आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका
मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022
विजयदशमी की बधाई* -------
विजयदशमी का यह गौरवपूर्ण पर्व , सात्विक=दैवी-शक्ति के हाथों तामसी-आसुरी- शक्ति की पराजय का एक जीवंत कथानक है ! नंगे पाँव बनवासी राम ने रथारूढ़ लंकापति रावण को पराजित कर के यह साबित कर दिया कि छोटी से छोटी दिखने वाली , दैवी शक्ति भी बड़ी से बड़ी आसुरी शक्ति को बात ही बात में पराजित कर सकती है !
राम चरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम की वाणी से ऐसे धर्ममय "विजय रथ" के गुणों की उद्घोषणा करवाई है जिस पर सवार हो कर एक साधारण पैदल सिपाही बड़े बड़े अभेद सैन्य उपकरणों से सुसज्जित ,अजेय रिपुओं को भी पराजित कर सकता है !
- सफलता की कुंजी. *विजय रथ* रामचरित मानस से विजय प्राप्रि.हेतु श्रीराम द्वारा विभीषण का मार्ग दर्शन.
रावण रथी विरथ रचुवीरा देखि विभीषण भयउ अधीरा ***************
चिंतित हो.विभीषण ने श्री राम सै कहा
नाथ न.रथ नहिं पग पदत्राना केहि बिधि जितब बीर बलवान । मुस्कुराते हुए.श्रीराम ने विभीषण का मार्गदर्शन करते हुए. कहा , .
श्री राम ने बताया कि " इस धर्म मय ,विजय रथ के पहिये हैं -शौर्य और धैर्य ; ध्वजा पताका हैं सत्य और शील ! इस रथ के घोड़े हैं : बल , विवेक , इन्द्रीय दमन और परोपकार - इन घोड़ों को क्षमा , दया और समता रूपी डोरी से जोडा गया है ! ईश्वर का भजन इस रथ का सारथी है ! वैराग्य उसकी ढाल है और संतोष तलवार है ; दान फरसा है, बुद्धि शक्ति है तथा विज्ञानं धनुष है ; निर्मल मन तरकस है जिस में संयम , अहिंसा ,पवित्रता के वाण पड़े हैं !सद्गुरु का आधार कवच है ! श्री राम ने अंततः कहा कि जिस वीर के पास इन दिव्य सनातन जीवन मूल्यों से लैस रथ है , उसे कोई सांसारिक शत्रु परास्त नहीं कर सकता !"
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