में मैंने अपने प्यारे सद्गुरु की अपार कृपा का अनुभव किया है ! मुझे ऐसा लगता है जैसे इस जीवन में किया हुआ मेरा कोई भी कृत्य स्वामी जी की कृपाजन्य शुभ प्रेरणाओं के बिना मुझसे हो ही नहीं सकता था ! उनकी कृपा के बिना मैं, जीवन भर आधा अधूरा क्या , मात्र एक बड़ा शून्य ही बना रह जाता ! स्वामीजी की कृपा जन्य उपकारों की गणना करना असम्भव है !  मेरा मन कहता है 



हे स्वामी

तेरे गुण उपकार का पा सकूं नहि    पार 
रोम रोम कृतग्य हो  करे सुधन्य  पुकार

[स्वामी सत्यानन्द जी की "भक्ति प्रकाश'" से ]  

प्रियजन , इससे पूर्व मैंने अनेकों बार जोर दे कर कहा है कि मेरे आध्यात्मिक दीक्षा-गुरू ,श्रद्धेय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ,प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में मेरी सारी सांसारिक उपलब्धियों ,तथा जीवनयापन हेतु किये मेरे सभी कर्मों ,की सफलता के साथ साथ मेरी समग्र आध्यात्मिक प्रगति के मूल कारण और मेरे बल-बुद्धि के एकमात्र स्रोत थे !  [प्रियजन स्वामी जी महाराज को "थे " कहना सर्वथा अनुचित है , भूल से लिख गया]




स्वामी जी  आज भी हमारे अंग संग हैं ! वह , हमारी मनोभावनाओं में, हमारे चिंतन और विचारों में इस क्षण भी उतने ही जीवंत और क्रियाशील हैं जितने वे आज से , ५६ वर्ष पूर्व मेरे दीक्षांत की घड़ी में थे ! 

मेरे दीक्षा के समय की विशेष स्थिति 


नवम्बर १९५९ में मुरार -ग्वालियर के सौदागर संतर  में डॉक्टर देवेन्द्र सिंह जी बेरी   के    निवास -स्थान पर ,उनकी पूजा की १० बाई १० की कोठरी में ,एक दूसरे से केवल हाथ भर की दूरी पर बिलकुल एकाकी ,मेरे सामने बैठे थे, नवोदित सूर्य की स्वर्णिम किरणों के समान जगमगाते परम आकर्षक व्यक्तित्व वाले मेरे सद्गुरु प्रातः स्मरणीय परम श्रद्धेय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ! 

जरा सोचें , इससे अधिक एकाकी सामीप्य ,उस देवतुल्य महापुरुष का कब और किसे मिला होगा ?

एक कन्फेशन करूं ,प्रियजन स्वामीजी के तेजोमय  मुखमंडल पर मेरी आँखें कुछ एक पल से अधिक ठहर ही न सकीं ! महाराज जी के चहुँ ओर फैली ज्योतिर्मयी आभा और उनके तेजस्वी स्वरूप की चकाचौंध में मैं अपनी सुध बुध खो बैठा ! उसके बाद मुझे ,न तो समय का भान रहा न वस्तुस्थिति का ज्ञान ! 

मैं मंत्र मुग्ध सा  बैठा हुआ वह सब करता रहा जिसका आदेश स्वामी जी ने वहाँ , मुझे दिया ! आदेश पालन में मुझसे अवश्य ही कोई बड़ी भूल नहीं [ जी हाँ नहीं ] हुई होगी, तभी तो दीक्षा के उपरांत सही सलामत बच गया ! 

दीक्षा के समय की मेरी मनः स्थिति व्यक्त हैं संत ब्रह्मानंद जी के इन शब्दों में  --


किस देवता ने आज मेरा दिल चुरा लिया 
दुनिया कि खबर ना रही तन को भुला दिया 

सूरज न था न चाँद था बिजली न थी वहाँ ,
इकदम ही अजब शान का जलवा दिखा दिया 

स्वामी जी जैसे सिद्ध महापुरुष से ,"राम नाम" का  मंगलकारी गुरू मंत्र पाना स्वयमेव एक अनमोल उपलब्धि है !  मेरे विचार में मेरी  दीक्षा के समय की उपर वर्णित विशेष स्थिति , श्री राम शरणम के आम दीक्षा समारोहों से निश्चय ही बहुत भिन्न थी ! 


जो भी हो प्रियजन ,मुझे आज इस पल भी  उस दिव्य घड़ी के स्मरण मात्र से सिहरन हो रही है - वह शुभ घड़ी जब मेरे जैसे कुपात्र की खाली झोली में , स्वामी जी महाराज ने अपनी वर्षों की तपश्चर्या दारा अर्जित " राम नाम " की बहुमूल्य निधि डाल दी थी !


नहीं जानता कि अन्य कितने ऐसे भाग्यशाली साधक हैं जिनको स्वामी जी महाराज ने वैसे ही  एकांत में दीक्षा दी , जैसे उन्होंने मुझे दी थी ! काश मैं ऐसे अन्य साधकों से मिल सकता ! लेकिन दुःख तो ये है कि मेरे लिए अब भारत जाने की सम्भावनायें बहुत कम हैं और मुझे लगता है कि जो वैसे साधक अभी  हैं उनकी दशा भी मेरी जैसी है : सब के सब ही मेरी तरह------- कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं 

बहुत हैं जा चुके ,   बाकी जो हैं तैयार बैठे हैं 
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं 

  न छेड़ अय निगहते बादे बहारी राह लग अपनी 
तुझे   अठखेलियाँ   सूझीं हैं    हम  बेज़ार बैठे हैं 
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं 

श्रीराम शरणं के संस्थापक  स्वामी जी महाराज मुझे दीक्षित करने के एक वर्ष बाद ही यह संसार छोड़ गये ! प्रियजन , मैं दुर्भाग्य नहीं कहूँगा उनके बिछोह को !  आप पूछेंगे क्यूँ ? मेरी अपनी क्या दशा हुई -भाई ! एक भेद की बात बताऊँ , उनकी ही कृपा से तब से आज तक के अपने जीवन  के लगभग ५५   वर्षों में  मैं पल भर को भी निगुरा नहीं रहा ! बाबा के उत्तराधिकारी  श्री प्रेम जी महाराज  और उनके बाद परम श्रद्धेय डॉक्टर विश्वमित्तर जी महाराज का आश्रय और स्नेहिल आशीर्वाद मुझे मिला और  उन्होंने हर प्रकार से मुझे सम्हाला !

क्रमशः 
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निवेदक : व्ही.  एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग:  श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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