योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की अमर वाणी ......
श्रीमदभगवत गीता ( श्री गीताजी )
के पाठ से क्या सीखा ?
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मानवता,हर काल में , महाभारत काल के अर्जुन के समान विभिन्न विषम परिस्थितियों से जूझती है ! आज भी सामान्य मानव के मन में धर्म-अधर्म ,सत्य-असत्य तथा ज्ञान-अज्ञान के बीच महायुद्ध चल रहा है !,
सत्य तो यह है कि आज भी भारत का "धर्म क्षेत्र" ,"कुरु क्षेत्र" ही बना हुआ है ! नीति न्याय हींन दुर्बुद्धि मानव दुर्योधन के समान प्रत्येक न्यायसंगत कार्य के मार्ग में रोडे अटकाता हुआ सर्वत्र व्याप्त है और उसका मुकाबिला करने वाला सक्षम पराक्रमी न्यायशील मानव महाबाहु अर्जुन के समान सांसारिक मोह माया की जाल में फसा हुआ , मानव मूल्यों को भूल कर अज्ञानता का शिकार बन कर कायरता के वशीभूत हो कर अपना गांडीव धरती पर डालने को मजबूर हो रहा है !
ज्ञानियों,मनीषियों तथा महात्माओं का कथन है कि अर्जुन की सी कायरता व निष्क्रियता के भाव से बचने के ध्येय से ,आज की मानवता के लिए भी,योगेश्वर श्रीकृष्ण की गीता के कल्याणकारी मूल्यों को अपनाना अपेक्षित है !
याद रखें कि ,गीता भगवान कृष्ण की वंशी से निकला वह गीत है जो कायर से कायर मानव के सुप्त पौरुष को जगा कर, उसमें उत्साह आनंद और कर्म करने की प्रेरणा जगाता है और उसे धर्मयुद्ध करने को प्रेरित करता है
सद्गुरुजन का सुझाव है कि हमे भी अपने शौर्य, अपने पौरुष ,अपनी बुद्धिमत्ता ,अपनी व्यवहार -कुशलता का अहंकार त्याग कर पूर्णतः समर्पित भाव से योगेश्वर की मुरली के शब्द अपने मानसपटल पर अंकित करें और उसमे उल्लेखित मार्गदर्शन के आधार पर अपने आचार -विचार व व्यवहार में उन जीवन -मूल्यों को उतारें !
मूल सन्देश यह है कि सर्वप्रथम हम , यह स्वीकारें कि सांसारिक परिस्थितियों से घबरा कर हम भी अर्जुन के सामान कायर हो गये हैं ! इस निष्क्रियता से मुक्त होने के लिए हमे पूर्णतः शरणागत हो कर प्यारे प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारा उचित मार्ग दर्शन करें ! अर्जुन ने अपनी प्रार्थना में कहा था
श्रीमद गीता के प्रारम्भ में निज दुर्गुणों को स्वीकारते हुए अर्जुन ने श्री कृष्ण के शरणागत हो कर धर्मसंगत न्यायोचित कर्म पथ पर चलने का मार्ग प्रदर्शित करने की विनती की !,वास्तव में आज हमें भी यही करना है! कायरता ,अकर्मण्यता एवं निष्क्रियता को त्याग कर कर्मठ हो कर सही राह पर प्रगतिशील रहने के लिए योगेश्वर से विनती करनी है कि वह कृपा करें और हमारे सभी अवगुण हर लें !
उपरोक्त भावनाओं को संजोये है निवेदक की स्वरचित प्रार्थना -----
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श्रीमदभगवत गीता ( श्री गीताजी )
के पाठ से क्या सीखा ?
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मानवता,हर काल में , महाभारत काल के अर्जुन के समान विभिन्न विषम परिस्थितियों से जूझती है ! आज भी सामान्य मानव के मन में धर्म-अधर्म ,सत्य-असत्य तथा ज्ञान-अज्ञान के बीच महायुद्ध चल रहा है !,
सत्य तो यह है कि आज भी भारत का "धर्म क्षेत्र" ,"कुरु क्षेत्र" ही बना हुआ है ! नीति न्याय हींन दुर्बुद्धि मानव दुर्योधन के समान प्रत्येक न्यायसंगत कार्य के मार्ग में रोडे अटकाता हुआ सर्वत्र व्याप्त है और उसका मुकाबिला करने वाला सक्षम पराक्रमी न्यायशील मानव महाबाहु अर्जुन के समान सांसारिक मोह माया की जाल में फसा हुआ , मानव मूल्यों को भूल कर अज्ञानता का शिकार बन कर कायरता के वशीभूत हो कर अपना गांडीव धरती पर डालने को मजबूर हो रहा है !
