गुरुवार, 28 जुलाई 2022

 अपने सत्गुरु प्राण पियारे॥

 कहीं न दिखते, पर हैं   हर पल   संग हमारे!

शीतल-वरद-हस्त सिर रखकर जगजीवन के ताप निवारेँ॥

अपने सत्गुरु प्राण पियारे॥


एक उन्हीं का  अवलम्बन है, उनपर निर्भर मम तनमन है ।

नहीँ कहीं है   कोई निराशा, हर दिश केवल आशा आशा ।

ज्योँ गुलाब की शुष्क डाल में सुरभि-गंध की भरी फुहारेँ॥


अपने सत्गुरु प्रान पियारे॥


आने दिया न ऐसा अवसर, उनके आगे फैलाता कर।

दुर्घटना घटने से पहले आ जाते गुरु रक्षक बनकर।


उनकी ममता मयी गोद मेँ साधक सब दुखदर्द बिसारे॥

औरों की क्या बात करूँ ,       गुरवर ने मेरे सब दुख टारे ॥

अपने सत्गुरु प्राणपियारे ॥


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