कैसे जियें - हम रिटायर्ड लोग ?
संत महात्माओं का कथन है:
"सेवा करो"
"सेवारत" रहकर अपना लोक-परलोक दोनों संवार लो !"
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संत महात्माओं का कथन है:
"सेवा करो"
"सेवारत" रहकर अपना लोक-परलोक दोनों संवार लो !"
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सेवानिवृत होकर अब पुनः सेवा करें ? किसकी ? कैसे ?
सद्गुरु स्वामी सत्यानन्दजी महाराज ने सेवाधर्म को सर्वोच्च धर्म बताया
सद्गुरु स्वामी सत्यानन्दजी महाराज ने सेवाधर्म को सर्वोच्च धर्म बताया
स्वामी जी ने अपने सदग्रंथ "भक्ति प्रकाश" के "सेवा" प्रकरण में कहा :
सेवा धर्म सुधर्म है, है यह उत्तम काम
अर्पण कर भगवान को कर सेवा निष्काम !!
अहम भावना त्याग कर और छोड़ अभिमान !
स्वार्थ परता त्याग कर सेवा हो गुण खान !!
सेवा में सब गुण बसें ,पुण्य कर्म उपकार !
दया दान हित नम्रता , उन्नति पतित सुधार !!
परमारथ यह समझिए, परम धाम सोपान !
परम प्रभू की साधना , दायक उत्तम ज्ञान !!
हाथ जोड़ मांगूं हरे ,सेवा कृपा प्यार
विनय नम्रता दान दे , देना सब कुछ वार !!
तेरे जन के हित लगे , तन मन.धन सब ठाठ!
आत्मा तुम में ही रमे , मुख में तेरा पाठ !!
साधो ! सेवा साधिए मन से मान मिटाय !
हरिजन को संतोषिए , ऊंच नीच भुलाय !!
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आज अपनी इन शारीरिक दुर्बलताओं के कारण हमे कभी कभी असहनीय ग्लानि और चिंता होती है कि, जीवन पथ के अंतिम पड़ाव पर डगमगाते पैरों पर खड़े हम-- क्षमताहीन अस्वस्थ बूढे, भारतीय, सनातन मूल्यों पर आधारित कर्मकाण्ड सम्मत "साधना","उपासना" "आराधना" और पूजा पाठ कैसे कर पायेंगे और कैसे हम अपने सद्गुरु द्वारा इंगित उपरोक्त "सेवा-पथ" पर चल पायेंगे ?
प्रियजन ! संतमहात्माओं का कहना है कि ऎसी चिंता होनी स्वाभाविक है !सेवा की व्याख्या करते हुए इन महात्माओं ने "सेवाधर्म " निभाने के लिए अनेक सरल मार्ग भी दर्शाये !
अपने अगले आलेख में विस्तार से उन अन्य सुगम मार्गों को दिखाने का प्रयास करूँगा जो महात्माओं ने हमे बताये हैं !
अभी , अपने आध्यात्मिक सद गुरुजन के मार्गदर्शन से "भजन गायन " की जिस "सेवा" पगडंडी पर मैं १९५९ से अब तक चला और अब भी चल रहा हूँ और जिसका मधुरतम "सुफल" , न चाहते हुए भी मैंने आजीवन पाया उसका एक उदाहरण प्रस्तुत कर दूँ !
आजकल भजन गायन "सेवा" में मैं अपना अधिकतर समय लगाता हूँ ,! कांखते , खांसते, कराहते आहें भर भर के, दिन भर के २४ घंटों में से २२ घंटे बिस्तर पर समानंतर समतल लेटेलेटे भी मैं गाता रहता हूँ ---------
अपने सद्गुरु के अतिरिक्त , एक नहीं अनेक, महात्माओं ने मुझे "स्वर में ही ईश्वर दर्शन" करते हुए भजन-कीर्तन-गायन द्वारा स्वयम "निज की सेवा" के साथ साथ श्रोताओं की सेवा करते रहने की प्रेरणा दी ! मैंने अपनी आत्म कथा में विस्तार से इसका वर्णन किया है ! सभी महात्माओं ने मुझे निष्काम भाव से , अहम एवं सुफल की कामना त्याग कर आजीवन गाते रहने को प्रोत्साहित किया ! और मुझे ऐसा लगता है कि वे ही मुझे इतनी शक्ति दे रहे हैं कि मैं आजतक उनके द्वारा निदेशित सेवा कर पा रहा हूँ !
सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी के आदेशानुसार "भक्ति प्रकश " के "सेवा प्रकरण" के उपरोक्त दोहे आपको सुना रहा हूँ ! समय हो तो अवश्य सुने !
http://youtu.be/odZEXHGS118
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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