(1)दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामी* ॥
चरन-कँवल-छवि, उर उतारि के, अंतर सरस बनाओ स्वामी
छलकै नयनन सोँ सनेहरस ऐसी जुगति कराओ मेरे स्वामी ॥*
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामीे*॥
*मम मन को अँधियार मिटै, अस, आतमग्यान कराओ मेरे स्वामीे* ।
*चमकत पग नख केर ज्योत सोँ , अंतर मन चमकाओ मेरे स्वामी* ॥
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामी*॥
*आतमग्यान कराय, जनन कै भेद सबै बिलगाओ स्वामी*॥
*"मैंं-तू" छोड़ि सबै स्वजनन सोँ, "तू ही तू" कहिरावौ स्वामी*॥
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ स्वामीे* ॥
नोट --
(बाबा/साँई/स्वामी/सतगुरु, प्यारे - कुछ भी कहिये)
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(2)
बसो मेरे मनमंदिर मे राम*
परमपुरुष परमेश्वर प्रियतम पावन पुण्यसुधाम
बसों मेरे मन मंदिर में राम
*नज़र झुकाऊँ, दर्शन पाऊँ लगे न कौड़ी दाम*
*परमात्मा तू स्वयं प्रकाशित ज्योतिपुंज सुखधाम
*बसो मेरे.......*
*मानवतन बलबुद्धि सहित प्रभु तुमने किया प्रदान**
माया के भटकाये भटके हम मूरख नादान
**बसो मेरे.....*
*काम क्रोध मद लोभ मोह ने जकड़ा निर्बल जान
*टेढ़ी टोपी डाल अकड़ता फिरा अहं-लपटान *
*बसो मेरे.....*
*बहुतहुआ प्रभु,कृपा करो अब ,दो सुबुद्धिमतिदान*
*अहं त्याग शरणागत हो मैं करूँ कर्म निष्काम*
*बसो मेरे मनमंदिर मे राम*************
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(3)
मन क्यों कर चिंता करता है
चिंतन कर प्यारे चिंतन कर !
जिनकी करुणा से गुरु पाया
उन करुणाकर का सिमरन कर !!
पशु कीट पतँग योनि नहीं दी
सुर दुर्लभ मानव तन बख़्शा !
उन परम कृपालु दयालु राम के
उपकारों का सिमरन कर !
प्रारब्ध भोग सहना होगा ,
देवों ने भी उनको भोगा !
जीवन में संकट आएंगे ,
मत उनसे डर ,हरी सिमरन कर !!
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(4 )
*भुलाना चाहता हूँ सब भगर ना भूल पाऊँ मै*
*तुम्ही कोई दवा दे दो कि सब कुछ भूल जाऊं मै*
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*भुला कर सारी दुनिया को कि जब मैँ मूँद लूँ आँखें*
*मुझे बस तुम ही तुम दीखो ,जिधर नज़रँ घुमाऊँ मैं*
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*इबादतगाह गुरुद्वारोँ में केवल तुम ही तुम दीखो*
*हरिक इंसाँ हरिक शय मेँ फ़कत तुमको ही पाऊँ मैँ*
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*मुझे बरबस सभी राहेँ तुम्हारे पास ले आयेँ*
*हरिकमंज़िल में बतुम हो ,चाहे जिस ओर जाऊँ मैँ*
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(4 A)
भुला देते हैँ हम +उनको+, मगर +वह+ याद रखते है*!
*हमें हर रंजोगम से , +वह+ सदा आज़ाद रखते हैँ*!
*प्रलय से भयंकर संकट मनुज जीवन मे आते हैँ*
*उजड़ जाती है दुनिया, +वह+ हमें आबाद रखते हैँ ।*
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(5)
दिले नादाँ भला काहे को तू इतना घबड़ाता है ।*
*हरिक उलझन तिरी जब खुद तिरा सत्गुरु सुलझाता है ॥*
*अकेला हूँ, कोई रहबर, न कोई हम सफ़र मेरा ।*
*तुझे जीवन में पगले हर समय ये ग़म सताता है ॥टेक॥*
*नहीं दिखता तुझे, पर "राम" - तेरा मीत परमेश्वर ।*
*विपत्ति आने से पहले ही मदद को पहुँच जाता है ॥*
*नहीं असहाय-निर्बल तू ,परमगुरु की शरन मेँ आ ।*
*शरन आये को सतगुरु स्वयं श्रीहरि से मिलाता है ॥*=
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( ६ )
प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से रघुपति राघव राजा राम*!