ज्ञानियों,मनीषियों तथा महात्माओं का कथन है कि अर्जुन की सी कायरता व निष्क्रियता के भाव से बचने के ध्येय से ,आज की मानवता के लिए भी,योगेश्वर श्रीकृष्ण की गीता के कल्याणकारी मूल्यों को अपनाना अपेक्षित है !
याद रखें कि ,गीता भगवान कृष्ण की वंशी से निकला वह गीत है जो कायर से कायर मानव के सुप्त पौरुष को जगा कर, उसमें उत्साह आनंद और कर्म करने की प्रेरणा जगाता है और उसे धर्मयुद्ध करने को प्रेरित करता है
सद्गुरुजन का सुझाव है कि हमे भी अपने शौर्य, अपने पौरुष ,अपनी बुद्धिमत्ता ,अपनी व्यवहार -कुशलता का अहंकार त्याग कर पूर्णतः समर्पित भाव से योगेश्वर की मुरली के शब्द अपने मानसपटल पर अंकित करें और उसमे उल्लेखित मार्गदर्शन के आधार पर अपने आचार -विचार व व्यवहार में उन जीवन -मूल्यों को उतारें !
मूल सन्देश यह है कि सर्वप्रथम हम , यह स्वीकारें कि सांसारिक परिस्थितियों से घबरा कर हम भी अर्जुन के सामान कायर हो गये हैं ! इस निष्क्रियता से मुक्त होने के लिए हमे पूर्णतः शरणागत हो कर प्यारे प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारा उचित मार्ग दर्शन करें ! अर्जुन ने अपनी प्रार्थना में कहा था
कायर बना मैं आज करके नष्ट सत्य स्वभाव को ,
भ्रमित मति ने है भुलाया धार्मिक शुभभाव को !!
भ्रमित मति ने है भुलाया धार्मिक शुभभाव को !!
मैं शिष्य शरणागत हुआ अब मार्गदर्शन कीजिए,
हें नाथ बतलायें मुझे, जो उचित करने के लिए !!
हें नाथ बतलायें मुझे, जो उचित करने के लिए !!
[ श्रीगीताजी - अध्याय २ ,श्लोक ७ ]
( यहाँ धार्मिक भाव से तात्पर्य लोक कल्याणकारी कर्मों से है )
( यहाँ धार्मिक भाव से तात्पर्य लोक कल्याणकारी कर्मों से है )
श्रीमद गीता के प्रारम्भ में निज दुर्गुणों को स्वीकारते हुए अर्जुन ने श्री कृष्ण के शरणागत हो कर धर्मसंगत न्यायोचित कर्म पथ पर चलने का मार्ग प्रदर्शित करने की विनती की !,वास्तव में आज हमें भी यही करना है! कायरता ,अकर्मण्यता एवं निष्क्रियता को त्याग कर कर्मठ हो कर सही राह पर प्रगतिशील रहने के लिए योगेश्वर से विनती करनी है कि वह कृपा करें और हमारे सभी अवगुण हर लें !
उपरोक्त भावनाओं को संजोये है निवेदक की स्वरचित प्रार्थना -----
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अपराधी अवगुण भरा पापीऔर सकाम
क्षमा करो अवगुण हरो प्यारे प्रभु श्री राम !!
क्षमा करो अवगुण हरो प्यारे प्रभु श्री राम !!
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे , चरण पड़े हम बालक तेरे
प्रभु हर लो -------
प्रभु हर लो -------
व्यर्थ गंवाया जीवन सारा पड़ा रहा दुर्मति के फेरे,
चिंता क्रोध लोभ ईर्ष्या वश अनुचि त काम किये बहुतेरे !!
प्रभु हर लो ------
प्रभु हर लो ------
भीख माँगता दर दर भटका ,झोली लेकर डेरे डेरे !
तेरा द्वार खुला था पर मैं पंहुचा नही द्वार तक तेरे !!
प्रभु हर लो ------
प्रभु हर लो ------
( ई मेल से ब्लॉग पढ़ने वालों के लिए यू ट्यूब का लिंक :
https://youtu.be/d9NaUblXy0I
https://youtu.be/d9NaUblXy0I
ठगता रहा जनम भर सबको रचता रहा कुचक्र घनेरे !
नेक चाल नही चला, सदा ही रहा कुमति माया के नेरे !!
प्रभु हर लो -----
प्रभु हर लो -----
मैं अपराधी जनम जनम से झेल रहा हूँ घने अँधेरे !
तमसो मा ज्योतिर्गमय कर अन्धकार हरलो प्रभु मेरे !!
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे
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निवेदक : व्ही, एन, श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
प्रणाम आप दोनों को !
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