गुरुवार, 24 जनवरी 2013

स्वामी विवेकानंद -गतांक से आगे - २४/१/'१३


स्वामी विवेकानंद जी का
सत्य सनातन - "मानव धर्म"
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मनुष्य द्वारा दृढ़ विश्वास से किये गये वे दृढ़ निश्चय ,उसके वे व्रत ,उसके वैसे सुकर्म जिन्हें कार्यान्वित करने से [ धारण करने से ] उसके आत्मा का ,उसके मन का ,उसके तन का,उसके परिवार का , समाज का और जाति तथा उसके देश तक का रक्षण और पालन हो सके वे सब "धर्म" कहे गये हैं !

मनुष्य द्वारा धारण किया हुआ जो धर्म मनुष्य को पाप से, पतन से बचाए, उसके जीवन को उन्नत करके उसमे ,धीरज , साहस, उत्साह उत्पन्न करे , उसको परिश्रमी , पुरुषार्थी बनाये और उसके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को सुंदर, सुदृढ़ और सुमधुर बना सके वही "सत्य सनातन" - "मानव धर्म" है !

परन्तु विगत शताब्दियों से --     

विश्व के लगभग सभी सम्प्रदायों -पंथों के अधिकाँश धर्मानुयायी अज्ञानतावश, उनके धार्मिक सम्प्रदायों में प्रचलित 'कर्मकांडों' को ही "धर्म" की संज्ञा देने लगे हैं जब कि  वास्तव में ये सभी धार्मिक कर्मकांड उनके सांप्रदायिक अनुयायीयों को "इष्ट" तक पहुँचाने के विभिन्न मार्ग हैं ! ये उन्हें उनके इष्ट से मिलाने के साधन मात्र हैं !  

प्रियजन ,औरों की छोड़िये,विश्व की सबसे पुरातन मानवीय संस्कृति की संतति "हम" सब भारतीय भी आज सर्वाधिक ग्रसित हैं इस भ्रामक  मानसिकता से ! कितने  दुःख की बात है कि हजारों वर्ष पहले ,मानवता को "तमसो मा ज्योतिर्गमय"का उपदेश देने वाले "हम"आज भी अज्ञानता के इस अंधकूप में पड़े अपनी जगहंसाई करवा रहें हैं ! 


धर्म विषयक अब हमारी आत्म कथा सुन लीजिए !  

बचपन में ,रर्विवार अथवा पूर्णमासी को घर पर ही आयोजित श्री सत्यनारायण भगवान की कथा में बैठना और समाप्ति तक बिना प्रसाद ग्रहण किये न उठना हमारा धर्म था


इच्छा वा अनिच्छा से ,अपना बाँयाँ हाथ सिर पर रख कर, कथावाचक पंडित जी से, माथे पर रोली चन्दन का टीका लगवाना और दाहिने हाथ की कलाई में रक्षा सूत्र बंधवाना हमारा धर्म था

कथा में शतानंद ब्राह्मण और साधू बनिये,उनकी धर्मपत्नी लीलावती तथा चन्द्र कला  के समान आकर्षक रूपवती उनकी पुत्री  कलावती के जीवन के उतार चढाव के दुखद-सुखद प्रसंगों को शांति पूर्वक सुनते रहना और प्रत्येक अध्याय  की समाप्ति पर घंटा शंख बजाना और जोर जोर से "सत्यनारायण भगवान" की जय बोलना हमारा धर्म था   
और कथा की समाप्ति पर ,कुल्हड भर कर सरस पंचामृत पीना और जी भर कर गर्म गर्म देशी घी से बने "हलुए" का प्रसाद पाने के साथ ही हमारे उस बालपन के "धर्म" की सीमा समाप्त हो जाती थी !

ऐसा होता था कि ------ 

सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने के तुरंत बाद ही  परिवार के सदस्य  तथा आगंतुक सभी इष्ट मित्रगण , अपने अपने मनोरंजक कार्यक्रमों में व्यस्त हो जाते थे ! पिताजी के साथ ताश खेलने बैठे उनके मित्र -[चाचा जी] के घर से फोन आने पर उनकी हिदायत के अनुसार चाची जी [उनकी पत्नी]  से हमे यह असत्य बोलना पड़ता था कि "चाचाजी तो यहाँ आये ही नहीं",यह छोटा सा असत्य बोलना , क्या था ?  धर्म  ?


कथा का धार्मिक - उपदेश  कि "सत्य ही वास्तविक मानव धर्म है" किसी को याद नहीं रहता ! पंचामृत तथा हलुए की मिठास में कथा का अमूल्य उद्देश्य न जाने कहाँ खो  जाता  था और 'सत्यम वद' के स्थान पर 'असत्यम वद' ही वहाँ उपस्थित उन सभी कथा श्रोताओं का तत्कालिक धर्म बन जाता जिन्होंने थोड़ी देर पहले जोर जोर से कई बार "बोलिए सत्य नारायण भगवान की जय" का नारा लगाया था !

कर्मकांडी प्रियजनों से मेरा अनुरोध है कि मेरे इस कथन से विचलित न हों , निराश न हों ,,निरुत्साहित न हों ! वास्तव में सब सम्प्रदायो के सभी कर्मकांड सार्थक हैं,कोई भी कर्मकांड त्याज्य नहीं है ! ये सभी कर्मकांड , विभिन्न धर्मों के नैसर्गिक नियमों को जनसाधारण तक सरलता से पहुचाने के सार्थक और उपयोगी साधन हैं !


