ओम नमः शिवाय
महापुरुषों का कथन है कि जीवों के परमाधार 'परमेश्वर' के कृपास्वरुप का नाम "श्री राम "है
उनके प्रेमस्वरुका नाम "श्री कृष्ण" हैं ,
उनके"वात्सल्य स्वरुप" का नाम "आदि शक्ति माँ जगदम्बा" हैं
तथा 'वैराग्य स्वरुप'का नाम भगवान शिव है !
परम पिता परमेश्वर के गुण , स्वभाव और क्रिया -कलाप के कारण ही उनके वैराग्य स्वरूप को श्रद्धालु भक्तजन शिव ,शंकर ,भोला ,महादेव ,नीलकंठ , ,नटराज,त्रिपुरारी , अर्धनारीश्वर ,विश्वनाथ आदि अनेकानेक नामों से उनका नमन -वन्दन करते है !"
शिव" का शब्दार्थ है " कल्याण"! महामहिमामय देवोंके देव महादेव का स्वरूप तेजोमय और कल्याणकारी है !
अपने इष्ट श्री राम के अमृत तुल्य मधुर नाम का सतत जाप करने वाले भोलेभाले देवता 'शिव-शंकर' ने क्षीरसागर के मंथन से प्राप्त भयंकर विष, का सहर्ष पान किया था !
उसे अपने कंठ से नीचे नहीं उतरनेदिया क्योंकि "कालकूट" यदिशंकरके उदर तक पहुंच जाता तों समस्त सृष्टि का ही विनाश हो जाता , न सुर बचते न असुर ! और यदि शिव विषपान न करते तों बल मिल जाता असुरों के अहंकार को !फिर देवताओं तथा मानवता का विपत्ति निवारण असंभव हो जाता !
इसी कारण कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले ,करुणा के साक्षात् अवतार, असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले,भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं हम उन देवाधिदेव की वंदना करते है .,विशेषकर सावन मास में!
सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि
तुलसीदास की अनुभूति में 'शिव" ऐसे देव हैं जो अमंगल वेशधारी होते हुए मंगल की राशि है ;महाकाल के भी काल होते हुए करुणासागर हैं !,
प्रभु समरथ सर्वग्य सिव सकल कला गुन धाम
जोग ज्ञान वैराग्य निधि प्रनत कल्पतरु नाम !!
आइये आज सोमवार को हम सब समवेत स्वरों में पूरी श्रद्धा एवं निष्ठां से ,गुरुजनों के भी सद्गुरु ,सर्व गुण सम्पन्न सर्वशास्त्रों के ज्ञाता ,सर्व कला पारंगत राम भक्त , देवाधिदेव , देवताओं समेत समस्त सृष्टि के पालन हारसब को निःसंकोच वर देने वाले , भोले नाथ शिव शंकर की वन्दना करें !
उनके प्रेमस्वरुका नाम "श्री कृष्ण" हैं ,
उनके"वात्सल्य स्वरुप" का नाम "आदि शक्ति माँ जगदम्बा" हैं
तथा 'वैराग्य स्वरुप'का नाम भगवान शिव है !
परम पिता परमेश्वर के गुण , स्वभाव और क्रिया -कलाप के कारण ही उनके वैराग्य स्वरूप को श्रद्धालु भक्तजन शिव ,शंकर ,भोला ,महादेव ,नीलकंठ , ,नटराज,त्रिपुरारी , अर्धनारीश्वर ,विश्वनाथ आदि अनेकानेक नामों से उनका नमन -वन्दन करते है !"
शिव" का शब्दार्थ है " कल्याण"! महामहिमामय देवोंके देव महादेव का स्वरूप तेजोमय और कल्याणकारी है !
उसे अपने कंठ से नीचे नहीं उतरनेदिया क्योंकि "कालकूट" यदिशंकरके उदर तक पहुंच जाता तों समस्त सृष्टि का ही विनाश हो जाता , न सुर बचते न असुर ! और यदि शिव विषपान न करते तों बल मिल जाता असुरों के अहंकार को !फिर देवताओं तथा मानवता का विपत्ति निवारण असंभव हो जाता !
कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम
सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि
तुलसीदास की अनुभूति में 'शिव" ऐसे देव हैं जो अमंगल वेशधारी होते हुए मंगल की राशि है ;महाकाल के भी काल होते हुए करुणासागर हैं !,
प्रभु समरथ सर्वग्य सिव सकल कला गुन धाम
जोग ज्ञान वैराग्य निधि प्रनत कल्पतरु नाम !!
( शिव समर्थ,सर्वग्य,और कल्याणस्वरूप ,सर्व कलाओं और सर्व गुणों केआगार हैं ,योग ,ज्ञान तथा वैराग्य के भंडार हैं ,करुणानिधि हैं कल्पतरु की भांति शरणागतों कों वरदान देने वाले औघड़दानी हैं )
https://youtu.be/meclUBvlyTc
(यूट्यूब पर देखने के लिए लिंक )
जय शिवशंकर औगढ़ दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी !
सकल श्रृष्टि के सिरजनहारे , रक्षक पालक अघ संघारी !!
हिमआसन त्रिपुरारी बिराजें , बाम अंग गिरिजा महारानी !!
औरन को निज धाम देत हो हम ते करते आनाकानी !!
सब दुखियन पर कृपा करत हो , हमरी सुधि काहे बिसरानी !!
"भोला"
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
शोध एवं संकलन सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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