शनिवार, 3 जुलाई 2010

विश्वास रहित जीवन बेकार  
निज अनुभव  

 
प्रियजनकल लखनऊ से चिरंजीव डॉक्टर विश्वास वर्मा का इ.मेल द्वारा एक सन्देश प्राप्त हुआ जिसमें  उन्होंने ह्म सबको चिन्तन करने  के लिए  एक विशेष सामयिक प्रसंग 
दिया है "दृष्टि में ही सृष्टि है  "




उन्होंने अपने मेल में कहा है  

"आपके ब्लॉग एवं प्रतिदिन के लेख ने मुझे सोचने एवं कुछ लिखने पर  मजबूर कर दिया है .क्यों न हम सभी इन लेखों से प्रेरित हो केअपने विचारों का आदान प्रदान करें और 
उस दृष्टि(vision ) की कल्पना करें जिससे हम अपने जीवन को और भी प्रफुल्लित,स्वस्थ,संतोषजनक  एवं प्रगतिशील बनायें 
और एक ऐसी सृष्टि की रचना में सहयोगी बने 
जिससे प्रेरित होकर हम स्वयं अपने एवं दूसरों के लिए मार्गदर्शक बन जाएँ





'------
शायद यही जीवन है..और स्वर्गीय जस्टिस श्री शिव दयाल जी (नाना जी) ने हम सभी को एक सूत्र में पिरो कर एक स्वतंत्र एवं राममय विचारधारा में सम्मिलित कर के हम सभी का 
मार्गदर्शन किया है एवं अभी तक कर रहें हैं"------------------




"आप को बहुत बहुत धन्यवाद जो आप अपना अमूल्य समय निकाल कर   हम सभी को प्रेरित कर रहे हैं" .


आज की संवेदना,विचार एवं चिंतन का विषय जो विश्वास जी ने दिया: =
" सत्य, त्याग, प्रेम,धैर्य एवं विश्वास "
आजकल  के जीवन में क्या सभी 
अति-आवश्यक हैं? "


प्रियजन   आप को याद होगा मैंने  यह लेखमाला दो  स्वार्थों की सिद्धि के लिए चालू की थी . इनमे प्रथम है मेरा निजी स्वार्थ क़ी इसके लेखन के समय तो कमसेकम मैं अपने इष्ट देव .के निकट रहूंगा  और दूसरा यह क़ी आपसब से प्राप्त टिप्पड़ियों से मुझे कुछ सीखने को मिलेगा. चिरंजीव डॉक्टर विश्वास के मेल से मुझे विश्वास हो गया क़ी परमपिता ने अतिशय कृपा कर मेरा स्वप्न साकार कर दिया 
अब  मेरा आपसे अनुरोध है क़ीआप सभी पाठकगन समय समय पर  अपने विचार व्यक्त कर हमें लाभान्वित करें .
सत्य ,त्याग ,प्रेम ,धैर्य एवम  विश्वास ऐसे जीवन -मूल्य हैं जो सर्वकालिक हैं ,सनातन हैं औरसर्वदेशीय हैं. चलिए आज ह्म विश्वास के विषय में अपने विचार व्यक्त करें.
 "निज अनुभव" शीर्षक  से मैं आपको, आप बीती पर आधारित वह तथ्य बताने का प्रयास कर रहा हूँ जो परम सत्य है, प्रियजन मेरे निजी अनुभव के आधार पर मैं जान गया हूँ क़ी "विश्वास ही मानव जीवन  का आधार है ह्म विश्वास की छाया में ही जन्मते और  फलते -फूलते  हैं . 
अपना जीवन सार्थक ,एवं आनंद युक्त बनाने के लिए हमे अपने समीपस्थ व्यक्तियों पर विश्वास ,जगत के सभी पदार्थों पर विश्वास ,वातावरण पर विश्वास,और सर्वोपरि अपने आप पर तथा अपनी आत्मशक्ति ,क्षमता एवं दक्षता पर अटूट विश्वास रखना पड़ता है. प्रियजन.विश्वास ही हमें  जीवन जीने क़ी सही कला सिखाता है .
इन सब से ऊपर है हमारा वह विश्वास  जो ह्म सृष्टि के सृजनहार अपने परमपिता
में,उसकी  विद्यमानता तथा व्यापकता में और उसकी परम शक्ति तथा  समर्थता में रखते हैं. 


अपने एक प्रवचन में पूज्य मुरारी बापू ने कहा है क़ी यदि अपना जीवन सार्थक करना है तो  "विश्वास की संपदा ले कर जियो" .





निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"
nive__._,_.___

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सादर प्रणाम
रचनात्मक लेख सबको प्रेरणा मिलेगी।

।कृपया शब्द पुष्टिकरण हटा लेँ

->सुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी का साक्षात्कार पढने के लिऐ यहाँ क्लिक करेँ

Udan Tashtari ने कहा…

आभार.