परमहंस ठाकुर रामकृष्णदेव जी  तथा उनके शिष्य स्वामी विवेकानंदजी ने अपनी अपनी अनुभूतियों द्वारा,धार्मिक कर्मकांडों की सार्थकता  सिद्ध करदी ! ठाकुर ने तो न  केवल हिंदुत्व के ही वरन विश्व के कई अन्य विशिष्ट संप्रदायों में प्रचिलत उनके कर्मकांडों को स्वयम करके ,उनका अनुसंधान किया ,पूरी सच्चाई के साथ ,उनका अनुकरण किया और उनकी सार्थकता के आकलन के द्वारा यह सिद्ध कर दिया  कि मानव  की आत्मोन्नति के लिए किये गये सभी क्रिया कर्म सार्थक हैं ,उपयोगी हैं !आवश्यकता है कि हम उन कर्म काडों में निहित धर्म की वास्तविकता को समझें और उन्हें अपने जीवन में उतारे ! जैसे सत्यनारायण भगवान की कथा से सत्य की महानता को समझें और जीवन में अपना धर्म समझ कर केवल सत्य बोलने का निर्णय लें ! 

धर्म 

स्वामी विवेकानंद ने गहन अध्ययन एवं गुरु कृपाजनित अनुभूतियों से यथार्थ धर्म को जाना और इस ज्ञान को शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में  विभिन्न धर्म गुरुओं के समक्ष प्रस्तुत किया ! 


उन्होंने विश्व को बताया कि समग्र मानवता के लिए वास्तविक "धर्म" एक और केवल "एक" ही है ! किसी एक मत ,किसी एक सम्प्रदाय, किसी एक समुदाय ,जाति देश या काल की संकीर्णता में उसे बांधा नहीं जा सकता ! सारी सृष्टि उस एक धर्म में ही समाहित है !  संमदर्शन , सद्भाव ,सद्व्यवहार , सात्विक कर्म के स्वरूप में धर्म प्रत्यक्ष होता है ,धर्म सधता है !  उन्होंने स्पष्ट किया कि :


वास्तविक मानव धर्म ,समस्त मानवता के लिए विधि द्वारा निर्धारित सत्य,प्रेम और करुणाजनित "सेवा" से युक्त जीवन शैली है ! 


धर्म सत्य है !  धर्म अहिंसा है ! धर्म प्रेम है और प्रेम से उत्पन्न करुणा है ! धर्म परोपकार है ,परसेवा की भावना है ! धर्म  सनातन कानून है, धर्म वह नैसर्गिक नियम है  जिंससे सृष्टि का सम्वर्धन और संरक्षण होता है ,जिससे मानवता का अभ्युदय होता है ! धर्म विश्व का विधान है


धर्म असीम है ! धर्म सार्वजनीन है ! धर्म सर्वकालिक है ! धर्म  सनातन  है ! सृष्टि  की उत्पत्ति से प्रलय तक मानव धर्म एक  है और वह वैसा ही बना रहेगा !  इन नैसर्गिक नियमों को दृढ़ता से धारण करो उनका पालन करो ! यही मानव धर्म है !


क्रमशः 


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विदेशों में रहने वाले  भारतीयों के लिए मैं उपरोक्त हिन्दी आलेख का अंग्रेजी भाषा में एक "ब्रीफ" नीचे दे रहा हूँ ! आशा है उसे पढ़ कर हिंदू धर्म के विषय में उनके मन में उठे सभी प्रश्नों का उत्तर उसमे मिल जाएंगें ,उनका भ्रम दूर हो जाएगा ,उनकी  जिज्ञासा  मिट जायेगी !, 

ONE RELIGION 
for the entire humanity:


UNIVERSAL RELIGION - "DHARAM" ( धर्म )

as specified in the INDIAN SCRIPTURES ( वेदान्त )
[ dating back to the Vedantic Age - 6 to 7,000 years ago ]
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Brahma, Vishnu , Mahesh, Ram , Krishna, Buddha, Mahavir 

Allah, Khuda , Ahur Mazda, Lord Jesus , Lord Zoroaster ,
Lord Confucius  and  Jehovah etc etc.
All these are essentially ONE and the same :

एकम सत्  विप्र बहुधा  वदन्ति 

"Truth is ONE , sages call it by different names"

 RELIGION:

Religion is the bond between God and the humans
Religion is the Pathway to Peace and Brotherhood 
Religion shows us the way to GOD REALISATION  
Religion transforms Human Character
Without Religion there will be no Morality 
  Without Religion Human Life is a dreary waste 
Religion imparts Spirituality
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ONE  RELIGION 

There is only one religion : The religion of LOVE
There is only one religion   :The religion of HEART
There is only one religion  : The religion of SCRIPTURES 
[ the oldest of them are the Bhartiya Vedaant I 
There is only one religion : The  religion of UNITY
[ THE RELIGION OF ONE NESS ]


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निवेदक: व्ही.  एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती  कृष्णा  भोला  श्रीवास्तव 
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1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!