अपने सत्गुरु प्राण पियारे॥
कहीं न दिखते, पर हैं हर पल संग हमारे!
शीतल-वरद-हस्त सिर रखकर जगजीवन के ताप निवारेँ॥
अपने सत्गुरु प्राण पियारे॥
एक उन्हीं का अवलम्बन है, उनपर निर्भर मम तनमन है ।
नहीँ कहीं है कोई निराशा, हर दिश केवल आशा आशा ।
ज्योँ गुलाब की शुष्क डाल में सुरभि-गंध की भरी फुहारेँ॥
अपने सत्गुरु प्रान पियारे॥
आने दिया न ऐसा अवसर, उनके आगे फैलाता कर।
दुर्घटना घटने से पहले आ जाते गुरु रक्षक बनकर।
उनकी ममता मयी गोद मेँ साधक सब दुखदर्द बिसारे॥
औरों की क्या बात करूँ , गुरवर ने मेरे सब दुख टारे ॥
अपने सत्गुरु प्राणपियारे ॥
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