शनिवार, 22 जून 2024

हमारे पौराणिक ग्रंथों में सुख दुःख के तीन भेद बताए हैं ; इन्हें "त्रयताप" कहा गया है !

(१). आधिदैहिक , (२). आधिभौतिक और (३).आधिदैविक( आध्यात्मिक )

(१) आधिदैहिक ताप -विषय -वासनाओं से निसृत शारीरिक सुख दुःख : है . (२) आधिदैविक ताप देवताओं की कृपा या कोप से प्राप्त सुख दुःख है जो कभी दुखदायी और कभी आनंददायी कल्याणकारी और हितकारी प्रतीत होते हैं (३) आधिभौतिक ताप सृष्टि के बाहरी साधनों के संयोग से , मानव द्वारा निर्मित सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले दुःख -सुख है !
पर सच पूछो तो आज समस्त संसार की ही दशा दयनीय है .! ब्रह्मानंदजी ने अपनी एक रचना में आज के मानव की दुखद मनःस्थिति ,इन शब्दों में अभिव्यक्त की है :

सताया राग द्वेषों का, तपाया तीन तापों का ,
दुखाया जन्म म्रत्यु का ,हुआ है हाल तंग मेरा!!

दुखों को मेटने वाला तुम्हारा नाम सुन कर मैं
सरन में आ गिरा अब तो भरोसा नाथ है तेरा !!
आज मानवता एक के बाद एक विविध प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को झेल रही है ! कहीं सुनामी और भूकम्प ,कहीं "आयरीन" (विनाशकारी समुद्री तूफ़ान) तथा कहीं पर भयंकर महामारिया और संक्रामक रोग हमे आये दिन त्रस्त करते रहते है ! दूसरी ओर अधिभौतिक प्रगति के फलस्वरूप मिले न्यूक्लिअर विध्वंसक अस्त्र शस्त्र , तथा मानव की सेवा के लिए आविष्कृत वायुयानों जैसे उपकरणों का दुरुपयोग कर के मानव ही दानव बना मानवता को मिटाने का संकल्प किये बैठा है ! आज परिस्थिति यह है कि ----

काम रूप जानहि सब माया ,सपनेहु जिनके धरम न दाया !
करहि उपद्रव असुर निकाया , नाना रूप धरहि कर माया !!

तामसी दुष्प्रवृत्तियों से अपनी आधिभौतिक शक्ति और तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक उपकरणों के दुरूपयोग से मानवता को नष्ट भ्रष्ट करने की आसुरी प्रवृत्ति वाले दानव कब तलक हमें सताते रहेंगे ? अब तो यही लगता है कि उनका अंत करने के लिए "श्री राम" जैसी परम सात्विक शक्तियों को अवतरित होना होगा और समस्त विश्व में राम राज लाना ही होगा क्योंकि
देहिक दैविक भौतिक तापा !
रामराज नहीं काहुहि व्यापा !!

इस विषय में संत कबीर ने तो यहाँ तक कह डाला कि
राम बिनु तन को ताप न जाई
चलिये आप को सुना दूँ यह भजन स्वयम गा कर



राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई
राम बिनु तन को ताप न जाई
तुम जल निधि मैं जल कर मीना
जल में रहहि जलहि बिनु जीना
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा
दर्शन देहु भाग बड मोरा
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला
कहे कबीर राम रमूं अकेला
राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई

राम बिनु तन को ताप न जाई
(कबीर)
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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