श्री रामशरणम के सदगुरु प्रेमजी महाराजजी की महनीय कृपा का वर्णन करना मेरे सामर्थ्य से परे है, जिनसे आत्मशक्ति पा कर मैंने अवस्थानुसार जीवन भर विवेक बुद्धि से कार्य किया, कर्मयोग की साधना में कर्म से सृष्टिकर्ता का पूजन किया । आजीविका अर्जन के विहित कर्म अपनी सरकारी नौकरी में, मैं उच्चतम शिखर पर पहुँच गया । स्वेच्छा से साठ वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त हो कर कुछ वर्षों में सब बच्चों के विवाह-संस्कार सम्पन्न कर और उनको आजीविका अर्जन के लिए स्वावलम्बी बना कर, उनके भरण-पोषण के उत्तरदायित्व से मैं मुक्त हो गया । फिर रह गया एक ही ध्येय, एक ही कार्य, एक ही लगन, एक ही चिंतन - "सर्व शक्तिमान परम पुरुष परमात्मा के गुणों का गान करना, उनकी महिमा का बखान करना, भक्तिभाव से भजन-कीर्तन करना और मगन रहना" ।
परम पूज्य श्री प्रेमजी महाराज के निर्वाण दिवस २९ जुलाई मांगलिक अवसर पर मेरा उनके श्री चरणों में कोटिश नमन !
मन मंदिर में अपने "प्यारे प्रेमजी महाराज" का विग्रह प्रतिष्ठित कर, बंद नेत्रों से "प्यारे" की छवि निरंतर निहारते हुए, सुध बुध खोकर "उनका" गुणगान कर गीत संगीत द्वारा "उनकी" अनंत कृपाओं के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना, उनकी महिमा का बखान करना, भक्तिभाव से भजन-कीर्तन करना और मगन रहना" ।
यह है मेरा प्रणाम उन्हें कोटिश प्रणाम ।
निवेदक एक साधक
व्ही ,एन श्रीवास्तव "भोला"
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