*परमसत्य परमात्मा प्यारा प्रीतिपुंज परमानंद धाम
*प्यारे स्वजनो कहो प्रेम से.योगेश्वर श्री श्यामा श्याम
*प्रेमसहित सबजन मिल बोलो जयसियाराम जयराधेश्याम
*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से .............................*
*कभी सारथी बने पार्थ के दिखलाया निज रूप महान i
और सुनाया मानवता को श्रीमद भगवद गीता ज्ञान i
प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से
*
*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से पतित पावन सीता राम*
*प्रेमसहित बोलो मतभूलो वह है परम शक्ति गुनधाम*
*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से रघुपति राघव राजा राम*!
*परमसत्य परमात्मा है वह परमानंद शांति सुख धाम*!
*जय जय राम ...*कीर्तन.....*
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( ७ )
*अपने सत्गुरु प्राण पियारे*॥
कहीं न दिखते, पर हैं हर पल संग हमारे*!
*शीतल-वरद-हस्त सिर रखकर जगजीवन के ताप निवारेँ*॥
*अपने सत्गुरु प्राण पियारे*॥
*एक उन्हीं का अवलम्बन है, उनपर निर्भर मम तनमन है* ।
*नहीँ कहीं है कोई निराशा, हर दिश केवल आशा आशा* ।
*ज्योँ गुलाब की शुष्क डाल में सुरभि-गंध की भरी फुहारेँ*॥
*अपने सत्गुरु प्रान पियारे*॥
*आने दिया न ऐसा अवसर, उनके आगे फैलाता कर* ।
*दुर्घटना घटने से पहले आ जाते गुरु रक्षक बनकर* ।
*उनकी ममता मयी गोद मेँ साधक सब दुखदर्द बिसारे*॥
*अपने सत्गुरु प्राणपियारे*॥
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( ८ )
*प्रथम दरश सतगुरु के चरना*
*अघ-नाशक मंगल शुभकरना*॥टेक॥
*दरसन सों अप्रतिम सुखपावा*
*परम सत्य गुरु देव बतावा*॥टेक॥
*आंसुन सोँ गुरु चरन पखारा,*
*बंदन कर आरती उतारा*॥टेक॥
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*बन्दौं चरन कमल गुरुवर के*॥
*दूध आलता सरिस गुलाबी ,कोमल जस पग शिशु रघुवर के*॥टेक॥
*बन्दौं चरन कमल सतगुरु के*॥
*अंधियारे मंह मणिदीपक सम, बरत करत उजियार गहन तम*!
*दरसावत मग गुरवर दर के*॥टेक॥
*काजर सम कारो अंतर-मन - पाप ताप संंतप्त छीन तन ।*
*भैंट लिये आया गुरु दर पे* ॥टेक॥
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(9)
सद्गुरु
म्हारा सतगुरु आंगन आया रे
सतगुरु मिलन भाव सिंचित मम रोम रोम हरसाया रे
नयनन सों जल धार बही तन कुम्भ प्रयाग नहाया रे l
तन मन निर्मल कर सद्गुरु को प्रेम सहित गुहराया रे !
पलक झार आँसुनफुहार सों मन मंदिर चमकाया रे l
म्हारा सतगुरु ++++++++++
भाँतिभांति के सुमन गंधमय बगियन सों चुनलाया रे l
शिवरंजनि बेला गुलाब लड़ियन सों द्वार सजाया रे l
आंगन गलियारन चौबारन कहँ गम गम गमकाया रे l
मनमंदिर के आसन पर गुरु चरण कमल पधराया रे l
म्हारा सतगुरु आंगन आया रे ll
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( 10
परम धाम से परम धाम की यात्रा
भ्रम भूलोँ के तूफानो मेँ , फँसी जीव की नय्या।
शरणागत जब हुआ ,मिल गया *सद्गुरु* प्रबल खिवैया ॥
कहाँ से तू आया है मुसाफिर ,कौन गाँव जायेग़ा !
गहरी नदिया नाव पुरानी ,निर्बल तू लहरें तूफानी !
कौन पार पहुंचाएगा ,कौन गाँव तू जायेग़ा !!
बिन हरिकृपा मनुज निरबुद्धी कुछ भी न करपायेगा !
परम कृपालु राम ही उसकी नय्या पार लगायेगा !!
कहाँ से तू आया है मुसाफिर----
शून्याकाश से उतर जीव इस शून्य धरणि पर बिखरा ,
शून्य हुई मन बुद्धि जगत में ,माया ने धर पकड़ा !
अहंकार मद काम क्रोध मोहादि विषय ने जकड़ा !
मैं मैं करता रहा मूढ़ तू ,प्यारे प्रभु को बिसरा !!
कहाँ से तू आया है मुसाफिर----------
पूर्ण समर्पण कर प्राणी जब हरिशरणागत होवेगा !
परमकृपालु राम माँझी बन ,नय्या पार लगाएगा !
बाँह पक़ड़ कर तेरी तुझको परमधाम पहुंचाएगा !
परमधाम से आया है तू परम धाम को जाएगा !!
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